एक हाजी साहब थे जो एक कपड़े की बहुत बड़ी फैक्ट्री के मालिक थे.. कुछ दिनों बाद हाजी साहब को अल्लाह से लौ लग गयी.. उनके जीवन में ऐसा कुछ घटा कि उन्होंने अपनी फैक्ट्री और
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सारा कारोबार बंद कर दिया और सूफ़ी बन गए.. अब लोग उन्हें सूफ़ी साहब के नाम से जानने लगे.. अब सूफ़ी साहब सिर्फ अल्लाह की इबादत करते और शाम को बैठते और अपने मुरीदों को प्रवचन देते।
एक दिन सूफ़ी साहब ने अपने मुरीदों को अपने व्यवसायी से सूफ़ी बनने की घटना सुनाई..
सूफी साहब ने कहा कि "एक दिन जब मैं अपनी फैक्ट्री में बैठा था उसी समय एक कुत्ता घायल अवस्था में वहां आता है.. वो किसी गाड़ी से कुचल गया था जिससे उसके तीन पैर टूट गए थे और वो सिर्फ एक पैर से घिसटते हुवे फैक्ट्री तक आया.. मुझे बहुत तरस आया और मैंने सोचा कि उस कुत्ते को किसी जानवरों के अस्पताल में ले जाऊं. मगर फिर अस्पताल के लिए तैयार होते समय मेरे दिमाग़ में एक बात आई और मैं रुक गया.. मैंने सोचा कि अगर अल्लाह हर किसी को खाना देता है तो मुझे अब देखना है कि इस कुत्ते को कैसे खाना मिलेगा.. रात तक दूर बैठे उसे मैं देखता रहा और फिर अचानक मैंने देखा कि एक दूसरा कुत्ता फैक्टरी के दरवाज़े से नीचे घुसा और उसके मुह में रोटी का एक टुकड़ा था.. उस कुत्ते ने वो रोटी उस कुत्ते को दी और घायल कुत्ते ने किसी तरह उसे खाया.. फिर ये रोज़ का काम हो गया.. वो कुत्ता वहां आता और उसे रोटी देता या कोई और खाने की चीज़ और वो घायल कुत्ता ऐसे खा खा के चलने के क़ाबिल बन गया.. मुझे ये देखकर अल्लाह पर अब ऐसा भरोसा हो गया कि मैंने अपनी फैक्ट्री बंद की.. कारोबार पर ताला लगाया और अल्लाह की राह में निकल पड़ा.. और सूफ़ी बनने के बाद भी मेरे पास पैसे उसी तरह किसी न किसी बहाने आते रहे जैसे पहले आते थे.. ठीक वैसे जैसे उस कुत्ते को दूसरा कुत्ता रोटी खिलाता था रोज़"
सूफ़ी साहब की ये कहानी सुनकर उनका एक मुरीद ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा.. सूफ़ी साहब ने जब वजह पूछी तो उसने कहा कि "आपने ये तो देख लिया सूफ़ी साहब कि अल्लाह ने उस कुत्ते का पेट भरा मगर आप ये न समझ सके कि उन दो कुत्तों में से बड़ा कुत्ता कौन है? जो खाना खा रहा है वो बड़ा है या जो कुत्ता उसे ला कर खिला रहा है वो बड़ा है? आप खाना खाने वाले घायल कुत्ते बन गए और अपना कारोबार बंद कर दिया.. जबकि पहले आप खाना खिलाने वाले कुत्ते थे क्यूंकि आपकी फैक्ट्री से हज़ारों लोगों को खाना मिलता था.. आप खुद बताईये कि पहले जो काम आप कर रहे थे वो अल्लाह की नज़र में बड़ा था या अब जो कर रहे हैं वो?"
सूफ़ी साहब की आँखें खुल गयीं.. और उन्होंने दूसरे ही दिन अपना कारोबार फिर से शुरू कर दिया और सूफ़ी साहब फिर से व्यवसायी हाजी साहब बन गए
भूतकाल में भी और वर्तमानकाल मे भी इन ही पुरषों का दबदबा रहा स्त्री का शोषण करने में स्त्री को अपने जाल में फंसाने में इन्होंने ही धर्म बनाए, इन्होंने ही रीति रिवाज़ बनाए, औऱ रूढ़िवादी व्यवस्थाएं बनाईं क्योंकि ये पुरुष दिमाग़ से चाल चलते है।
जो पुरुष दिल से
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स्त्री को समझा वो स्त्री द्वारा नकारा गया स्त्री ने उसका मजाक बनाया उसको गलत ठहराया उसको मानसिक रोगी करार दिया। दिल से चाहने वाले पुरुषों से स्त्रियों ने दूरी बनाई दूरी बनाती आई बनाती रहेगी ।
आज आप बात करती हो स्त्रीवादी की स्त्रियों के दुःख की फेमनिज़्म की तुम्हारे वो मित्र तुम्हारा समर्थन करते है वो नकली समर्थन करते है ये आज भी अपने घर में स्त्री को घूँघट में रखना चाहते है वुरके में रखना चाहते है
जो पुरुष अपनी दिल की बात लिखें अपने अनुभव लिखें विरोध करें आपको बर्दाश्त नहीं होता है आपको वो पुरुष गलत लगता है आपको वो कुण्ठित लगता है मानसिक रोगी लगता है
कभी गौर किया अपने दिमाग़ में प्रश्न किया की क्यूँ कोई पुरुष स्त्री विरोधी होता है कोई पुरुष नहीं होना चाहता स्त्री विरोधी लेकिन उसको बनाया गया ऐसा कुछ स्त्रियों के गलत व्यवहार से झूठे आरोपों से झूठे छेड़खानी के आरोपों से झूठे दहेज़ के आरोपों से घरेलू हिंसा के झूठे आरोपों से प्यार का इजहार करने पर उसको प्यार से no ना बोलकर उसको अपनी खूबसूरती का अहंकार करके उसके साथ गलत व्यवहार किया गया
पर आप नहीं मानती हो की स्त्री कभी गलत होती है
पर पुरुष जरूर मानता है की कुछ पुरुष गलत होते है
ये ही अन्तर है पुरुष और स्त्री में
गलत कोई भी हो सकता है फिर पुरुष हो या स्त्री
अगर पुरषों ने स्त्रियों पर शोषण किया है तो पुरषों ने स्त्रियों के शोषण को भी मुक्त किया है
बाल विवाह विधवा विवाह ट्रिपल तलाक स्त्रियों को राजनीति हक काम का हक कानून कठोर सजा सती प्रथा ये सभी स्त्रियों ने ही नहीं किये है । इनमें पुरुषों का ज्यादा रोल रहा है।
"यह बचाएगा कोविड-19 से भारत को ... और दुनिया को भी ! यह !" मदन भाई अपनी टीशर्ट का आधा बाज़ू ऊपर मोड़ते हुए उल्लास-भरे स्वर में कहते हैं। उनकी उँगली का इशारा बायीं भुजा की सतह पर बने उस निशान की ओर है ,
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जिसे संसार बीसीजी के नाम से जानता है।
"बैसिलस कैलमेट गीरैन। आपको इससे इतनी उम्मीद क्यों हैं ?" मैं उनके समाचारीय सुख को टटोलता हूँ।
"अख़बारों में , टीवी-चैनलों में हर जगह छाया हुआ है यह बीसीजी का टीका। जहाँ इसे जनता लगवाती रही है , वहाँ कोविड-मामले भी कम हैं और मृत्यु-दर भी। तुम्हें नहीं लगता ? कुछ दम तो है इसमें !"
"अभी कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी पुख़्ता तौर पर। किन्तु चलिए इसी बात पर बीसीजी की कहानी कही-सुनी जाए। सुनेंगे आप ?"
मदन भाई की उत्साही भौहें खिंच जाती हैं।
"निन्यानवे साल पुराना टीका है बीसीजी। यानी बैसिलस कैलमेट गीरैन। इस टीके में एक ख़ास माइकोबैक्टीरियम बोविस नाम का जीवाणु है , जिसे क्षीण यानी एटेनुएट किया गया है। यह जीवाणु गायों में टीबी-रोग पैदा करता है।"
"गायों में टीबी करता है ! पर यह जीवाणु टीबी से हमें कैसे बचाता है ? बीसीजी तो टीबी में काम करता है --- ऐसा सुना था !" मदन भाई का प्रश्न है।
"जी। टीबी-रोग मायोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस से होता है। किन्तु बीसीजी में एक दूसरा मायकोबैक्टीरियम बोविस है। ये कई मामलों में मिलते-जुलते हैं। अलबर्ट कैलमेट और कैमिल गीरैन से इस टीका का निर्माण किया। मनुष्यों में इसका पहला प्रयोग सन् 1921 में किया गया। तबसे न जाने कितने ही शिशुओं और नवजातों को यह लगाया जा चुका है। इसका मुख्य उद्देश्य : ट्यूबरकुलर मेनिन्जायटिस व डिस्सेमिनेटेड टीबी से व्यक्ति की रक्षा।"
"ये दोनों अजीब-ओ-ग़रीब नाम ऐसे हैं ?"
"ये टीबी-रोग के दो गम्भीर स्वरूप हैं। ट्यूबरकुलर मेनिन्जायटिस मस्तिष्क की मेनिंजेज़ नामक बाहरी झिल्लियों को प्रभावित करने वाला रोग है और डिस्सेमिनेटेड टीबी उस स्थिति को कहा जाता है , जब टीबी पूरे शरीर में फैल जाती है।"
"अरे ! तब तो ये बड़ी घातक बीमारियाँ हुईं ! एक दिमाग़ पर असर डाल रही है , दूसरी समूचे जिस्म पर !"
"यक़ीनन। तो इन्हीं को रोकने के लिए बीसीजी का इस्तेमाल किया जाने लगा। कामयाबी भी काफ़ी मिली , हालांकि टीबी इ अन्य स्वरूपों में इसकी सफलता विवादास्पद रही।"
"इनके अलावा भी कहीं यह टीका इस्तेमाल हुआ ?"
"जी। मूत्राशय के कैंसर में। वहाँ भी इसके प्रयोग से यूरोलॉजिस्टों-ऑन्कोसर्जनों ने रोगियों में लाभ होता पाया। लेकिन बीसीजी बड़ी दिलचस्प वैक्सीन रही दूसरे मायनों में।"
"कैसे ?"
"बीसीजी का टीका जब नवजातों को लगने लगा , तब ओवरऑल शिशु-मृत्यु-दर में भी कमी पायी जाने लगी। केवल टीबी से ही बच्चे कम मर रहे हों , ऐसा नहीं था। बीसीजी का टीका लगने से बच्चों में फेफड़ों के संक्रमण और सेप्सिस जैसे गम्भीर भी घटते पाये गये।"
"अरे वाह ! यह तो कमाल हो गया ! आम-के-आम-गुठलियों-के दाम !"
"हाँ , पर विज्ञान तो मुहावरों के आधार बना कर उत्सव मनाता नहीं। उसकी उल्लासधर्मिता को तो प्रमाण चाहिए पहले। सो दुनिया-भर के इम्यूनोलॉजिस्ट जुटे बीसीजी का अध्ययन करने के लिए कि ये एक-से-अधिक लाभ मिल क्यों और कैसे रहे हैं ? जानते हैं उन्हें क्या मिला ?"
"अब थोड़ी इम्यूनोलॉजी की जटिल भाषा को सरल करके समझाने का प्रयास करता हूँ। मोटी बात यह समझिए कि वैज्ञानिकों ने पाया कि बीसीजी का टीका शरीर में अन्य संक्रमणों से बचाने के लिए तीन स्तर पर काम करता है। मान लीजिए किसी बच्चे को बीसीजी का टीका लगा। टीके में एक जीवाणु है , जिसका नाम आप जान चुके हैं। शरीर के भीतर जो प्रतिरक्षक लिम्फोसाइट-कोशिकाएँ हैं ( दो प्रकार की : टी-लिम्फोसाइट व बी-लिम्फोसाइट ) उन्हें इस बीसीजी के जीवाणु का प्रयोग करके टीबी से लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। यानी शरीर के सैनिकों को ट्रेनिंग देने वाली कोशिकाएँ बीसीजी के टुकड़े ( यानी एंटीजन ) इन लिम्फोसाइट-सैनिकों के सामने प्रस्तुत करते हुए कहती हैं कि , "इसे देख रहे हो ? बाहर जो टीबी की बीमारी पैदा करने वाला दुश्मन है न , वह इसी से मिलता-जुलता है। इससे लड़ने का अभ्यास करो। इससे लड़ना सीख लोगे , तो उससे लड़ने में भी आसानी होगी।" इस तरह से शरीर की टी-लिम्फोसाइट व बी-लिम्फोसाइट बीसीजी के टीके से ट्रेनिंग लेकर टीबी-रोग से लड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं। फिर ये शरीर में ट्रेनिंग की स्मृति लेकर चुपचाप पड़ी रहती हैं कि कब टीबी का जीवाणु भीतर दाखिल हो और कब वे इससे लड़ें। किन्तु जब टीबी के जीवाणु की जगह दूसरे श्वसन-रोग पैदा करने वाले विषाणु शरीर में घुसते हैं , तब ये स्मृतियुक्त लिम्फोसाइट इन विषाणुओं और बीसीजी-जीवाणु के टुकड़ों ( यानी एंटीजनों ) कुछ समानता पाते हैं और इन विषाणुओं पर हमला कर देते हैं।"
"यानी ट्रेनिंग बीसीजी से ली थी , टीबी के लिए ली थी और हमला करके मार दिये वायरस ! गज्जब भाई ! कमाल !"
"हाँ मदन भाई। आण्विक स्तर पर बीसीजी और विषाणुओं को एक-सा दिखना मॉलीक्यूलर मिमिक्री कहलाता है और इस मिमिक्री के कारण विषाणुओं का सफाया हो जाता है। यह बीसीजी-टीके का टीबी के अतिरिक्त अन्य संक्रामक रोगों में काम करने का पहला ढंग हुआ।"
"दूसरा ढंग क्या है ?"
"बीसीजी एक-दूसरे ढंग से सीधे प्रतिरक्षा-तन्त्र की इन बी व टी-लिम्फोसाइटों को विषाणुओं के खिलाफ़ सक्रिय कर सकता है। इस तरीक़े को हेटेरोलॉगस इम्यूनिटी कहा जाता है। इसमें बीसीजी और विषाणुओं के मिलते-जुलते एंटीजन ज़िम्मेदार नहीं होते , यह सीधे काम के लिए उन्हें तैयार करता है। यानी बीसीजी का टीका लगा तो केवल टीबी-रोग से लड़ने वाले सैनिक नहीं तैयार हुए , विषाणु से लड़ने वाले सैनिक भी तैयार हो गये।"
"और तीसरा ढंग क्या है ?"
"तीसरा ढंग अन्तिम और सर्वाधिक शोध का विषय बना हुआ है। इसे ख़ास नाम दिया गया है : ट्रेंड इम्यूनिटी। मोनोसाइट-मैक्रोफेजों जैसी प्रतिरक्षक कोशिकाओं के भीतर जीनों के ख़ास प्रमोटर नामके स्विचों को ऑन-ऑफ़ करके उनके भीतर प्रतिरक्षक रसायनों का निर्माण और स्राव कराया जाता है। यह रासायनिक निर्माण और स्राव भी बीसीजी कराता है। अब जब विषाणु शरीर में दाखिल होते हैं , तब बीसीजी के आधार पर मिली ट्रेनिंग के कारण ये मोनोसाइट-मैक्रोफेज उन्हीं रसायनों का उत्पादन और स्राव शुरू कर देते हैं , जिनकी ट्रेनिंग पहले बीसीजी ने उन्हें दी थी। इस रसायनों के तरह-तरह के प्रयोगों से विषाणु मारे जाते हैं।"
"यानी इन तीन तरीक़ों से बीसीजी विषाणुओं के खिलाफ़ इम्यूनिटी देता है। वाह ! तब तो कोविड-19 में इससे मिलने वाली प्रतिरक्षा की बात में दम है ! है न !"
"जैसा कि मैंने कहा कि विज्ञान उल्लास से पहले प्रमाण जुटाता है। बीसीजी काम करता है , इसके कुछ प्रमाण हैं। अवश्य हैं। पर यह काम करता है , तो क्या इतना जानने-भर से काम चल जाएगा ? यह सच है कि इटली और अमेरिका जैसे देशों में , जहाँ इस टीके का प्रयोग व्यापक रूप में नहीं है , वहाँ अधिक मौतें हुई हैं और दक्षिणी कोरिया , जापान और भारत जैसे देशों में कम , जहाँ इस टीके का ख़ूब इस्तेमाल होता रहा है। लेकिन यह प्रमाण परिवेश-जन्य भी हो सकता है और अनेक दूसरे कारण भी मौत के आँकड़ों में अन्तर के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं। अभी कई शोध चल रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया , नीदरलैंड्स व अमेरिका में बीसीजी का टीका स्वास्थ्य-कर्मियों को लगाया जा रहा है ताकि यह देखा जा सके कि क्या यह उनकी कोविड-19 से रक्षा करता है अथवा नहीं। फिर बुज़ुर्गों में इस टीके को लगाकर गम्भीर कोविड-संक्रमण की रोकथाम पर भी शोध चल रहे हैं। जर्मनी भी बीसीजी से मिलते-जुलते टीके को बुज़ुर्गों अथवा स्वास्थ्य-कर्मियों को लगाकर शोध में लगा हुआ है।"
"चलो यार ! बस नतीजे पॉज़िटिव आएँ !"
"केवल नतीजों के पॉज़िटिव आने से प्रश्न समाप्त नहीं होते मदन भाई। लोग पूछेंगे कि टीका लगने से कितने दिन-महीने-साल की सुरक्षा मिलेगी इस कोरोनाविषाणु से ? दूसरे देशों की जनता यह भी पूछेगी कि टीका लगवाने की सही उम्र क्या है ? कितनी बार ? क्या बचपन में लगा बीसीजी और जवानी या बुढ़ापे में लगा बीसीजी एक-सा काम करेंगे ?"
"सवाल तो लाज़िमी हैं ये सारे।"
"इसीलिए विज्ञान त्वरित उत्सवधर्मिता में कंजूसी दिखाता है। पहले वह यह सिद्ध करने में लगा है कि सचमुच बीसीजी कोविड-19 में काम करता है अथवा नहीं। फिर यह सिद्ध करने में की किस तरह। फिर बीसीजी-टीका देने-सम्बन्धी पॉलिसी के गठन के बारे में। इतना सब जानने के बाद ही वह उल्लसित हो सकता है।"
"तब तक हम आम लोग तो लॉकडाउन में ख़ुश हो ही सकते हैं न भाई ! टीका हम-हिन्दुस्तानियों को जन्म के तुरन्त बाद लगाया जाता है और सम्भावना जगा रहा है। इस बुरे दौर में उम्मीद पर इतना खुश होना तो बनता है न !" कहते हुए वे भुजा के उस बीसीजी के निशान को चूम लेते हैं।
"अन्वेषकों ने जनता को उम्मीद रखने से कहाँ रोका है ! वे तो बस इतना कह रहे हैं कि आसमान ताकते हुए ज़मीन पर जमे रहना है , गिरना नहीं। बीसीजी की इस नयी कहानी के सुखद अन्त की हम-सबको प्रतीक्षा है।"
ट्रैन के ए.सी. कम्पार्टमेंट में मेरे सामने की सीट पर बैठी लड़की ने मुझसे पूछा " हैलो, क्या आपके पास इस मोबाइल की पिन है??"
उसने अपने बैग से एक फोन निकाला था, और नया सिम कार्ड उसमें डालना चाहती थी। लेकिन सिम स्लॉट खोलने
...
के लिए पिन की जरूरत पड़ती है जो उसके पास नहीं थी। मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और सीट के नीचे से अपना बैग निकालकर उसके टूल बॉक्स से पिन ढूंढकर लड़की को दे दी। लड़की ने थैंक्स कहते हुए पिन ले ली और सिम डालकर पिन मुझे वापिस कर दी।
थोड़ी देर बाद वो फिर से इधर उधर ताकने लगी, मुझसे रहा नहीं गया.. मैंने पूछ लिया "कोई परेशानी??"
वो बोली सिम स्टार्ट नहीं हो रही है, मैंने मोबाइल मांगा, उसने दिया। मैंने उसे कहा कि सिम अभी एक्टिवेट नहीं हुई है, थोड़ी देर में हो जाएगी। और एक्टिव होने के बाद आईडी वेरिफिकेशन होगा उसके बाद आप इसे इस्तेमाल कर सकेंगी।
लड़की ने पूछा, आईडी वेरिफिकेशन क्यों??
मैंने कहा " आजकल सिम वेरिफिकेशन के बाद एक्टिव होती है, जिस नाम से ये सिम उठाई गई है उसका ब्यौरा पूछा जाएगा बता देना"
लड़की बुदबुदाई "ओह्ह "
मैंने दिलासा देते हुए कहा "इसमे कोई परेशानी की कोई बात नहीं"
वो अपने एक हाथ से दूसरा हाथ दबाती रही, मानो किसी परेशानी में हो। मैंने फिर विन्रमता से कहा "आपको कहीं कॉल करना हो तो मेरा मोबाइल इस्तेमाल कर लीजिए"
लड़की ने कहा "जी फिलहाल नहीं, थैंक्स, लेकिन ये सिम किस नाम से खरीदी गई है मुझे नहीं पता"
मैंने कहा "एक बार एक्टिव होने दीजिए, जिसने आपको सिम दी है उसी के नाम की होगी"
उसने कहा "ओके, कोशिस करते हैं"
मैंने पूछा "आपका स्टेशन कहाँ है??"
लड़की ने कहा "दिल्ली"
और आप?? लड़की ने मुझसे पूछा
मैंने कहा "दिल्ली ही जा रहा हूँ, एक दिन का काम है, आप दिल्ली में रहती हैं या...?"
लड़की बोली "नहीं नहीं, दिल्ली में कोई काम नहीं ना मेरा घर है वहाँ"
तो? मैंने उत्सुकता वश पूछा
वो बोली "दरअसल ये दूसरी ट्रेन है, जिसमे आज मैं हूँ, और दिल्ली से तीसरी गाड़ी पकड़नी है, फिर हमेशा के लिए आज़ाद"
आज़ाद?? लेकिन किस तरह की कैद से?? मुझे फिर जिज्ञासा हुई किस कैद में थी ये कमसिन अल्हड़ सी लड़की..
लड़की बोली, उसी कैद में थी जिसमें हर लड़की होती है। जहाँ घरवाले कहे शादी कर लो, जब जैसा कहे वैसा करो। मैं घर से भाग चुकी हुँ..
मुझे ताज्जुब हुआ मगर अपने ताज्जुब को छुपाते हुए मैंने हंसते हुए पूछा "अकेली भाग रही हैं आप? आपके साथ कोई नजर नहीं आ रहा? "
वो बोली "अकेली नहीं, साथ में है कोई"
कौन? मेरे प्रश्न खत्म नहीं हो रहे थे
दिल्ली से एक और ट्रेन पकड़ूँगी, फिर अगले स्टेशन पर वो मिलेगा, और उसके बाद हम किसी को नहीं मिलेंगे..
ओह्ह, तो ये प्यार का मामला है।
उसने कहा "जी"
मैंने उसे बताया कि 'मैंने भी लव मैरिज की है।'
ये बात सुनकर वो खुश हुई, बोली "वाओ, कैसे कब?" लव मैरिज की बात सुनकर वो मुझसे बात करने में रुचि लेने लगी
मैंने कहा "कब कैसे कहाँ? वो मैं बाद में बताऊंगा पहले आप बताओ आपके घर में कौन कौन है?
उसने होशियारी बरतते हुए कहा " वो मैं आपको क्यों बताऊं? मेरे घर में कोई भी हो सकता है, मेरे पापा माँ भाई बहन, या हो सकता है भाई ना हो सिर्फ बहने हो, या ये भी हो सकता है कि बहने ना हो और 2-4 मुस्टंडे भाई हो"
मतलब मैं आपका नाम भी नहीं पूछ सकता "मैंने काउंटर मारा"
वो बोली, 'कुछ भी नाम हो सकता है मेरा, टीना, मीना, शबीना, अंजली कुछ भी'
बहुत बातूनी लड़की थी वो.. थोड़ी इधर उधर की बातें करने के बाद उसने मुझे ट्रॉफी दी जैसे छोटे बच्चे देते हैं क्लास में, बोली आज मेरा बर्थडे है।
मैंने उसकी हथेली से ट्रॉफी उठाते बधाई दी और पूछा "कितने साल की हुई हो?"
वो बोली "18"
"मतलब भागकर शादी करने की कानूनी उम्र हो गई आपकी" मैंने काउंटर किया
वो "हंसी"
कुछ ही देर में काफी फ्रैंक हो चुके थे हम दोनों। जैसे बहुत पहले से जानते हो एक दूसरे को..
मैंने उसे बताया कि "मेरी उम्र 28 साल है, यानि 10 साल बड़ा हुँ"
उसने चुटकी लेते हुए कहा "लग भी रहे हो"
मैं मुस्कुरा दिया
मैंने उसे पूछा "तुम घर से भागकर आई हो, तुम्हारे चेहरे पर चिंता के निशान जरा भी नहीं है, इतनी बेफिक्री मैंने पहली बार देखी"
खुद की तारीफ सूनकर वो खुश हुई, बोली "मुझे उसने(प्रेमी ने) पहले से ही समझा दिया था कि जब घर से निकलो तो बिल्कुल बिंदास रहना, घरवालों के बारे में बिल्कुल मत सोचना, बिल्कुल अपना मूड खराब मत करना, सिर्फ मेरे और हम दोनों के बारे में सोचना और मैं वही कर रही हूँ"
मैंने फिर चुटकी ली, कहा "उसने तुम्हे मुझ जैसे अनजान मुसाफिरों से दूर रहने की सलाह नहीं दी?"
उसने हंसकर जवाब दिया "नहीं, शायद वो भूल गया होगा ये बताना"
मैंने उसके प्रेमी की तारीफ करते हुए कहा " वैसे तुम्हारा बॉय फ्रेंड काफी टेलेंटेड है, उसने किस तरह से तुम्हे अकेले घर से रवाना किया, नई सिम और मोबाइल दिया, तीन ट्रेन बदलवाई.. ताकि कोई ट्रेक ना कर सके, वेरी टेलेंटेड पर्सन"
लड़की ने हामी भरी,बोली " बोली बहुत टेलेंटेड है वो, उसके जैसा कोई नहीं"
मैंने उसे बताया कि "मेरी शादी को 5 साल हुए हैं, एक बेटी है 2 साल की, ये देखो उसकी तस्वीर"
मेरे फोन पर बच्ची की तस्वीर देखकर उसके मुंह से निकल गया "सो क्यूट"
मैंने उसे बताया कि "ये जब पैदा हुई, तब मैं कुवैत में था, एक पेट्रो कम्पनी में बहुत अच्छी जॉब थी मेरी, बहुत अच्छी सेलेरी थी.. फिर कुछ महीनों बाद मैंने वो जॉब छोड़ दी, और अपने ही कस्बे में काम करने लगा।"
लड़की ने पूछा जॉब क्यों छोड़ी??
मैंने कहा "बच्ची को पहली बार गोद में उठाया तो ऐसा लगा जैसे जन्नत मेरे हाथों में है, 30 दिन की छुट्टी पर घर आया था, वापस जाना था लेकिन जा ना सका। इधर बच्ची का बचपन खर्च होता रहे उधर मैं पूरी दुनिया कमा लूं, तब भी घाटे का सौदा है। मेरी दो टके की नौकरी, बचपन उसका लाखों का.."
उसने पूछा "क्या बीवी बच्चों को साथ नहीं ले जा सकते थे वहाँ?"
मैंने कहा "काफी टेक्निकल मामलों से गुजरकर एक लंबी अवधि के बाद रख सकते हैं, उस वक्त ये मुमकिन नहीं था.. मुझे दोनों में से एक को चुनना था, आलीशान रहन सहन के साथ नौकरी या परिवार.. मैंने परिवार चुना अपनी बेटी को बड़ा होते देखने के लिए। मैं कुवैत वापस गया था, लेकिन अपना इस्तीफा देकर लौट आया।"
लड़की ने कहा "वेरी इम्प्रेसिव"
मैं मुस्कुराकर खिड़की की तरफ देखने लगा
लड़की ने पूछा "अच्छा आपने तो लव मैरिज की थी न,फिर आप भागकर कहाँ गए?? कैसे रहे और कैसे गुजरा वो वक्त??
उसके हर सवाल और हर बात में मुझे महसूस हो रहा था कि ये लड़की लकड़पन के शिखर पर है, बिल्कुल नासमझ और मासूम।
मैंने उसे बताया कि हमने भागकर शादी नहीं की, और ये भी है कि उसके पापा ने मुझे पहली नजर में सख्ती से रिजेक्ट कर दिया था।"
उन्होंने आपको रिजेक्ट क्यों किया?? लड़की ने पूछा
मैंने कहा "रिजेक्ट करने की कुछ भी वजूहात हो सकती है, मेरी जाति, मेरा धर्म, मेरा कुल कबीला घर परिवार नस्ल या नक्षत्र..इन्ही में से कोई काट होती है जिसके इस्तेमाल से जुड़ते हुए रिश्तों की डोर को काटा जा सकता है"
"बिल्कुल सही", लड़की ने सहमति दर्ज कराई और आगे पूछा "फिर आपने क्या किया?"
मैंने कहा "मैंने कुछ नहीं किया,उसके पिता ने रिजेक्ट कर दिया वहीं से मैंने अपने बारे में अलग से सोचना शुरू कर दिया था। खुशबू ने मुझे कहा कि भाग चलते हैं, मेरी वाइफ का नाम खुशबू है..मैंने दो टूक मना कर दिया। वो दो दिन तक लगातार जोर देती रही, कि भाग चलते हैं। मैं मना करता रहा.. मैंने उसे समझाया कि "भागने वाले जोड़े में लड़के की इज़्ज़त वकार पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता, जबकि लड़की का पूरा कुल धुल जाता है। फिल्मों में नायक ही होता है जो अपनी प्रेमिका को भगा ले जाए और वास्तविक जीवन में भी प्रेमिका को भगाकर शादी करने वाला नायक ही माना जाता है। लड़की भगाने वाले लड़के के दोस्तों में उस लड़के का दर्जा बुलन्द हो जाता है, भगाने वाला लड़का हीरो माना जाता है लेकिन इसके विपरीत जो लड़की प्रेमी संग भाग रही है वो कुल्टा कहलाती है, मुहल्ले के लड़के उसे चालू ठीकरा कहते हैं। बुराइयों के तमाम शब्दकोष लड़की के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। भागने वाली लड़की आगे चलकर 60 साल की वृद्धा भी हो जाएगी तब भी जवानी में किये उस कांड का कलंक उसके माथे पर से नहीं मिटता। मैं मानता हूँ कि लड़का लड़की को तौलने का ये दोहरा मापदंड गलत है, लेकिन है तो सही.. ये नजरिया गलत है मगर अस्तित्व में है, लोगों के अवचेतन में भागने वाली लड़की की भद्दी तस्वीर होती है। मैं तुम्हारी पीठ को छलनी करके सुखी नहीं रह सकता, तुम्हारे माँ बाप को दुखी करके अपनी ख्वाहिशें पूरी नहीं कर सकता।"
वो अपने नीचे का होंठ दांतो तले पीसने लगी, उसने पानी की बोतल का ढक्कन खोलकर एक घूंट अंदर सरकाया।
मैंने कहा अगर मैं उस दिन उसे भगा ले जाता तो उसकी माँ तो शायद कई दिनों तक पानी भी ना पीती। इसलिए मेरी हिम्मत ना हुई कि ऐसा काम करूँ.. मैं जिससे प्रेम करूँ उसके माँ बाप मेरे माँ बाप के समान ही है। चाहे शादी ना हो, तो ना हो।
कुछ पल के लिए वो सोच में पड़ गई , लेकिन मेरे बारे में और अधिक जानना चाहती थी, उसने पूछा "फिर आपकी शादी कैसे हुई???
मैंने बताया कि " खुशबू की सगाई कहीं और कर दी गई थी। धीरे धीरे सबकुछ नॉर्मल होने लगा था। खुशबू और उसके मंगेतर की बातें भी होने लगी थी फोन पर, लेकिन जैसे जैसे शादी नजदीक आने लगी, उन लोगों की डिमांड बढ़ने लगी"
डिमांड मतलब 'लड़की ने पूछा'
डिमांड का एक ही मतलब होता है, दहेज की डिमांड। परिवार में सबको सोने से बने तोहफे दो, दूल्हे को लग्जरी कार चाहिए, सास और ननद को नेकलेस दो वगैरह वगैरह, बोले हमारे यहाँ रीत है। लड़का भी इस रीत की अदायगी का पक्षधर था। वो सगाई मैंने येन केन प्रकरेण तुड़वा डाली.. फिर किसी तरह घरवालों को समझा बुझा कर मैं फ्रंट पर आ गया और हमारी शादी हो गई। ये सब किस्मत की बात थी..
लड़की बोली "चलो अच्छा हुआ आप मिल गए, वरना वो गलत लोगों में फंस जाती"
मैंने कहा "जरूरी नहीं कि माँ पापा का फैसला हमेशा सही हो, और ये भी जरूरी नहीं कि प्रेमी जोड़े की पसन्द सही हो.. दोनों में से कोई भी गलत या सही हो सकता है.. नुक्ते की बात यहाँ ये है कि कौन ज्यादा फरमाबरदार और वफादार है।"
लड़की ने फिर से पानी का घूंट लिया और मैंने भी.. लड़की ने तर्क दिया कि "हमारा फैसला गलत हो जाए तो कोई बात नहीं, उन्हें ग्लानि नहीं होनी चाहिए"
मैंने कहा "फैसला ऐसा हो जो दोनों का हो, औलाद और माता पिता दोनों की सहमति, वो सबसे सही है। बुरा मत मानना मैं कहना चाहूंगा कि तुम्हारा फैसला तुम दोनों का है, जिसमे तुम्हारे पेरेंट्स शामिल नहीं है, ना ही तुम्हे इश्क का असली मतलब पता है अभी"
उसने पूछा "क्या है इश्क़ का सही अर्थ?"
मैंने कहा "तुम इश्क में हो, तुम अपना सबकुछ छोड़कर चली आई ये इश्क़ है, तुमने अक़्ल का दखल नहीं दिया ये इश्क है, नफा नुकसान नहीं सोचा ये इश्क है...तुम्हारा दिमाग़ दुनियादारी के फितूर से बिल्कुल खाली था, उस खाली स्पेस में इश्क इनस्टॉल कर दिया गया। जिसने इश्क को इनस्टॉल किया वो इश्क में नहीं है.. यानि तुम जिसके साथ जा रही हो वो इश्क में नहीं, बल्कि होशियारी हीरोगिरी में है। जो इश्क में होता है वो इतनी प्लानिंग नहीं कर पाता है, तीन ट्रेनें नहीं बदलवा पाता है, उसका दिमाग इतना काम ही नहीं कर पाता.. कोई कहे मैं आशिक हुँ, और वो शातिर भी हो ये नामुमकिन है। मजनू इश्क में पागल हो गया था, लोग पत्थर मारते थे उसे, इश्क में उसकी पहचान तक मिट गई। उसे दुनिया मजून के नाम से जानती है जबकि उसका असली नाम कैस था जो नहीं इस्तेमाल किया जाता। वो शातिर होता तो कैस से मजनू ना बन पाता। फरहाद ने शीरीं के लिए पहाड़ों को खोदकर नहर निकाल डाली थी और उसी नहर में उसका लहू बहा था, वो इश्क़ था। इश्क़ में कोई फकीर हो गया, कोई जोगी हो गया, किसी मांझी ने पहाड़ तोड़कर रास्ता निकाल लिया..किसी ने अतिरिक्त दिमाग़ नहीं लगाया.. लालच हिर्स और हासिल करने का नाम इश्क़ नहीं है.. इश्क समर्पण करने को कहते हैं जिसमें इंसान सबसे पहले खुद का समर्पण करता है, जैसे तुमने किया, लेकिन तुम्हारा समर्पण हासिल करने के लिए था, यानि तुम्हारे इश्क में हिर्स की मिलावट हो गई । डॉ इकबाल का शेर है "अक़्ल अय्यार है सौ भेष बदल लेती है इश्क बेचारा ना मुल्ला है, ना ज़ाहिद, ना हकीम"
लकड़ी अचानक से खो सी गई.. उसकी खिलख़िलाहट और लपड़ापन एकदम से खमोशी में बदल गया.. मुझे लगा मैं कुछ ज्यादा बोल गया, फिर भी मैंने जारी रखा, मैंने कहा " प्यार तुम्हारे पापा तुमसे करते हैं, कुछ दिनों बाद उनका वजन आधा हो जाएगा, तुम्हारी माँ कई दिनों तक खाना नहीं खाएगी ना पानी पियेगी.. जबकि आपको अपने प्रेमी को आजमा कर देख लेना था, ना तो उसकी सेहत पर फर्क पड़ता, ना दिमाग़ पर, वो अक्लमंद है, अपने लिए अच्छा सोच लेता। आजकल गली मोहल्ले के हर तीसरे लौंडे लपाडे को जो इश्क हो जाता है, वो इश्क नहीं है, वो सिनेमा जैसा कुछ है। एक तरह की स्टंटबाजी, डेरिंग, अलग कुछ करने का फितूर..और कुछ नहीं।
लड़की का चेहरे का रंग बदल गया, ऐसा लग रहा था वो अब यहाँ नहीं है, उसका दिमाग़ किसी अतीत में टहलने निकल गया है। मैं अपने फोन को स्क्रॉल करने लगा.. लेकिन मन की इंद्री उसकी तरफ थी।
थोड़ी ही देर में उसका और मेरा स्टेशन आ गया.. बात कहाँ से निकली थी और कहाँ पहुँच गई.. उसके मोबाइल पर मैसेज टोन बजी, देखा, सिम एक्टिवेट हो चुकी थी.. उसने चुपचाप बैग में से आगे का टिकट निकाला और फाड़ दिया.. मुझे कहा एक कॉल करना है, मैंने मोबाइल दिया.. उसने नम्बर डायल करके कहा "सोरी पापा, और सिसक सिसक कर रोने लगी, सामने से पापा फोन पर बेटी को संभालने की कोशिश करने लगे.. उसने कहा पापा आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए मैं घर आ रही हूँ..दोनों तरफ से भावनाओ का सागर उमड़ पड़ा"
हम ट्रेन से उतरे, उसने फिर से पिन मांगी, मैंने पिन दी.. उसने मोबाइल से सिम निकालकर तोड़ दी और पिन मुझे वापस कर दी।