चाणक्य के 15 अमर वाक्य
1)दूसरों की गलतियों से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने के लिये तुम्हारी आयु कम पड़ जायेगी।
2)किसी भी व्यक्ति को डेड ईमानदार नहीं होना चाहिए। सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं।
3)अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए
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अर्थात दंश भले ही न दो पर दंश दे सकने की क्षमता का दूसरों को अहसास करवाते रहना चाहिए।
4)हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है, यह कड़वा सच है। स्वार्थ छोटा अथवा बड़ा कैसा भी हो सकता।
5)कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछो...
मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ?
इसका क्या परिणाम होगा ?
क्या मैं सफल रहूँगा?
6)भय को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आये तो इस पर हमला कर दो यानी भय से भागो मत अपितु इसका सामना करो।
7)दुनिया की सबसे बड़ी ताकत मनुष्य का विवेक है।
8)काम का निष्पादन करो, परिणाम से मत डरो।
9)सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है।"
10)ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है। अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ।
11)व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है, जन्म से नहीं।
12)ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से अधिक ऊपर या अधिक नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ,वह तुम्हारे कष्ट का कारण बन सकते हैं। समान स्तर के मित्र ही सुखदायक होते हैं।
13)अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो। छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार दो। सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो।
आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है।"
14)अनपढ के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक समान उपयोगी है।
15)शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है। शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है। शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य दोनों ही कमजोर हैं।