Income Tax: ITR फाइल करने की डेडलाइन बढ़ी, फिर भी लगेगी पेनल्टी! जानिए आप पर कितना लगेगा चार्ज
Income Tax Return: इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए वित्त वर्ष 2020-21 के लिए ITR फाइल करने की डेडलाइन 30 सितंबर, 2021 तक जरूर बढ़ा दी है, लेकिन डेडलाइन बढ़ने का मतलब ये नहीं है कि आपको दंडात्मक ब्याज चार्ज से
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राहत मिल गई है, जिसका भुगतान सेल्फ असेसमेंट टैक्स या एडवांस टैक्स के केस में आउटस्टैंडिंग टैक्स लायबिलिटी के मामले में जरूरी होता है.
बकाया टैक्स पर लगेगा इंटरेस्ट
Times Now News पर छपी खबर के मुताबिक दरअसल, इनकम टैक्स एक्ट 1961 के तीन सेक्शन 234A, 234B और 234C के तहत टैक्सपेयर्स को बकाया टैक्स पर इंटरेस्ट देना जरूरी होता है, अगर उसे इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने में देरी होती है. सेक्शन 234A के मुताबिक, ITR फाइलिंग में देरी पर ब्याज लगता है. मान लीजिए कि ITR फाइल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई, 2021 है और आपने 6 अगस्त, 2021 को फाइल किया. तब ऐसे केस में बकाया टैक्स अमाउंट पर हर महीने 1 परसेंट के हिसाब से ब्याज लगेगा. इस मामले में पूरे एक महीने का ब्याज चार्ज देना होगा, यानी 6 दिन की देरी को पूरे एक महने की देरी माना जाएगा.
किस पर लगेगी इंटरेस्ट पेनल्टी?
हालांकि सेक्शन 234A के तहत उन टैक्सपेयर्स को राहत मिलती है, जिनका सेल्फ असेसमेंट टैक्स 1 लाख रुपये तक है. लेकिन अगर टैक्स लायबिलिटी 1 लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें देरी पर ब्याज देना होगा. इसलिए भले ही इनकम टैक्स रिटर्न भरने की डेडलाइन 30 सितंबर हो, अगर आपकी टैक्स लायबिलिटी 1 लाख रुपये से ज्यादा है तो आपको अगस्त और सितंबर के लिए 1 परसेंट के हिसाब से इंटरेस्ट देना होगा. मान लीजिए की डेडलाइन 30 सितंबर के बाद भी आगे बढ़ती है, तो उसी हिसाब से ब्याज भी लगता रहेगा.
वित्तम् यत्नेन रक्षेत् चित्तं आयाति याति च। अक्षीणो चित्ततः क्षीणो वित्ततः तु हतोहतः।। । भावार्थ- धन की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए, मन तो आता-जाता रहता है। मन से दुर्बल को दुर्बल नहीं कहते लेकिन धन से दुर्बल तो समझो मर ही गया।
ओवरलोडिंग का महत्व- 1- सामग्री कम फेरों में पहुंच जाती है। 2- गाड़ी के इंजन पर अधिक लोड पड़ता है, जिससे इंजन जल्दी खराब होता है, फलतः इंजन बनाने वालों को रोजगार मिलता है। इंजन अल्युमिनियम से बनता है, अल्युमिनियम भारत में ही निकलता है, इसलिए चिंता
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की कोई बात नहीं। 3- ओवरलोड से यातायात में वाहनों की संख्या कम होती है, जिससे जाम की समस्या से काफी हद तक निजात मिलती है, जो भारतीय शहरों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 4- ओवरलोड से डीजल की बचत होती है, डीजल आयात करना पड़ता है, इसलिए डीजल की बचत से विदेशी मुद्रा की भी बचत होती है। 5- डीजल का आयात अरब देशों से होता है, जो आतंकवादियों को वित्तीय मदद पहुंचाते हैं, अतः डीजल के आयात में कमी आने से आतंकवाद में भी कमी आयेगी। 6- डीजल का उपयोग कम होने से ऑक्सीजन भी कम खर्च होगी और वातावरण में धुआं भी कम फैलेगा, अतः पर्यावरण प्रदूषण भी कम होगा। 7- ओवरलोड से गाड़ियां धीमी चलती हैं जिससे दुर्घटनाएं भी कम होती हैं। 8- ओवरलोड से ट्रक पलटने का खतरा बढ़ जाता है। ट्रक पलटने से सड़क किनारे रह रहे लोगों को न सिर्फ रोजगार मिलता है बल्कि अक्सर मुफ्त का माल भी मिलता है। 9- ओवरलोडिंग से सड़कें जल्दी खराब हो जाती हैं जिससे बचने के लिए pwd को सड़कें भी मजबूत बनानी पड़ती हैं, इस प्रकार रोड बनाने में कमीशनबाजी भी कम होती है। 10- ओवरलोडिंग से मोरंग, गिट्टी आदि सस्ती मिलती है जिससे सड़क एवं भवन निर्माण की लागत कम आती है। 11- अधिक सवारी बैठाना भी ओवर लोडिंग का एक विशिष्ट उदाहरण है। ट्रेनें और रोडवेज बसें इस विधा की एक्सपर्ट हैं। 12- ऑटो और टेम्पो भी ओवरलोडिंग में किसी से कम नहीं हैं। 13- ओवरलोडिंग के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान isro ने भी एक ही यान में 105 सैटेलाइट अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेज कर विश्व कीर्तिमान बनाते हुए देश का गौरव बढ़ाया है। 14- ओवरलोडिंग का डायरेक्ट लाभ गाड़ी मालिक और ड्राइवर को मिलता है जो इनडायरेक्टली दूसरों तक भी पहुंचता है। । जिस तरह से गाय को राष्ट्रीय पशु तथा बन्दर को राष्ट्रीय देवता घोषित किये जाने की योजना है, उसी तरह से ओवरलोडिंग को राष्ट्रीय व्यापार घोषित किया जाना चाहिए।
Hindi Kahani- हिंदी कहानी Haar Ki Jeet - Munshi Premchand हार की जीत - मुंशी प्रेम चंद
केशव से मेरी पुरानी लाग-डाँट थी। लेख और वाणी, हास्य और विनोद सभी क्षेत्रों में मुझसे कोसों आगे था। उसके गुणों की चंद्र-ज्योति में मेरे दीपक का प्रकाश कभी प्रस्फुटित न
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हुआ। एक बार उसे नीचा दिखाना मेरे जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा थी। उस समय मैंने कभी स्वीकार नहीं किया। अपनी त्रुटियों को कौन स्वीकार करता है पर वास्तव में मुझे ईश्वर ने उसकी जैसी बुद्धि-शक्ति न प्रदान की थी। अगर मुझे कुछ तस्कीन थी तो यह कि विद्याक्षेत्र में चाहे मुझे उनसे कंधा मिलाना कभी नसीब न हो, पर व्यवहार की रंगभूमि में सेहरा मेरे ही सिर रहेगा। लेकिन दुर्भाग्य से जब प्रणय-सागर में भी उसने मेरे साथ गोता मारा और रत्न उसी के हाथ लगता हुआ नजर आया तो मैं हताश हो गया। हम दोनों ने ही एम.ए. के लिए साम्यवाद का विषय लिया था। हम दोनों ही साम्यवादी थे। केशव के विषय में तो यह स्वाभाविक बात थी। उसका कुल बहुत प्रतिष्ठित न था, न वह समृद्धि ही थी जो इस कमी को पूरा कर देती। मेरी अवस्था इसके प्रतिकूल थी। मैं खानदान का ताल्लुकेदार और रईस था। मेरी साम्यवादिता पर लोगों को कुतूहल होता था। हमारे साम्यवाद के प्रोफेसर बाबू हरिदास भाटिया साम्यवाद के सिद्धांतों के कायल थे, लेकिन शायद धन की अवहेलना न कर सकते थे। अपनी लज्जावती के लिए उन्होंने कुशाग्र बुद्धि केशव को नहीं, मुझे पसंद किया। एक दिन संध्या-समय वह मेरे कमरे में आये और चिंतित भाव से बोले-शारदाचरण, मैं महीनों से एक बड़ी चिंता में पड़ा हुआ हूँ। मुझे आशा है कि तुम उसका निवारण कर सकते हो ! मेरे कोई पुत्र नहीं है। मैंने तुम्हें और केशव दोनों ही को पुत्र-तुल्य समझा है। यद्यपि केशव तुमसे चतुर है, पर मुझे विश्वास है कि विस्तृत संसार में तुम्हें जो सफलता मिलेगी, वह उसे नहीं मिल सकती। अतएव मैंने तुम्हीं को अपनी लज्जा के लिए वरा है। क्या मैं आशा करूँ कि मेरा मनोरथ पूरा होगा। मैं स्वतंत्र था, मेरे माता-पिता मुझे लड़कपन ही में छोड़ कर स्वर्ग चले गये थे। मेरे कुटुम्बियों में अब ऐसा कोई न था, जिसकी अनुमति लेने की मुझे जरूरत होती। लज्जावती जैसी सुशीला, सुन्दरी, सुशिक्षित स्त्री को पा कर कौन पुरुष होगा जो अपने भाग्य को न सराहता। मैं फूला न समाया। लज्जा एक कुसुमित वाटिका थी, जहाँ गुलाब की मनोहर सुगंधि थी और हरियाली की मनोरम शीतलता, समीर की शुभ्र तरंगे थीं और पक्षियों का मधुर संगीत। वह स्वयं साम्यवाद पर मोहित थी। स्त्रियों के प्रतिनिधित्व और ऐसे ही अन्य विषयों पर उसने मुझसे कितनी ही बार बातें की थीं। लेकिन प्रोफेसर भाटिया की तरह केवल सिद्धान्तों की भक्त न थी, उनको व्यवहार में भी लाना चाहती थी। उसने चतुर केशव को अपना स्नेह-पात्र बनाया था। तथापि मैं जानता था कि प्रोफेसर भाटिया के आदेश को वह कभी नहीं टाल सकती, यद्यपि उसकी इच्छा के विरुद्ध मैं उसे अपनी प्रणयिनी बनाने के लिए तैयार न था। इस विषय में मैं स्वेच्छा के सिद्धांत का कायल था। इसलिए मैं केशव की विरक्ति और क्षोभ से आशातीत आनन्द न उठा सका। हम दोनों ही दुःखी थे, और मुझे पहली बार केशव से सहानुभूति हुई। मैं लज्जावती से केवल इतना पूछना चाहता था कि उसने मुझे क्यों नजरों से गिरा दिया। पर उसके सामने ऐसे नाजुक प्रश्नों को छेड़ते हुए मुझे संकोच होता था, और यह स्वाभाविक था, क्योंकि कोई रमणी अपने अंतःकरण के रहस्यों को नहीं खोल सकती। लेकिन शायद लज्जावती इस परिस्थिति को मेरे सामने प्रकट करना अपना कर्तव्य समझ रही थी। वह इसका अवसर ढूँढ़ रही थी। संयोग से उसे शीघ्र ही अवसर मिल गया। संध्या का समय था। केशव राजपूत हॉस्टल में साम्यवाद पर एक व्याख्यान देने गया हुआ था। प्रोफेसर भाटिया उस जलसे के प्रधान थे। लज्जा अपने बँगले में अकेली बैठी हुई थी। मैं अपने अशांत हृदय के भाव छिपाये हुए, शोक और नैराश्य की दाह से जलता हुआ उसके समीप आ कर बैठ गया। लज्जा ने मेरी ओर एक उड़ती हुई निगाह डाली और सदय भाव से बोली-कुछ चिंतित जान पड़ते हो ? मैंने कृत्रिम उदासीनता से कहा-तुम्हारी बला से। लज्जा केशव का व्याख्यान सुनने नहीं गये ? मेरी आँखों से ज्वाला सी निकलने लगी। जब्त करके बोला आज सिर में दर्द हो रहा था। यह कहते-कहते अनायास ही मेरे नेत्रों से आँसू की कई बूँदें टपक पड़ीं। मैं अपने शोक को प्रदर्शित करके उसका करुणापात्र बनना नहीं चाहता था। मेरे विचार में रोना स्त्रियों के ही स्वाभावानुकूल था। मैं उस पर क्रोध प्रकट करना चाहता था और निकल पड़े आँसू। मन के भाव इच्छा के अधीन नहीं होते। मुझे रोते देख कर लज्जा की आँखों से आँसू गिरने लगे। मैं कीना नहीं रखता, मलिन हृदय नहीं हूँ, लेकिन न मालूम क्यों लज्जा के रोने पर मुझे इस समय एक आनन्द का अनुभव हुआ। उस शोकावस्था में भी मैं उस पर व्यंग्य करने से बाज न रह सका। बोला लज्जा, मैं तो अपने भाग्य को रोता हूँ। शायद तुम्हारे अन्याय की दुहाई दे रहा हूँ; लेकिन तुम्हारे आँसू क्यों ? लज्जा ने मेरी ओर तिरस्कार-भाव से देखा और बोली-मेरे आँसुओं का रहस्य तुम न समझोगे क्योंकि तुमने कभी समझने की चेष्टा नहीं की। तुम मुझे कटु वचन सुना कर अपने चित्त को शांत कर लेते हो। मैं किसे जलाऊँ। तुम्हें क्या मालूम है कि मैंने कितना आगा-पीछा सोचकर, हृदय को कितना दबाकर, कितनी रातें करवटें बदल कर और कितने आँसू बहा कर यह निश्चय किया है। तुम्हारी कुल-प्रतिष्ठा, तुम्हारी रियासत एक दीवार की भाँति मेरे रास्ते में खड़ी है। उस दीवार को मैं पार नहीं कर सकती। मैं जानती हूँ कि इस समय तुम्हें कुल-प्रतिष्ठा और रियासत का लेशमात्र भी अभिमान नहीं है। लेकिन यह भी जानती हूँ कि तुम्हारा कालेज की शीतल छाया में पला हुआ साम्यवाद बहुत दिनों तक सांसारिक जीवन की लू और लपट को न सह सकेगा। उस समय तुम अवश्य अपने फैसले पर पछताओगे और कुढ़ोगे। मैं तुम्हारे दूध की मक्खी और हृदय का काँटा बन जाऊँगी। मैंने आर्द्र होकर कहा-जिन कारणों से मेरा साम्यवाद लुप्त हो जायगा, क्या वह तुम्हारे साम्यवाद को जीता छोड़ेगा ? लज्जा हाँ, मुझे पूरा विश्वास है कि मुझ पर उनका जरा भी असर न होगा। मेरे घर में कभी रियासत नहीं रही और कुल की अवस्था तुम भलीभाँति जानते हो। बाबू जी ने केवल अपने अविरल परिश्रम और अध्यवसाय से यह पद प्राप्त किया है। मुझे वह नहीं भूला है जब मेरी माता जीवित थीं और बाबू जी 11 बजे रात को प्राइवेट ट्यूशन कर के घर आते थे। तो मुझे रियासत और कुल-गौरव का अभिमान कभी नहीं हो सकता, उसी तरह जैसे तुम्हारे हृदय से यह अभिमान कभी मिट नहीं सकता। यह घमंड मुझे उसी दशा में होगा जब मैं स्मृतिहीन हो जाऊँगी। मैंने उद्दंडता से कहा-कुल-प्रतिष्ठा को तो मैं मिटा नहीं सकता, मेरे वश की बात नहीं है, लेकिन तुम्हारे लिए मैं आज रियासत को तिलांजलि दे सकता हूँ। लज्जा क्रूर मुस्कान से बोली-फिर वही भावुकता ! अगर यह बात तुम किसी अबोध बालिका से करते तो कदाचित् वह फूली न समाती। मैं एक ऐसे गहन विषय में, जिस पर दो प्राणियों के समस्त जीवन का सुख-दुःख निर्भर है, भावुकता का आश्रय नहीं ले सकती। शादी बनावट नहीं है। परमात्मा साक्षी है, मैं विवश हूँ, मुझे अभी तक स्वयं मालूम नहीं है कि मेरी डोंगी किधर जायेगी; लेकिन मैं तुम्हारे जीवन को कंटकमय नहीं बना सकती। मैं यहाँ से चला तो इतना निराश न था जितना सचिंत। लज्जा ने मेरे सामने एक नयी समस्या उपस्थित कर दी थी।
हम दोनों साथ-साथ एम.ए. हुए। केशव प्रथम श्रेणी में आया, मैं द्वितीय श्रेणी में। उसे नागपुर के एक कालेज में अध्यापक का पद मिल गया। मैं घर आ कर अपनी रियासत का प्रबंध करने लगा। चलते समय हम दोनों गले मिल कर और रो कर विदा हुए। विरोध और ईर्ष्या को कालेज में छोड़ दिया। मैं अपने प्रांत का पहला ताल्लुकेदार था, जिसने एम.ए. पद प्राप्त किया हो। पहले तो राज्याधिकारियों ने मेरी खूब आवभगत की; लेकिन जब मेरे सामाजिक सिद्धांतों से अवगत हुए तो उनकी कृपादृष्टि कुछ शिथिल पड़ गयी। मैंने भी उनसे मिलना-जुलना छोड़ दिया। अपना अधिकांश समय असामियों के ही बीच में व्यतीत करता। पूरा साल भर भी न गुजरने पाया कि एक ताल्लुकेदार की परलोक-यात्र ने कौंसिल में एक स्थान खाली कर दिया। मैंने कौंसिल में जाने की अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की। लेकिन काश्तकारों ने अपने प्रतिनिधित्व का भार मेरे ही सिर रखा। बेचारा केशव तो अपने कालेज में लेक्चर देता था, किसी को खबर भी न थी कि वह कहाँ है और क्या कर रहा है और मैं अपने कुल-मर्यादा की बदौलत कौंसिल का मेम्बर हो गया। मेरी वक्तृताएँ समाचार-पत्रों में छपने लगीं। मेरे प्रश्नों की प्रशंसा होने लगी। कौंसिल में मेरा विशेष सम्मान होने लगा, कई सज्जन ऐसे निकल आये जो जनतावाद के भक्त थे। पहले वह परिस्थितियों से कुछ दबे हुए थे, अब वह खुल पड़े। हम लोगों ने लोकवादियों का अपना एक पृथक् दल बना लिया और कृषकों के अधिकारों को जोरों के साथ व्यक्त करना शुरू किया। अधिकांश भूपतियों ने मेरी अवहेलना की। कई सज्जनों ने धमकियाँ भी दीं; लेकिन मैंने अपने निश्चित पथ को न छोड़ा। सेवा के इस सुअवसर को क्योंकर हाथ से जाने देता। दूसरा वर्ष समाप्त होते-होते जाति के प्रधान नेताओं में मेरी गणना होने लगी। मुझे बहुत परिश्रम करना, बहुत पढ़ना, बहुत लिखना और बहुत बोलना पड़ता, पर जरा भी न घबराता। इस परिश्रमशीलता के लिए केशव का ऋणी था। उसी ने मुझे इतना अभ्यस्त बना दिया था। मेरे पास केशव और प्रोफेसर भाटिया के पत्र बराबर आते रहते थे। कभी-कभी लज्जावती भी मिलती थी। उसके पत्रों में श्रद्धा और प्रेम की मात्र दिनोंदिन बढ़ती जाती थी। वह मेरी राष्ट्रसेवा का बड़े उदार, बड़े उत्साहमय शब्दों में बखान करती। मेरे विषय में उसे पहले जो शंकाएँ थीं, वह मिटती जाती थीं। मेरी तपस्या की देवी को आकर्षित करने लगी थी। केशव के पत्रों से उदासीनता टपकती थी। उसके कालेज में धन का अभाव था। तीन वर्ष हो गये थे, पर उसकी तरक्की न हुई थी। पत्रों से ऐसा प्रतीत होता था मानो वह जीवन से असंतुष्ट है। कदाचित् इसका मुख्य कारण यह था कि अभी तक उसके जीवन का सुखमय स्वप्न चरितार्थ न हुआ था। तीसरे वर्ष गर्मियों की तातील में प्रोफेसर भाटिया मुझसे मिलने आये और बहुत प्रसन्न हो कर गये। उसके एक ही सप्ताह पीछे लज्जावती का पत्र आया, अदालत ने तजबीज सुना दी, मेरी डिग्री हो गयी। केशव की पहली बार मेरे मुकाबले में हार हुई। मेरे हर्षोल्लास की कोई सीमा न थी। प्रो. भाटिया का इरादा भारतवर्ष के सब प्रांतों में भ्रमण करने का था। वह साम्यवाद पर एक ग्रन्थ लिख रहे थे जिसके लिए प्रत्येक बड़े नगर में कुछ अन्वेषण करने की जरूरत थी। लज्जा को अपने साथ ले जाना चाहते थे। निश्चय हुआ कि उनके लौट आने पर आगामी चैत के महीने में हमारा संयोग हो जाय। मैं यह वियोग के दिन बड़ी बेसब्री से काटने लगा। अब तक मैं जानता था बाजी केशव के हाथ रहेगी, मैं निराश था, पर शांत था। अब आशा थी और उसके साथ घोर अशांति थी।
मार्च का महीना था। प्रतीक्षा की अवधि पूरी हो चुकी थी। कठिन परिश्रम के दिन गये, फसल काटने का समय आया। प्रोफेसर साहब ने ढाका से पत्र लिखा था कि कई अनिवार्य कारणों से मेरा लौटना मार्च में नहीं मई में होगा। इसी बीच में कश्मीर के दीवान लाला सोमनाथ कपूर नैनीताल आये। बजट पेश था। उन पर व्यवस्थापक सभा में वाद-विवाद हो रहा था। गवर्नर की ओर से दीवान साहब को पार्टी दी गयी। सभा के प्रतिनिधियों को भी निमंत्रण मिला। कौंसिल की ओर से मुझे अभिवादन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरी बकवास को दीवान साहब ने बहुत पसंद किया। चलते समय मुझसे कई मिनट तक बातें कीं और मुझे अपने डेरे पर आने का आदेश दिया। उनके साथ उनकी पुत्री सुशीला भी थी। वह पीछे सिर झुकाये खड़ी रही। जान पड़ता था, भूमि को पढ़ रही है। पर मैं अपनी आँखों को काबू में न रख सका। वह उतनी ही देर में एक बार नहीं, कई बार उठी और जैसे बच्चा किसी अजनबी की चुमकार से उसकी ओर लपकता है, पर फिर डर कर माँ की गोद से चिमट जाता है; वह भी डर कर आधे रास्ते से लौट गयी। लज्जा अगर कुसुमित वाटिका थी तो सुशीला शीतल सलिल-धारा थी जहाँ वृक्षों के कुंज थे, विनोदशील मृगों के झुंड, विहगावली की अनंत शोभा और तरंगों का मधुर संगीत। मैं घर पर आया तो ऐसा थका हुआ था जैसे कोई मंजिल मारकर आया हूँ। सौंदर्य जीवन-सुधा है। मालूम नहीं क्यों इसका असर इतना प्राणघातक होता है। लेटा तो वही सूरत सामने थी। मैं उसे हटाना चाहता था। मुझे भय था कि एक क्षण भी उस भँवर में पड़ कर मैं अपने को सँभाल न सकूँगा। मैं अब लज्जावती का हो चुका था, वही अब मेरे हृदय की स्वामिनी थी। मेरा उस पर कोई अधिकार न था लेकिन मेरे सारे संयम, सारी दलीलें निष्फल हुईं। जल के उद्वेग में नौका को धागे से कौन रोक सकता है। अंत में हताश हो कर मैंने अपने को विचारों के प्रवाह में डाल दिया। कुछ दूर तक नौका वेगवती तरंगों के साथ चली, फिर उसी प्रवाह में विलीन हो गयी। दूसरे दिन मैं नियत समय पर दीवान साहब के डेरे पर जा पहुँचा, इस भाँति काँपता और हिचकता जैसे कोई बालक दामिनी की चमक से चौंक-चौंक कर आँख बंद कर लेता है कि कहीं वह चमक न जाय, कहीं मैं उसकी चमक न देख लूँ; भोला-भाला किसान भी अदालत के सामने इतना सशंक न होता होगा। यथार्थ यह था कि मेरी आत्मा परास्त हो चुकी थी, उसमें अब प्रतिकार की शक्ति न रही थी। दीवान साहब ने मुझसे हाथ मिलाया और कोई घंटे भर तक आर्थिक और सामाजिक प्रश्नों पर वार्तालाप करते रहे। मुझे उनकी बहुज्ञता पर आश्चर्य होता था। ऐसा वाक्चतुर पुरुष मैंने कभी न देखा था। साठ वर्ष की वयस थी, पर हास्य और विनोद के मानो भंडार थे। न जाने कितने श्लोक, कितने कवित्त, कितने शेर उन्हें याद थे। बात-बात पर कोई न कोई सुयुक्ति निकाल लाते थे। खेद है उस प्रकृति के लोग अब गायब होते जाते हैं। वह शिक्षा प्रणाली न जाने कैसी थी, जो ऐसे-ऐसे रत्न उत्पन्न करती थी। अब तो सजीवता कहीं दिखायी ही नहीं देती। प्रत्येक प्राणी चिन्ता की मूर्ति है, उसके होंठों पर कभी हँसी आती ही नहीं। खैर, दीवान साहब ने पहले चाय मँगवायी, फिर फल और मेवे मँगवाये। मैं रह-रह कर इधर-उधर उत्सुक नेत्रों से देखता था। मेरे कान उसके स्वर का रसपान करने के लिए मुँह खोले हुए थे, आँखें द्वार की ओर लगी हुई थीं। भय भी था और लगाव भी, झिझक भी थी और खिंचाव भी। बच्चा झूले से डरता है पर उस पर बैठना भी चाहता है। लेकिन रात के नौ बज गये, मेरे लौटने का समय आ गया। मन में लज्जित हो रहा था कि दीवान साहब दिल में क्या कह रहे होंगे। सोचते होंगे इसे कोई काम नहीं है ? जाता क्यों नहीं, बैठे-बैठे दो ढाई घंटे तो हो गये। सारी बातें समाप्त हो गयीं। उनके लतीफे भी खत्म हो गये। वह नीरवता उपस्थित हो गयी, जो कहती है कि अब चलिए फिर मुलाकात होगी। यार जिंदा व सोहबत बाकी। मैंने कई बार उठने का इरादा किया, लेकिन इंतजार में आशिक की जान भी नहीं निकलती, मौत को भी इंतजार का सामना करना पड़ता है। यहाँ तक कि साढ़े नौ बज गये और अब मुझे विदा होने के सिवाय कोई मार्ग न रहा, जैसे दिल बैठ गया। जिसे मैंने भय कहा है, वह वास्तव में भय नहीं था, वह उत्सुकता की चरम सीमा थी। यहाँ से चला तो ऐसा शिथिल और निर्जीव था मानो प्राण निकल गये हों। अपने को धिक्कारने लगा। अपनी क्षुद्रता पर लज्जित हुआ। तुम समझते हो कि हम भी कुछ हैं। यहाँ किसी की तुम्हारे मरने-जीने की परवाह नहीं। माना उसके लक्षण क्वाँरियों के-से हैं। संसार में क्वाँरी लड़कियों की कमी नहीं। सौंदर्य भी ऐसी दुर्लभ वस्तु नहीं। अगर प्रत्येक रूपवती और क्वाँरी युवती को देख कर तुम्हारी वही हालत होती रही तो ईश्वर ही मालिक है। वह भी तो अपने दिल में यही विचार करती होगी। प्रत्येक रूपवान युवक पर उसकी आँखें क्यों उठें। कुलवती स्त्रियों के यह ढंग नहीं होते। पुरुषों के लिए अगर यह रूप-तृष्णा निंदाजनक है तो स्त्रियों के लिए विनाशकारक है। द्वैत से अद्वैत को भी इतना आघात नहीं पहुँच सकता, जितना सौंदर्य को। दूसरे दिन शाम को मैं अपने बरामदे में बैठा पत्र देख रहा था। क्लब जाने को भी जी नहीं चाहता था। चित्त कुछ उदास था। सहसा मैंने दीवान साहब को फिटन पर आते देखा। मोटर से उन्हें घृणा थी। वह उसे पैशाचिक उड़नखटोला कहा करते थे। उसके बगल में सुशीला थी। मेरा हृदय धक्-धक् करने लगा। उसकी निगाह मेरी तरफ उठी हो या न उठी हो, पर मेरी टकटकी उस वक्त तक लगी रही जब तक फिटन अदृश्य न हो गयी। तीसरे दिन मैं फिर बरामदे में आ बैठा। आँखें सड़क की ओर लगी हुई थीं। फिटन आयी और चली गयी। अब यही उसका नित्यप्रति का नियम हो गया है। मेरा अब यही काम था कि सारे दिन बरामदे में बैठा रहूँ। मालूम नहीं फिटन कब निकल जाय। विशेषतः तीसरे पहर तो मैं अपनी जगह से हिलने का नाम भी न लेता था। इस प्रकार एक मास बीत गया। मुझे अब कौंसिल के कामों में कोई उत्साह न था। समाचार-पत्रों में, उपन्यासों में जी न लगता। कहीं सैर करने का भी जी न चाहता। प्रेमियों को न जाने जंगल-पहाड़ में भटकने की, काँटों में उलझने की सनक कैसे सवार होती है। मेरे तो जैसे पैरों में बेड़ियाँ-सी पड़ गयी थीं। बस बरामदा था और मैं, और फिटन का इंतजार। मेरी विचारशक्ति भी शायद अंतर्धान हो गयी थी। मैं दीवान साहब को या अँगरेजी शिष्टता के अनुसार सुशीला को ही, अपने यहाँ निमंत्रित कर सकता था, पर वास्तव में मैं अभी तक उससे भयभीत था। अब भी लज्जावती को अपनी प्रणयिनी समझता था। वह अब भी मेरे हृदय की रानी थी, चाहे उस पर किसी दूसरी शक्ति का अधिकार ही क्यों न हो गया हो ! एक महीना और निकल गया, लेकिन मैंने लज्जा को कोई पत्र न लिखा। मुझमें अब उसे पत्र लिखने की भी सामर्थ्य न थी। शायद उससे पत्र- व्यवहार करने को मैं नैतिक अत्याचार समझता था। मैंने उससे दगा की थी। मुझे अब उसे अपने मलिन अंतःकरण में भी अपवित्र करने का कोई अधिकार न था। इसका अन्त क्या होगा ? यही चिंता अहर्निश मेरे मन पर कुहर मेघ की भाँति शून्य हो गयी थी। चिंता-दाह से दिनोंदिन घुलता जाता था। मित्रजन अक्सर पूछा करते आपको क्या मरज है ? मुख निस्तेज, कांतिहीन हो गया। भोजन औषधि के समान लगता। सोने जाता तो जान पड़ता, किसी ने पिंजरे में बंद कर दिया है। कोई मिलने आता तो चित्त उससे कोसों भागता। विचित्र दशा थी। एक दिन शाम को दीवान साहब की फिटन मेरे द्वार पर आ कर रुकी। उन्होंने अपने व्याख्यानों का एक संग्रह प्रकाशित कराया था। उसकी प्रति मुझे भेंट करने के लिए आये थे। मैंने उन्हें बैठने के लिए बहुत आग्रह किया, लेकिन उन्होंने यही कहा, सुशीला को यहाँ आने में संकोच होगा और फिटन पर अकेली वह घबरायेगी। वह चले तो मैं भी साथ हो लिया और फिटन तक पीछे-पीछे आया। जब वह फिटन पर बैठने लगे तो मैंने सुशीला को निःशंक हो आँख भर कर देखा, जैसे कोई प्यासा पथिक गर्मी के दिन में अफर कर पानी पिये कि न जाने कब उसे जल मिलेगा। मेरी उस एक चितवन में उग्रता, वह याचना, वह उद्वेग, वह करुणा, वह श्रद्धा, वह आग्रह, वह दीनता थी, जो पत्थर की मूर्ति को भी पिघला देती। सुशीला तो फिर स्त्री थी। उसने भी मेरी ओर देखा, निर्भीक सरल नेत्रों से, जरा भी झेंप नहीं, जरा भी झिझक नहीं। मेरे परास्त होने में जो कसर रह गयी थी, वह पूरी हो गयी। इसके साथ उसने मुझ पर मानो अमृत वर्षा कर दी। मेरे हृदय और आत्मा में एक नयी शक्ति का संचार हो गया। मैं लौटा तो ऐसा प्रसन्नचित्त था मानो कल्पवृक्ष मिल गया हो। एक दिन मैंने प्रोफेसर भाटिया को पत्र लिखा- मैं थोड़े दिनों से किसी गुप्त रोग से ग्रस्त हो गया हूँ। सम्भव है, तपेदिक (क्षय) का आरम्भ हो इसलिए मैं इस मई में विवाह करना उचित नहीं समझता। मैं लज्जावती से इस भांति पराङ्मुख होना चाहता था कि उनकी निगाहों में मेरी इज्जत कम न हो। मैं कभी-कभी अपनी स्वार्थपरता पर क्रुद्ध होता। लज्जा के साथ यह छल-कपट, यह बेवफ़ाई करते हुए मैं अपनी ही नजरों में गिर गया था। लेकिन मन पर कोई वश न था। उस अबला को कितना दुःख होगा, यह सोच कर मैं कई बार रोया। अभी तक मैं सुशीला के स्वभाव, विचार, मनोवृत्तियों से जरा भी परिचित न था। केवल उसके रूप-लावण्य पर अपनी लज्जा की चिरसंचित अभिलाषाओं का बलिदान कर रहा था। अबोध बालकों की भाँति मिठाई के नाम पर अपने दूध-चावल को ठुकराये देता था। मैंने प्रोफेसर को लिखा था- लज्जावती से मेरी बीमारी का जिक्र न करें, लेकिन प्रोफेसर साहब इतने गहरे न थे। चौथे ही दिन लज्जा का पत्र आया, जिसमें उसने अपना हृदय खोल कर रख दिया था। वह मेरे लिए सब कुछ, यहाँ तक कि वैधव्य की यंत्रणाएँ भी सहने के लिए तैयार थी। उसकी इच्छा थी कि अब हमारे संयोग में एक क्षण का भी विलम्ब न हो, अस्तु ! इस पत्र को लिये घंटों एक संज्ञाहीन दशा में बैठा रहा। इस अलौकिक आत्मोत्सर्ग के सामने अपनी क्षुद्रता, अपनी स्वार्थपरता, अपनी दुर्बलता कितनी घृणित थी !
लज्जावती सावित्री ने क्या सब कुछ जानते हुए भी सत्यवान से विवाह नहीं किया था ? मैं क्यों डरूँ ? अपने कर्तव्य-मार्ग से क्यों डिगूँ। मैं उनके लिए व्रत रखूँगी, तीर्थ करूँगी, तपस्या करूँगी। भय मुझे उनसे अलग नहीं कर सकता। मुझे उनसे कभी इतना प्रेम न था। कभी इतनी अधीरता न थी। यह मेरी परीक्षा का समय है, और मैंने निश्चय कर लिया है। पिता जी अभी यात्रा से लौटे हैं, हाथ खाली हैं, कोई तैयारी नहीं कर सके हैं। इसलिए दो-चार महीनों के विलम्ब से उन्हें तैयारी करने का अवसर मिल जाता; पर मैं अब विलम्ब न करूँगी। हम और वह इसी महीने में एक दूसरे के हो जायँगे, हमारी आत्माएँ सदा के लिए संयुक्त हो जायँगी, फिर कोई विपत्ति, दुर्घटना मुझे उनसे जुदा न कर सकेगी। मुझे अब एक दिन की देर भी असह्य है। मैं रस्म और रिवाज की लौंडी नहीं हूँ। न वही इसके गुलाम हैं। बाबू जी रस्मों के भक्त नहीं। फिर क्यों न तुरंत नैनीताल चलूँ ? उनकी सेवा-शुश्रूषा करूँ, उन्हें ढाढ़स दूँ। मैं उन्हें सारी चिंताओं से, समस्त विघ्न-बाधाओं से मुक्त कर दूँगी। इलाके का सारा प्रबन्ध अपने हाथों में लूँगी। कौंसिल के कामों में इतना व्यस्त हो जाने के कारण ही उनकी यह दशा हुई। पत्रों में अधिकतर उन्हीं के प्रश्न, उन्हीं की आलोचनाएँ, उन्हीं की वक्तृताएँ दिखायी देती हैं। मैं उनसे याचना करूँगी कि कुछ दिनों के लिए कौंसिल से इस्तीफा दे दें। वह मेरा गाना कितने चाव से सुनते थे। मैं उन्हें अपने गीत सुना कर प्रसन्न करूँगी, किस्से पढ़ कर सुनाऊँगी, उनको समुचित रूप से शांत रखूँगी। इस देश में तो इस रोग की दवा नहीं हो सकती। मैं उनके पैरों पर गिर कर प्रार्थना करूँगी कि कुछ दिनों के लिए यूरोप के किसी सैनिटोरियम चलें और विधिपूर्वक इलाज करायें। मैं कल ही कालेज के पुस्तकालय से इस रोग के सम्बन्ध की पुस्तकें लाऊँगी, और विचारपूर्वक उनका अध्ययन करूँगी। दो-चार दिन में कालेज बन्द हो जायगा। मैं आज ही बाबू जी से नैनीताल चलने की चर्चा करूँगी
आह ! मैंने कल उन्हें देखा तो पहचान न सकी। कितना सुर्ख चेहरा था, कितना भरा हुआ शरीर। मालूम होता था, ईंगुर भरी हुई है ! कितना सुन्दर अंग-विन्यास था ? कितना शौर्य्य था ! तीन ही वर्षों में यह कायापलट हो गयी, मुख पीला पड़ गया, शरीर घुल कर काँटा हो गया। आहार आधा भी नहीं रहा, हरदम चिंता में मग्न रहते हैं। कहीं आते-जाते नहीं देखती। इतने नौकर हैं, इतना सुरम्य स्थान है ! विनोद के सभी सामान मौजूद हैं; लेकिन इन्हें अपना जीवन अब अंधकारमय जान पड़ता है। इस कलमुँही बीमारी का सत्यानाश हो। अगर इसे ऐसी ही भूख थी तो मेरा शिकार क्यों न किया। मैं बड़े प्रेम से इसका स्वागत करती। कोई ऐसा उपाय होता कि यह बीमारी इन्हें छोड़कर मुझे पकड़ लेती ! मुझे देखकर कैसे खिल जाते थे और मैं मुस्कराने लगती थी। एक-एक अंग प्रफुल्लित हो जाता था। पर मुझे यहाँ दूसरा दिन है। एक बार भी उनके चेहरे पर हँसी न दिखायी दी। जब मैंने बरामदे में कदम रखा तब जरूर हँसे थे, किंतु कितनी निराश हँसी थी ! बाबू जी अपने आँसुओं को न रोक सके। अलग कमरे में जाकर देर तक रोते रहे। लोग कहते हैं, कौंसिल में लोग केवल सम्मान-प्रतिष्ठा के लोभ से जाते हैं। उनका लक्ष्य केवल नाम पैदा करना होता है। बेचारे मेम्बरों पर यह कितना कठोर आक्षेप है, कितनी घोर कृतघ्नता। जाति की सेवा में शरीर को घुलाना पड़ता है, रक्त को जलाना पड़ता है। यही जाति-सेवा का उपहार है। पर यहाँ के नौकरों को जरा भी चिंता नहीं है। बाबू जी ने इनके दो-चार मिलने वालों से बीमारी का जिक्र किया; पर उन्होंने भी परवाह न की। यह मित्रों की सहानुभूति का हाल है। सभी अपनी-अपनी धुन में मस्त हैं, किसी को खबर नहीं कि दूसरों पर क्या गुजरती है। हाँ, इतना मुझे भी मालूम होता है कि इन्हें क्षय का केवल भ्रम है। उसके कोई लक्षण नहीं देखती। परमात्मा करे मेरा अनुमान ठीक हो। मुझे तो कोई और ही रोग मालूम होता है। मैंने कई बार टेम्परेचर लिया। उष्णता साधारण थी। उसमें कोई आकस्मिक परिवर्तन भी न हुआ। अगर यही बीमारी है तो अभी आरम्भिक अवस्था है, कोई कारण नहीं कि उचित प्रयत्न से उसकी जड़ न उखड़ जाय। मैं कल से ही इन्हें नित्य सैर कराने ले जाऊँगी। मोटर की जरूरत नहीं, फिटन पर बैठने से ज्यादा लाभ होगा। मुझे यह स्वयं कुछ लापरवाह से जान पड़ते हैं। इस मरज के बीमारों को बड़ी एहतियात करते देखा है। दिन में बीसों बार तो थर्मामीटर देखते हैं। पथ्यापथ्य का बड़ा विचार रखते हैं। वे फल, दूध और पुष्टिकारक पदार्थों का सेवन किया करते हैं। यह नहीं कि जो कुछ रसोइये ने अपने मन से बनाकर सामने रख दिया, वही दो-चार ग्रास खा कर उठ आये। मुझे तो विश्वास होता जाता है कि इन्हें कोई दूसरी ही शिकायत है। जरा अवकाश मिले तो इसका पता लगाऊँ। कोई चिंता नहीं है ? रियासत पर कर्ज का बोझ तो नहीं है ? थोड़ा बहुत कर्ज तो अवश्य ही होगा। यह तो रईसों की शान है। अगर कर्ज ही इसका मूल कारण है तो अवश्य कोई भारी रकम होगी।
चित्त विविध चिंताओं से इतना दबा हुआ है कि कुछ लिखने को जी नहीं चाहता ! मेरे समस्त जीवन की अभिलाषाएँ मिट्टी में मिल गयीं। हा हतभाग्य ! मैं अपने को कितनी खुशनसीब समझती थी। अब संसार में मुझसे ज्यादा बदनसीब और कोई न होगा। वह अमूल्य रत्न जो मुझे चिरकाल की तपस्या और उपासना से न मिला, वह इस मृगनयनी सुंदरी को अनायास मिल जाता है। शारदा ने अभी उसे हाल में ही देखा है। कदाचित् अभी तक उससे परस्पर बातचीत करने की नौबत नहीं आयी। लेकिन उससे कितने अनुरक्त हो रहे हैं। उसके प्रेम में कैसे उन्मत्त हो गये हैं। पुरुषों को परमात्मा ने हृदय नहीं दिया, केवल आँखें दी हैं। वह हृदय की कद्र नहीं करना जानते, केवल रूप-रंग पर बिक जाते हैं। अगर मुझे किसी तरह विश्वास हो जाय कि सुशीला उन्हें मुझसे ज्यादा प्रसन्न रख सकेगी, उनके जीवन को अधिक सार्थक बना देगी, तो मुझे उसके लिए जगह खाली करने में जरा भी आपत्ति न होगी। वह इतनी गर्ववती, इतनी निठुर है कि मुझे भय है कहीं शारदा को पछताना न पड़े। लेकिन यह मेरी स्वार्थ-कल्पना है। सुशीला गर्ववती सही, निठुर सही, विलासिनी सही, शारदा ने अपना प्रेम उस पर अर्पण कर दिया है। वह बुद्धिमान हैं, चतुर हैं, दूरदर्शी हैं। अपना हानि-लाभ सोच सकते हैं। उन्होंने सब कुछ सोच कर ही निश्चय किया होगा। जब उन्होंने मन में यह बात ठान ली तो मुझे कोई अधिकार नहीं है कि उनके सुख-मार्ग का काँटा बनूँ। मुझे सब्र करके, अपने मन को समझा कर यहाँ से निराश, हताश, भग्नहृदय, विदा हो जाना चाहिए। परमात्मा से यही प्रार्थना है कि उन्हें प्रसन्न रखे। मुझे जरा भी ईर्ष्या, जरा भी दम्भ नहीं है। मैं तो उनकी इच्छाओं की चेरी हूँ। अगर उन्हें मुझको विष दे देने से खुशी होती तो मैं शौक से विष का प्याला पी लेती। प्रेम ही जीवन का प्राण है। हम इसी के लिए जीना चाहते हैं। अगर इसके लिए मरने का भी अवसर मिले तो धन्य भाग। यदि केवल मेरे हट जाने से सब काम सँवर सकते हैं तो मुझे कोई इनकार नहीं। हरि इच्छा ! लेकिन मानव शरीर पा कर कौन मायामोह से रहित होता है ? जिस प्रेम-लता को मुद्दतों से पाला था, आँसुओं से सींचा था, उसको पैरों तले रौंदा जाना नहीं देखा जाता। हृदय विदीर्ण हो जाता है। अब कागज तैरता जान पड़ता है, आँसू उमड़े चले आते हैं, कैसे मन को खींचूँ। हा ! जिसे अपना समझती थी, जिसके चरणों पर अपने को भेंट कर चुकी थी, जिसके सहारे जीवन-लता पल्लवित हुई थी, जिसे हृदय-मन्दिर में पूजती थी, जिसके ध्यान में मग्न हो जाना जीवन का सबसे प्यारा काम था, उससे अब अनन्त काल के लिए वियोग हो रहा है। आह ! किससे अब फरियाद करूँ ? किसके सामने जा कर रोऊँ ? किससे अपनी दुःख-कथा कहूँ। मेरा निर्बल हृदय यह वज्राघात नहीं सह सकता। यह चोट मेरी जान लेकर छोड़ेगी। अच्छा ही होगा। प्रेम-विहीन हृदय के लिए संसार कालकोठरी है, नैराश्य और अंधकार से भरी हुई। मैं जानती हूँ अगर आज बाबू जी उनसे विवाह के लिए जोर दें तो वह तैयार हो जायँगे, बस मुरौवत के पुतले हैं। केवल मेरा मन रखने के लिए अपनी जान पर खेल जायेंगे। वह उन शीलवान पुरुषों में हैं जिन्होंने ‘नहीं’ करना ही नहीं सीखा। अभी तक उन्होंने दीवान साहब से सुशीला के विषय में कोई बातचीत नहीं की। शायद मेरा रुख देख रहे हैं। इसी असमंजस ने उन्हें इस दशा को पहुँचा दिया है। वह मुझे हमेशा प्रसन्न रखने की चेष्टा करेंगे। मेरा दिल कभी न दुखावेंगे, सुशीला की चर्चा भूल कर भी न करेंगे। मैं उनके स्वभाव को जानती हूँ। वह नर-रत्न हैं। लेकिन मैं उनके पैरों की बेड़ी नहीं बनना चाहती। जो कुछ बीते अपने ही ऊपर बीते। उन्हें क्यों समेटूँ ? डूबना ही है तो आप क्यों न डूबूँ, उन्हें अपने साथ क्यों डुबाऊँ ? वह भी जानती हूँ कि यदि इस शोक ने घुला-घुला कर मेरी जान ले ली तो यह अपने को कभी क्षमा न करेंगे। उनका समस्त जीवन क्षोभ और ग्लानि को भेंट हो जायेगा, उन्हें कभी शांति न मिलेगी। कितनी विकट समस्या है। मुझे मरने की भी स्वाधीनता नहीं। मुझे इनको प्रसन्न रखने के लिए अपने को प्रसन्न रखना होगा। उनसे निष्ठुरता करनी पड़ेगी। त्रियाचरित्र खेलना पड़ेगा। दिखाना पड़ेगा कि इस बीमारी के कारण अब विवाह की बातचीत अनर्गल है। वचन को तोड़ने का अपराध अपने सिर लेना पड़ेगा। इसके सिवाय उद्धार की और कोई व्यवस्था नहीं ? परमात्मा मुझे बल दो कि इस परीक्षा में सफल हो जाऊँ।
शारदाचरण एक ही निगाह ने निश्चय कर दिया। लज्जा ने मुझे जीत लिया। एक ही निगाह से सुशीला ने भी मुझे जीता था। उस निगाह में प्रबल आकर्षण था, एक मनोहर सारल्य, एक आनन्दोद्गार, जो किसी भाँति छिपाये नहीं छिपता था, एक बालोचित उल्लास, मानो उसे कोई खिलौना मिल गया हो। लज्जा की चितवन में क्षमा थी और थी करुणा, नैराश्य तथा वेदना। वह अपने को मेरी इच्छा पर बलिदान कर रही थी। आत्म-परिचय में उसे सिद्धि है। उसने अपनी बुद्धिमानी से सारी स्थिति ताड़ ली और तुरंत फैसला कर लिया। वह मेरे सुख में बाधक नहीं बनना चाहती थी। उसके साथ ही यह भी प्रकट करना चाहती थी कि मुझे तुम्हारी परवाह नहीं है। अगर तुम मुझसे जौ भर खिंचोगे तो मैं तुमसे गज भर खिंच जाऊँगी। लेकिन मनोवृत्तियाँ सुगंध के समान हैं जो छिपाने से नहीं छिपतीं। उसकी निठुरता में नैराश्यमय वेदना थी, उसकी मुस्कान में आँसुओं की झलक। वह मेरी निगाह बचा कर क्यों रसोई में चली जाती थी और कोई न कोई पाक, जिसे वह जानती है कि मुझे रुचिकर है, बना लाती थी ? वह मेरे नौकरों को क्यों आराम से रखने की गुप्त रीति से ताकीद किया करती थी ? समाचारपत्रों को क्यों मेरी निगाह से छिपा दिया करती थी ? क्यों संध्या समय मुझे सैर करने को मजबूर किया करती थी ? उसकी एक-एक बात उसके हृदय का परदा खोल देती थी। उसे कदाचित् मालूम नहीं है कि आत्म-परिचय रमणियों का विशेष गुण नहीं। उस दिन जब प्रोफेसर भाटिया ने बातों ही बातों में मुझ पर व्यंग्य किये, मुझे वैभव और सम्पत्ति का दास कहा और मेरे साम्यवाद की हँसी उड़ानी चाही तो उसने कितनी चतुरता से बात टाल दी। पीछे से मालूम नहीं उसने उन्हें क्या कहा; पर मैं बरामदे में बैठा सुन रहा था कि बाप और बेटी बगीचे में बैठे हुए किसी विषय पर बहस कर रहे हैं। कौन ऐसा हृदयशून्य प्राणी है जो निष्काम सेवा के वशीभूत न हो जाय। लज्जावती को मैं बहुत दिनों से जानता हूँ। पर मुझे ज्ञात हुआ कि इसी मुलाकात में मैंने उसका यथार्थ रूप देखा। पहले मैं उसकी रूपराशि का, उसके उदार विचारों का, उसकी मृदुवाणी का भक्त था। उसकी उज्ज्वल, दिव्य आत्मज्योति मेरी आँखों से छिपी हुई थी। मैंने अबकी ही जाना कि उसका प्रेम कितना गहरा, कितना पवित्र, कितना अगाध है। इस अवस्था में कोई दूसरी स्त्री ईर्ष्या से बावली हो जाती, मुझसे नहीं तो सुशीला से तो अवश्य ही जलने लगती, आप कुढ़ती, उसे व्यंग्यों से छेदती और मुझे धूर्त, कपटी, पाषाण, न जाने क्या-क्या कहती। पर लज्जा ने जितने विशुद्ध प्रेम-भाव से सुशीला का स्वागत किया, वह मुझे कभी न भूलेगा मालिन्य, संकीर्णता, कटुता का लेश न था। इस तरह उसे हाथों-हाथ लिये फिरती थी मानो छोटी बहिन उसके यहाँ मेहमान है। सुशीला इस व्यवहार पर मानो मुग्ध हो गयी। आह ! वह दृश्य भी चिरस्मरणीय है, जब लज्जावती मुझसे विदा होने लगी। प्रोफेसर भाटिया मोटर पर बैठे हुए थे। वह मुझसे कुछ खिन्न हो गये और जल्दी से जल्दी भाग जाना चाहते थे। लज्जा एक उज्ज्वल साड़ी पहने हुए मेरे सम्मुख आ कर खड़ी हो गयी। वह एक तपस्विनी थी, जिसने प्रेम पर अपना जीवन अर्पण कर दिया हो, श्वेत पुष्पों की माला थी जो किसी देवमूर्ति के चरणों पर पड़ी हुई हो। उसने मुस्करा कर मुझसे कहा-कभी-कभी पत्र लिखते रहना, इतनी कृपा की मैं अपने को अधिकारिणी समझती हूँ। मैंने जोश से कहा- हाँ, अवश्य। लज्जावती ने फिर कहा- शायद यह हमारी अंतिम भेंट हो। न जाने मैं कहाँ रहूँगी, कहाँ जाऊँगी; फिर कभी आ सकूँगी या नहीं। मुझे बिलकुल भूल न जाना। अगर मेरे मुँह से कोई ऐसी बात निकल आयी हो जिससे तुम्हें दुःख हुआ हो तो क्षमा करना और ... अपने स्वास्थ्य का बहुत ध्यान रखना। यह कहते हुए उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाये। हाथ काँप रहे थे। कदाचित् आँखों में आँसुओं का आवेग हो रहा था। वह जल्दी से कमरे के बाहर निकल जाना चाहती थी। अपने जब्त पर अब उसे भरोसा न था। उसने मेरी ओर दबी आँखों से देखा। मगर इस अर्द्ध-चितवन में दबे हुए पानी का वेग और प्रवाह था। ऐसे प्रवाह में मैं स्थिर न रह सका। इस निगाह ने हारी हुई बाजी जीत ली; मैंने उसके दोनों हाथ पकड़ लिये और गद्गद स्वर से बोला नहीं लज्जा, अब हममें और तुममें कभी वियोग न होगा।
सहसा चपरासी ने सुशीला का पत्र लाकर सामने रख दिया। लिखा था- प्रिय श्री शारदाचरण जी, हम लोग कल यहाँ से चले जायँगे। मुझे आज बहुत काम करना है, इसलिए मिल न सकूँगी। मैंने आज रात को अपना कर्तव्य स्थिर कर लिया। मैं लज्जावती के बने-बनाये घर को उजाड़ना नहीं चाहती। मुझे पहले यह बात न मालूम थी, नहीं तो हममें इतनी घनिष्ठता न होती। मेरा आपसे यही अनुरोध है कि लज्जा को हाथ से न जाने दीजिए। वह नारी-रत्न है। मैं जानती हूँ कि मेरा रूप-रंग उससे कुछ अच्छा है और कदाचित् आप उसी प्रलोभन में पड़ गये; लेकिन मुझमें वह त्याग, वह सेवा भाव, वह आत्मोत्सर्ग नहीं है। मैं आपको प्रसन्न रख सकती हूँ, पर आपके जीवन को उन्नत नहीं कर सकती, उसे पवित्र और यशस्वी नहीं बना सकती। लज्जा देवी है, वह आपको देवता बना देगी। मैं अपने को इस योग्य नहीं समझती। कल मुझसे भेंट करने का विचार न कीजिए, रोने-रुलाने से क्या लाभ। क्षमा कीजिएगा। आपकी सुशीला मैंने यह पत्र लज्जा के हाथ में रख दिया। वह पढ़ कर बोली- मैं उससे आज ही मिलने जाऊँगी। मैंने उसका आशय समझ कर कहा- क्षमा करो, तुम्हारी उदारता की दूसरी बार परीक्षा नहीं लेना चाहता। यह कह कर मैं प्रोफेसर भाटिया के पास गया। वह मोटर पर मुँह फुलाये बैठे थे। मेरे बदले लज्जावती आयी होती तो उस पर जरूर ही बरस पड़ते। मैंने उनके पद स्पर्श किये और सिर झुका कर बोला- आपने मुझे सदैव अपना पुत्र समझा है। अब उस नाते को और भी दृढ़ कर दीजिए। प्रोफेसर भाटिया ने पहले तो मेरी ओर अविश्वासपूर्ण नेत्रों से देखा तब मुस्करा कर बोले- यह तो मेरे जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा थी।
एक बार एक आदमी ने गाँव वालों से कहा कि वो 100 रु. में एक बन्दर खरीदेगा,
ये सुनकर सभी गाँव वाले नजदीकी जंगल की ओर दौड़ पड़े और वहां से बन्दर पकड़ पकड़ कर 100 रु. में उस आदमी को बेचने
...
लगे ......
कुछ दिन बाद ये सिलसिला कम हो गया और लोगों की इस बात में दिलचस्पी कम हो गयी ......
फिर उस आदमी ने कहा की वो एक एक बन्दर के लिए 200 रु. देगा , ये सुनकर लोग फिर बन्दर पकड़ने मे लग गये
लेकिन कुछ दिन बाद मामला फिर ठंडा हो गया ....
अब उस आदमी ने कहा कि वो बंदरों के लिए 500 रु. देगा , लेकिन क्यूंकि उसे शहर जाना था, उसने इस काम के लिए एक असिस्टेंट नियुक्त कर दिया ........
500 रु. सुनकर गाँव वाले बदहवास हो गए , लेकिन पहले ही लगभग सारे बन्दर पकड़े जा चुके थे इसलिए उन्हें कोई हाथ नहीं लगा ......।
तब उस आदमी का असिस्टेंट उनसे आकर कहता है ..... "आप लोग चाहें तो सर के पिंजरे में से 400 -400 रु. में बन्दर खरीद सकते हैं , जब सर आ जाएँ तो 500-500 में बेच दीजियेगा।
गाँव वालों को ये प्रस्ताव भा गया और उन्होंने (100-200 रु. में बेचे हुए) सारे बन्दर 400 - 400 रु. में खरीद लिए ....।
अनुच्छेद 360, राष्ट्रपति को वित्तीय आपातकाल की घोषणा करने का अधिकार देता है. यदि राष्ट्रपति संतुष्ट है कि देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसके कारण भारत की वित्तीय स्थिरता, भारत की साख या उसके क्षेत्र के किसी भी हिस्से की वित्तीय स्थिरता
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को खतरा है, तो वह केंद्र की सलाह पर वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है.
लेकिन यह ध्यान रहे कि 1978 के 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है कि राष्ट्रपति की ‘संतुष्टि’ न्यायिक समीक्षा से परे नहीं है, अर्थात सुप्रीम कोर्ट इसकी समीक्षा कर सकता है.
वित्तीय आपातकाल कैसे और कब तक के लिए लगाया जाता है (Parliamentary Approval and Duration of the Financial Emergency)
जिस दिन राष्ट्रपति, वित्तीय आपातकाल की घोषणा करता है उसके दो माह के अंदर ही इसको संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए. वित्तीय आपातकाल की घोषणा को मंजूरी देने वाले प्रस्ताव को संसद के किसी भी सदन द्वारा केवल एक साधारण बहुमत द्वारा पारित किया जा सकता है.
एक बार संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद, वित्तीय आपातकाल अनिश्चित काल तक जारी रहता है, जब तक कि इसे राष्ट्रपति द्वारा हटाया नहीं जाता है. इसके दो प्रावधान है;
a. इसके संचालन के लिए कोई अधिकतम अवधि निर्धारित नहीं है; और b. इसकी निरंतरता के लिए बार-बार संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है. वित्तीय आपातकाल की उद्घोषणा को राष्ट्रपति द्वारा बाद में किसी भी समय रद्द किया जा सकता है. इस तरह की उद्घोषणा को संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है. वित्तीय आपातकाल के प्रभाव (Effects of Financial Emergency)
1. वित्तीय आपातकाल के दौरान केंद्र के कार्यकारी अधिकार का विस्तार हो जाता है और वह किसी भी राज्य को अपने हिसाब से वित्तीय आदेश दे सकता है.
2. राज्य की विधायिका द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति के विचार के लिए आये सभी धन विधेयकों या अन्य वित्तीय बिलों को रिज़र्व रखा जा सकता है.
3. राज्य में नौकरी करने वाले सभी व्यक्तियों या वर्गों के वेतन और भत्ते में कमी की जा सकती है.
4. राष्ट्रपति, निम्न व्यक्तियों के वेतन एवं भत्तों में कमी करने का निर्देश जारी कर सकता है;
a. संघ की सेवा करने वाले सभी व्यक्तियों या किसी भी वर्ग के लोग
b. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश.
इस प्रकार, वित्तीय आपातकाल के संचालन के दौरान केंद्र; वित्तीय मामलों में राज्यों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेता है जो कि राज्य की वित्तीय संप्रभुता के लिए खतरे वाली स्थिति होती है.
इससे पहले भारत में 1991 गंभीर वित्तीय संकट उत्पन्न हुआ थ लेकिन फिर भी वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) की घोषणा नहीं की गई थी.
1. पृष्ठभूमि उत्तर प्रदेश सरकार के सरकारी सेवकों के लिए प्रदेश के लोक लेखे के अंतर्गत सामान्य भविष्य निधि नामक एक निधि स्थापित है जिसमें वे अभिदाता के
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रूप में अभिदान करते है। मूल नियम 16 के अंतर्गत उत्तर प्रदेश सरकार को अपने सरकारी सेवकों को भविष्य निधि में अभिदान करने के लिए निर्देशित करने की शक्ति प्राप्त है। सरकार अभिदाता के नाम भविष्य निधि खाते की धनराशि पर नियमानुसार ब्याज देती है। अभिदाता को अपने सामान्य भविष्य निधि खाते से नियमानुसार अग्रिम या अंतिम निष्कासन की सुविधा उपलब्ध रहती है। अभिदाता के सेवानिवृत्ति, सेवा त्याग, पृथक्करण पदच्युति या मृत्यु की स्थितियों में उसके सामान्य भविष्य निधि खाते से अंतिम भुगतान कर दिया जाता है। मृत्यु की स्थिति मे अंतिम भुगतान प्राप्त करने वाले को सरकार की तरफ से जमा सम्बद्ध बीमा योजना के अन्तर्गत धनराशि नियमानुसार अनुमन्य होने पर दी जाती है। सामान्य भविष्य निधि की धनराशि को किसी भी प्रकार के सम्बद्धीकरण, वसूली या समनुदेशन से पी0एफ0 ऐक्ट 1925 की धारा-3 के अंतर्गत सुरक्षा प्राप्त है। इससे सरकारी देयों की वसूली भी अभिदाता की सहमति के बिना नहीं की जा सकती है।
"Protection of Compulsory Deposit : (1) A Compulsory deposit in any Government or Railway Provident Fund shall not in any way be capable of being assigned or charged and shall not be liable to attachment under any decree or order of any Civil, Revenue or Criminal Court in respect of any debit or liability incurred by the subscriber or Depositor, and neither the official Assignee nor any recover appointed under the Provincial Insolvency Act 1920 shall be entitled to, or have any claim on, any such compulsory Deposit"
अत: स्पष्ट है कि सरकारी कर्मचारी की किसी देनदारी या उधारी के होते हुए भी उसके भविष्य निधि में जमा धन से न तो किसी प्रकार की वसूली ही की जा सकती है और न ही उसके भविष्य निधि खाते का सम्बद्धीकरण (attachment) किया जा सकता है।
2. प्रगति
(क) शासनादेश संख्या सा-4-ए0जी0-57/दस-84-510-84 दिनांक 26 दिसम्बर, 1984 द्वारा सभी वर्ग के राजकीय कर्मचारियों के लिए पासबुक प्रणाली लागू की गयी। इसके अन्तर्गत आहरण एवं वितरण अधिकारी प्रत्येक मास पास बुकों में जमा एवं भुगतानों की प्रविष्टियाँ करते हैं तथा वर्ष के अन्त में वार्षिक ब्याज का आगणन और वार्षिक लेखाबन्दी करते हैं। सेवानिवृत्ति के समय चतुर्थ श्रेणी के सरकारी सेवक की पासबुक में उपलब्ध धनराशि का पूर्ण भुगतान कर दिया जाता है जबकि अन्य सरकारी सेवकों के मामलें में उनकी पासबुक में उपलब्ध धनराशि के 90 प्रतिशत का भुगतान कर दिया जाता है तथा शेष 10 प्रतिशत का भुगतान सेवानिवृत्ति के विलम्बतम 3 माह के भीतर महालेखाकार के लेखों से मिलान करके महालेखाकार के प्राधिकार पत्र पर किया जाता है।
(ख) सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) नियमावली 1985
संविधान के अनुच्छेद 309 के परन्तुक द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करके राज्यपाल द्वारा सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) नियमावली 1985 बनायी गयी है। यह नियमावली 7 मार्च 1935 की अधिसूचना के साथ प्रकाशित जनरल प्रोवीडेन्ट फन्ड (उत्तर प्रदेश) रूल्स का अतिक्रमण करके बनाई गई। इस नियमावली में 28 नियम हैं तथा नियमावली के अन्त में चार अनुसूचियां तथा अस्थायी अग्रिम/अंतिम निष्कासन एवं सामान्य भविष्य निधि के 90 प्रतिशत भुगतान की स्वीकृति से सम्बन्धित आदेश के फार्म निर्धारित प्रारूप पर दिये गये हैं।
(ग) सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) (प्रथम संशोधन) नियमावली, 1997
इस नियमावली के द्वारा सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) नियमावली 1985 के नियम संख्या 4, 5 एवं 23 में संशोधन किये गये हैं जिन्हें यथास्थान नीचे आलेख में सम्मिलित किया जा रहा है।
(घ) सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) (द्वितीय संशोधन) नियमावली, 2000
इस नियमावली के द्वारा सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) नियमावली 1985 नियम संख्या 24 के नीचे स्तम्भ - 1 में दिये गये उप नियम (4) और (5) में संशोधन किये गये हैं। इस संशोधन के द्वारा सामान्य भविष्य निधि नियमावली 1985 की उस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है जिसके अन्तर्गत अधिवर्षता पर सेवानिवृत्ति के मामले में सेवानिवृत्ति के दिनांक के 6 मास पूर्व तथा अन्य मामलों में जब धनराशि देय हो जाये, के एक माह के भीतर अभिदाता अथवा उसके परिवार के सदस्य, जैसी भी स्थिति हो, को यथास्थिति प्रपत्र 425-क अथवा 425-ख पर आवेदन पत्र प्रस्तुत करना होता था। आवेदन पत्र प्रस्तुत करने में विलम्ब होने पर सामान्य भविष्य निधि के भुगतान में काफी विलम्ब हो जाता था और इसके लिए कार्यालय का उत्तरदायित्व नहीं बनता था। इस संशोधित व्यवस्था के अनुसार अब प्रपत्र 425-क अथवा 425-ख पर आवेदन की प्रतीक्षा किये बिना ही सम्बन्धित कार्यालय सामान्य भविष्य निधि के अंतिम भुगतान के संबंध में अपेक्षित कार्यवाही करेगा जिससे कि पाने वाला अधिवर्षता पर सेवानिवृत्ति के मामले में सेवानिवृत्ति के दिनांक को और अन्य मामलों में धनराशि देय हो जाने के दिनांक से तीन माह के भीतर भुगतान प्राप्त कर सके।
(ड़) सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) (संशोधन) नियमावली, 2005
इस नियमावली के द्वारा सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) नियमावली 1985 के नियम संख्या-4 में एक महत्वपूर्ण संशोधन यह किया गया है कि "कोई सरकारी सेवक जो 01 अप्रैल, 2005 को या उसके पश्चात सेवा में प्रवेश करता है, निधि में अभिदान नहीं करेगा।"
3. परिभाषाएँ (नियम 2)
(क) लेखाधिकारी - समूह घ के कर्मचारियों के लिये जिनका लेखा विभागीय प्राधिकारियों द्वारा रखा जाता है, लेखाधिकारी का तात्पर्य सम्बद्ध आहरण एवं वितरण अधिकारी से है। अन्य कर्मचारियों के सन्दर्भ में इस हेतु भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक द्वारा अधिकृत प्राधिकारी - महालेखाकार उत्तर प्रदेश से है।
(ख) परिलब्धियाँ - वित्तीय नियम संग्रह खण्ड 2 के भाग 2 से 4 में यथापरिभाषित वेतन, अवकाश वेतन, या जीवन निर्वाह अनुदान (सब्सिस्टेन्स ग्रांट)। इसमें वाह्य सेवा के सम्बन्ध में प्राप्त किये गये वेतन की प्रकृति के भुगतान तथा वेतन, अवकाश वेतन का जीवन निर्वाह अनुदान यदि देय हो पर देय समुचित मंहगाई वेतन भी सम्मिलित है।
(मूल वेतन के 50 प्रतिशत के बराबर मंहगाई भत्ते के मंहगाई वेतन में परिवर्तन संबंधी शासनादेश संख्या वे.आ.-2-075/दस-2005-41/04 दिनांक 22-9-2005 के प्रस्तर -4 के अनुसार इस मंहगाई वेतन को सामान्य भविष्य निर्वाह निधि (उत्तर प्रदेश) नियमावली 1985 के विभिन्न प्राविधानों के प्रयोजनार्थ मूल वेतन माना जायेगा।)
(ग) परिवार - अभिदाता के परिवार में निम्नलिखित का समावेश होगा :-
अभिदाता का पति/अभिदाता की पत्नी या पत्नियां
अभिदाता के बच्चे
अभिदाता के मृतक पुत्र की विधवा या विधवाएं
अभिदाता के मृतक पुत्र के बच्चे
बच्चे का तात्पर्य वैध बच्चों से है और उन मामलों में जहाँ गोद लेना अभिदाता के वैयक्तिक कानून के अंतर्गत मान्य हो, गोद लिये गये बच्चे भी शामिल है।
पुरूष अभिदाता, यह सिद्ध करने पर कि उसका अपनी पत्नी से कानूनी विलगाव हो चुका है या वह अपने समुदाय के कस्टमरी कानून के अंतर्गत गुजारा पाने की हकदार नहीं रह गई हैं, अपनी पत्नी को ऐसे मामले में जिनमें यह नियमावली सम्बन्धित हो परिवार की परिधि से बाहर कर सकता है। किन्तु वह लेखाधिकारी को सूचना दे कर इस प्रकार से बाहर की गई पत्नी को परिवार में पुन: शामिल कर सकता है। यदि महिला अभिदाता चाहे तो लेखाधिकारी को लिखित सूचना के द्वारा अपने पति को परिवार की परिधि से बाहर कर सकती है। किन्तु वह इस सूचना को लिखित रूप से रद्द कर के इस प्रकार से बाहर किये गये पति को परिवार में पुन: शामिल कर सकती है।
(घ) निधि - निधि का तात्पर्य सामान्य भविष्य निधि से है।
(ड़) अवकाश - अवकाश का तात्पर्य वित्तीय नियम संग्रह खण्ड दो के भाग 2 से 4 में यथा उपबंधित किसी प्रकार के अवकाश से है।
(च) उपक्रम - 1. केन्द्र तथा उ0प्र0 राज्य के अधिनियम द्वारा या उसके अधीन निगमित परिनियत निकाय।
2. कंपनी ऐक्ट 1956 की धारा 617 के अर्थों में सरकारी कम्पनी।
3. उ0प्र0 जनरल क्लाजेज ऐक्ट, 1904 की धारा 4 के खण्ड (क्लाज) (25) के अर्थों में स्थानीय प्राधिकारी।
4. सोसाइटी रजिस्ट्रेशन ऐक्ट 1860 के अधीन पंजीकृत पूर्णत: या अंशत: राज्य या केन्द्र सरकार से नियंत्रित वैज्ञानिक संगठन।
(छ) वर्ष :- वर्ष का तात्पर्य वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से 31 मार्च तक) से है।
नोट:- इस नियमावली में प्रयुक्त कोई भी अन्य अभिकथन (एक्सप्रेशन), जो कि भविष्य निधि अधिनियम 1925 या वित्तीय नियम संग्रह खण्ड दो भाग 2 से 4 में परिभाषित हो, उसी भाव में प्रयुक्त किया गया है।
4. पात्रता की शर्तें (नियम 4)
उ0प्र0 सामान्य भविष्य निधि की पात्रता की शर्तों में सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) प्रथम संशोधन नियमावली 1997 दिनांक 29 जुलाई 1997 के द्वारा संशोधन किया गया था जिसके अनुसार संविदा पर नियुक्त कर्मचारियों और पुनर्नियोजित पेंशनभोगियों से भिन्न समस्त स्थायी सरकारी सेवक और समस्त अस्थायी सरकारी सेवक (एप्रेन्टिस और प्रोबेशनर सहित), जिनकी सेवायें एक वर्ष से अधिक तक जारी रहने की संभावना हो, सेवा में कार्य भार ग्रहण करने की तिथि से निधि में अभिदान करेंगे किन्तु, शासनादेश संख्या सा-3-470/दस-2005-301(9)/03, दिनांक 7 अप्रैल, 2005 के द्वारा जारी अधिसूचना के द्वारा बनाई गई सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) (संशोधन) नियमावली, 2005 के अनुसार कोई सरकारी सेवक जो 1 अप्रैल, 2005 को या उसके पश्चात सेवा में प्रवेश करता है, निधि में अभिदान नहीं करेगा।
5. नामांकन (नियम 5)
(क) निधि का सदस्य बनने पर अभिदाता, अपनी मृत्यु की स्थिति में भविष्य निधि से संबंधित धनराशि प्राप्त करने के लिये एक या अधिक व्यक्तियों को नामांकित करेगा। व्यक्ति/व्यक्तियों (पर्सन) में कोई कम्पनी या व्यक्तियों (इन्डिविजुवल) का संगम या निकाय भी है चाहे वह निगमित हो या नहीं। नामांकन करते समय अभिदाता का परिवार हो तो परिवार के सदस्य या सदस्यों के पक्ष में ही नामांकन करना होगा।
(ख) नामांकन करते समय अभिदाता का परिवार न होने की दशा में वह नामांकन में व्यवस्था करेगा कि बाद में उसका परिवार हो जाने की दशा में वह अविधिमान्य हो जायेगा।
(ग) एक से अधिक व्यक्तियों के नामांकित होने की दशा में प्रत्येक को मिलने वाले हिस्से का उल्लेख होना चाहिये। यदि एक ही व्यक्ति का नामांकन है तब भी उसके नाम के सामने, हिस्से वाले स्तम्भ में, पूर्ण लिखा जाना चाहिये।
(घ) नामांकन निर्धारित प्रपत्र पर तथा जी0पी0एफ0 पास बुक में दिनांक तथा साक्षियों के हस्ताक्षर सहित होगा। कार्यालयाध्यक्ष/विभागाध्यक्ष इस पर अभिदाता के नाम व पद नाम सहित नामांकन प्राप्त होने की तिथि अंकित कर हस्ताक्षर करेंगे। नामांकन का प्रपत्र सामान्य भविष्य निधि (उत्तर प्रदेश) नियमावली - 1985 की अनुसूची 1 में दिया गया है।
(ड़) यदि कोई किसी अन्य भविष्य निधि का सदस्य रहा है तो उस फंड में किया गया नामांकन मान्य होगा, यदि उसे बदल न दिया जाये।
(च) नामांकन किसी भी समय निरस्त किया जा सकता है। निरस्तीकरण की सूचना के साथ या अलग से नया नामांकन भेजना होगा।
(छ) प्रत्येक नामांकन या निरस्तीकरण की सूचना, जहां तक विधिमान्य हो, विभागाध्यक्ष/कार्यालयाध्यक्ष को प्राप्त होने की तिथि से प्रभावी होगी।
(ज) उन आकस्मिकताओं के घटने पर, जिनका उल्लेख नामांकन में हो, नामांकन अविधिमान्य हो जायेगा।
(झ) यदि नामित व्यक्ति की अभिदाता से पहले मृत्यु हो जाती है तो उसकी नामांकित हिस्से का अधिकार नामांकन प्रपत्र में एतदर्थ उल्लिखित अन्य व्यक्ति(यों) को स्थानांतरित हो जायेगा, जब तक कि अभिदाता उस नामांकन को निरस्त करके दूसरा नामांकन न कर दे। किन्तु अगर नामांकन करते समय अभिदाता के परिवार में केवल एक सदस्य हो तो वह नामांकन में यह व्यवस्था करेगा कि परिवार से भिन्न वैकल्पिक नामांकिती को प्रदत्त अधिकार उसके परिवार में बाद में अन्य सदस्य या सदस्यों के शामिल हो जाने की दशा में अविधिमान्य हो जाएगा। यदि अभिदाता इस प्रकार का अधिकार एक से अधिक व्यक्तियों को देता है तो उसे प्रत्येक व्यक्ति का हिस्सा इस प्रकार निर्धारित कर देना चाहिये कि नामित व्यक्ति को देय समस्त धनराशि आच्छादित हो जाय।
6. अभिदान की शर्तें (नियम 7)
अभिदाता को सामान्य भविष्य निधि में मासिक अभिदान करना होता है जिसकी शर्तें निम्नवत है -
(क) निलंबन की अवधि में अभिदान नहीं करेगा। परन्तु पुन: स्थापन पर यदि अभिदाता निलंबन अवधि का पूरा वेतन प्राप्त करता है तो उस अवधि के लिये देय बकाया अभिदान का भुगतान एक मुश्त या किश्तों में जिस प्रकार निर्धारित किया जाये, अभिदाता को करना होगा। अन्य स्थितियों में अभिदाता अपने विकल्प पर, निलम्बन अवधि के देय बकाया अभिदान का भुगतान एक मुश्त में या किश्तों में जैसा अवधारित किया जाये करेगा।
(ख) ऐसे अवकाश के दौरान जिसके लिए या तो कोई वेतन न मिले या आधा वेतन या अर्द्ध औसत वेतन के बराबर अवकाश वेतन मिले, अभिदाता अपने चयन पर चाहे तो अभिदान नहीं करेगा। ऐसा चयन करने पर यदि किसी माह के भाग में ही ऐसे अवकाश पर था तो ड्यूटी के दिनों के अनुपात में उस माह का अभिदान करना होगा। अभिदान न करने की सूचना न देने पर यह समझा जायेगा कि उसने अभिदान करने का चुनाव कर लिया है। अभिदाता द्वारा दी गयी सूचना अंतिम होगी।
(ग) अभिदाता की सेवा निवृत्ति या अधिवर्षता के पूर्व उसके अंतिम छ: मास के वेतन से सामान्य भविष्य निधि में अभिदान के लिए कोई कटौती नहीं की जायेगी।
(घ) अभिदाता जिसने नियम 24 के अधीन सामान्य भविष्य निधि में अपने नाम से जमा धनराशि का आहरण कर लिया है, ऐसे आहरण के पश्चात निधि में अभिदान नहीं करेगा जब तक कि वह ड्यूटी पर न लौट आये।
7. अभिदान की धनराशि (नियम 8)
(क) मासिक अभिदान की धनराशि अभिदाता द्वारा प्रत्येक वर्ष के प्रारंभ में स्वयं निर्धारित की जायेगी तथा सूचित की जाएगी। यह धनराशि अभिदाता की परिलब्धि के 10 प्रतिशत से कम नहीं होगी तथा उसकी परिलब्धि की धनराशि से अधिक भी नहीं होगी तथा पूर्ण रूपयों में व्यक्त की जायेगी।
(ख) अभिदान निर्धारण के प्रयोजन से परिलब्धियाँ : पूर्ववर्ती वर्ष की 31 मार्च की परिलब्धियाँ होंगी किन्तु यदि अभिदाता उस दिनांक को अवकाश पर था और ऐसे अवकाश के दौरान उसने अभिदान न करने का चुनाव किया हो या उक्त दिनांक को निलंबित था तो उसकी परिलब्धि वह परिलब्धि होगी, जिसका वह ड्यूटी पर लौटने के प्रथम दिन का हकदार था।
(ग) इस प्रकार निर्धारित अभिदान की धनराशि को -
(अ) वर्ष के दौरान किसी समय एक बार कम किया जा सकता है। (ब) वर्ष के दौरान दो बार बढ़ाया जा सकता है।
8. वाहय सेवा या भारत के बाहर प्रतिनियुक्ति पर स्थानान्तरण (नियम 9)
जब अभिदाता का स्थानान्तरण वाहय सेवा में कर दिया जाये या उसे भारत के बाहर प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया जाये तो वह निधि के अधीन उसी प्रकार रहेगा मानों उसका स्थानान्तरण नहीं किया गया हो या उसे प्रतिनियुक्ति पर नहीं भेजा गया हो।
9. अभिदान की वसूली (नियम 10)
(क) भारत में सरकारी कोषागार से या भारत के बाहर भुगतान के लिये किसी प्राधिकृत कार्यालय से वेतन आहरण की स्थिति में अभिदान की वसूली स्वयं परिलब्धियों से की जायेगी।
(ख) अभिदाता की तैनाती उत्तर प्रदेश में स्थित किसी उपक्रम में वाहय सेवा में होने पर अभिदान/अग्रिमों की वसूली प्रतिमाह उपक्रम द्वारा की जायेगी और उसे कोषागार में चालान के माध्यम से भारतीय स्टेट बैंक में जमा किया जायेगा।
(ग) उत्तर प्रदेश के बाहर स्थित किसी उपक्रम में प्रतिनियुक्ति पर अभिदाता के होने की दशा में उक्त वसूली प्रतिमाह उस उपक्रम द्वारा की जायेगी और भारतीय स्टेट बैंक के बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से लेखाधिकारी को भेज दी जायेगी।
(घ) यदि अभिदाता उस दिनांक से जिस दिनांक को उससे निधि का सदस्य बनने की अपेक्षा की जाय अभिदान करने में विफल रहे या वर्ष के दौरान किसी मास य मासों में, नियम 7 में जैसा उपबंधित है उससे अन्यथा व्यतिक्रम करता है तो अभिदान के बकाये के मद्दे निधि में कुल धनराशि का भुगतान अभिदाता द्वारा तुरन्त कर दिया जायेगा या व्यतिक्रम करने पर उसकी वसूली परिलब्धियों से किस्तों में या अन्य प्रकार से जैसा कि सामान्य भविष्य निधि नियमावली की द्वितीय अनुसूची के पैरा 1 में विनिर्दिष्ट अधिकारी द्वारा निर्देश दिया जाय, कटौती करके की जायेगी। (नियम संख्या 10(3))
10. निधि से अग्रिम (REFUNDABLE ADVANCE) (नियम 13, 14 एवं 15)
(क) सक्षम स्वीकर्ता प्राधिकारी (नियम 13(1), 13(4) एवं द्वितीय अनुसूची)
(i) कोई अग्रिम जिसकी स्वीकृति के लिये नियम 13 के उपनियम (4) के अधीन विशेष कारण अपेक्षित नहीं है, फाइनेन्शियल हैण्डबुक खण्ड 5 भाग 1 के पैरा 249 के अधीन स्थानान्तरण पर वेतन के किसी अग्रिम को स्वीकृत करने के लिये सक्षम अधिकारी द्वारा अपने विवेकानुसार स्वीकृत किया जा सकता है। अत: इस हेतु कार्यालयाध्यक्ष या उनसे उच्च अधिकारी सक्षम प्राधिकारी है।
(ii) कोई अग्रिम जिसकी स्वीकृति के लिये नियम 13 के उपनियम (4) के अधीन विशेष कारण अपेक्षित है, सामान्य भविष्य निधि नियमावली 1985 की द्वितीय अनुसूची के पैरा-2 में उल्लिखित प्राधिकारियों द्वारा या ऐसे अन्य प्राधिकारियों द्वारा जिन्हें सरकार द्वारा समय-समय पर सक्षम घोषित किया जाये, स्वीकृत किया जा सकता है जैसे :
(i) उ0प्र0 शासन का विभाग
(ii) द्वितीय अनुसूची के पैरा-2 में विनिर्दिष्ट विभागाध्यक्ष एवं अन्य प्राधिकारी
(iii) केवल अराजपत्रित अधिकारियों के संबंध में द्वितीय अनुसूची के पैरा-2 में विशेष रूप से विनिर्दिष्ट प्राधिकारी
(iv) शासनादेश संख्या : जी-2-67/दस-2007-318/2006, दिनांक 24-1-2007 द्वारा विभागाध्यक्ष कार्यालयों से भिन्न कार्यालयों से भिन्न कार्यालयों के समूह "घ" के कर्मचारियों के सामान्य भविष्य निधि खातों से विशेष कारणों से अग्रिम तथा आंशिक अंतिम प्रत्याहरण की स्वीकृति के अधिकार संबंधित विभाग के जनपद-स्तर पर तैनात, वरिष्ठतम आहरण एवं वितरण अधिकारियों को प्रतिनिधानित कर दिए गए हैं। इस व्यवस्था के क्रम में अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय संबंधित डी0डी0ओ0 कार्यालयाध्यक्षों द्वारा जी0पी0एफ0 के खातों के समुचित रख-रखाव की व्यवस्था सुनिश्चित करवाएंगे तथा इस प्रयोजनार्थ समय-समय पर इनसे संबंधित लेखों का परीक्षण भी करेंगे।
(iii) यदि अभिदाता स्वयं को स्वीकृत किये जाने वाले किसी अग्रिम का स्वीकर्ता अधिकारी हो तो वह अग्रिम के लिए अगले उच्चतर अधिकारी की स्वीकृति प्राप्त करेगा।
(iv) राज्यपाल विशेष परिस्थितियों में सामान्य भविष्य निधि नियमावली के नियम 13 के उपनियम (2) के उप खण्ड (एक) से (सात) में उल्लिखित प्रयोजनों (जो आगे वर्णित किये गये हैं) से भिन्न प्रयोजन के लिये किसी अभिदाता को अग्रिम का भुगतान करने की स्वीकृति दे सकते हैं यदि राज्यपाल उसके समर्थन में दिये गये औचित्य से संतुष्ट हो जायें।
(ख) स्वीकृति की शर्तें
(i) निधि से अस्थायी अग्रिम उपरोक्तानुसार सक्षम प्राधिकारी के विवेक पर नियम संख्या 13 के उपनियम (2), (3), (4), (5), (6) या (7) में उल्लिखित शर्तों के अधीन रहते हुए किया जा सकता है।
(ii) कोई अग्रिम तब तक स्वीकृत नहीं किया जा सकता जब तक स्वीकर्ता प्राधिकारी का समाधान न हो जाये कि आवेदक की आर्थिक परिस्थितियां उसकों न्यायोचित ठहराती है और उसका उपयोग नियम संख्या 13(2) में वर्णित उसी उद्देश्य हेतु किया जायेगा जिसके सम्बन्ध में स्वीकृत किया गया हो न कि अन्यथा।
(ग) अग्रिम के उद्देश्य
अभिदाता/उसके परिवार के सदस्यों/उस पर वास्तव में आश्रित किसी अन्य व्यक्ति के सम्बन्ध में निधि से अग्रिम स्वीकृत किया जा सकता है। अग्रिम के प्रयोजनों का वर्णन नियम 13(2) में किया गया है जिसका विवरण आगे दिया जा रहा है :
नियम 13 -
"(2) : कोई अग्रिम तब तक स्वीकृत नहीं किया जायेगा जब तक स्वीकृति प्राधिकारी का समाधान न हो जाय कि आवेदक की आर्थिक परिस्थितियां उसको न्यायोचित ठहराती हैं और कि उसका व्यय निम्नलिखित उद्देश्य या उद्देश्यों पर न कि अन्यथा किया जायेगा, अर्थात्
(एक) बीमारी, प्रसवावस्था या विकलांगता के सम्बन्ध में व्यय जिसके अंतर्गत, जहां आवश्यक हो, अभिदाता, उसके परिवार के सदस्यों या उस पर वास्तव में आश्रित किसी अन्य व्यक्ति का यात्रा व्यय भी है, की पूर्ति पर;
(दो) उच्च शिक्षा व्यय की पूर्ति पर, जिसके अंतर्गत, जहां आवश्यक हो, अभिदाता, उसके परिवार के सदस्यों या उस पर वास्तव में आश्रित किसी अन्य व्यक्ति का निम्नलिखित दशाओं में यात्रा व्यय भी है अर्थात् -
(क) हाईस्कूल स्तर के बाद शैक्षिक प्राविधिक, वृत्तिक या व्यावसायिक पाठ्यक्रम के लिये भारत के बाहर शिक्षा, और
(ख) हाईस्कूल स्तर के बाद भारत में चिकित्सा, अभियन्त्रण या अन्य प्राविधिक या विशेषित पाठ्यक्रम।
(तीन) अभिदाता की प्रास्थिति के अनुकूल पैमाने पर आबत्रकर व्यय की पूर्ति पर जिसे अभिदाता द्वारा रूढ़िगत प्रथा के अनुसार अभिदाता के विवाह के सम्बन्ध में या उसके परिवार के सदस्यों या उस पर वास्तविक रूप से आश्रित किसी अन्य व्यक्ति के विवाह, अन्त्येष्टि या अन्य गृहकर्म के सम्बन्ध में उपगत करना हो,
(चार) अभिदाता, उसके परिवार के किसी सदस्य या उस पर वास्तविक रूप से आश्रित किसी व्यक्ति द्वारा या उसके विरूद्ध संस्थित विधिक कार्यवाहियों के व्यय की पूर्ति पर,
(पाँच) अभिदाता के प्रतिवाद के व्यय की पूर्ति पर, जहां वह अपनी ओर से किसी तथाकथित पदीय कदाचार के संबंध में जाँच में अपना प्रतिवाद करने के लिए किसी विधि व्यवसायी की नियुक्ति करें।
(छ:) गृह या गृह स्थल के लिये या उसके निवास के लिये गृह निर्माण या उसके गृह के पुनर्निर्माण, मरम्मत या उसके परिवर्तन या परिवर्द्धन के लिये या गृह निर्माण योजना जिसके अंतर्गत स्ववित्तपोषित योजना भी है, के अधीन किसी विकास प्राधिकरण, स्थानीय निकाय, आवास परिषद या गृह निर्माण सहकारी समिति द्वारा उसे गृह स्थल या गृह के आवंटन के लिये भुगतान करने के लिये व्यय या उसके भाग की पूर्ति पर,
(सात) अभिदाता के उपयोग के लिये मोटर साईकिल, स्कूटर (मोपेड भी सम्मिलित हैं), साईकिल, रेफ्रिजरेटर, रूमकूलर, कुकिंग गैस या टेलीविजन सेट की लागत के व्यय की पूर्ति पर ।
परन्तु राज्यपाल विशेष परिस्थितियों में नियम 13(2) के उपर्युक्त उपखण्ड (एक) से (सात) में उल्लिखित प्रयोजनों से भिन्न प्रयोजन के लिय भी किसी अभिदाता को अग्रिम भुगतान करने की स्वीकृति दे सकते हैं यदि राज्यपाल उसके समर्थन में दिये गये औचित्य से संतुष्ट हो जाये।"
अग्रिम (जिसके लिये विशेष कारण अपेक्षित न हों) की वसूली बराबर मासिक किश्तों में की जाएगी जो 12 से कम (जब तक अभिदाता ऐसा न चाहे) और 24 से अधिक नहीं होगी। कोई अभिदाता अपने विकल्प पर एक मास में एक से अधिक किस्तों का भुगतान कर सकता है। किस्तों का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिये कि पूरी वसूली सेवानिवृत्ति के छ: माह पहले तक वसूल हो जाय। (नियम 14 (1)) वसूली जिस माह में अग्रिम आहरित किया गया हो उसके अनुवर्ती मास के वेतन दिये जाने से प्रारम्भ होगी।(नियम 14 (2))
(घ) विशेष कारणों से अस्थायी अग्रिम
यदि अभिदाता द्वारा आवेदित धनराशि तीन मास के वेतन अथवा सामान्य भविष्य निधि में जमा धनराशि के आधे (जो भी कम हो) से अधिक है अथवा धनराशि की इस सीमा के अन्तर्गत रहते हुये भी समस्त पूर्ववर्ती अग्रिमों का अंतिम प्रतिदान करने के पश्चात बारह मास व्यतीत न हुये हों तो आवेदित अस्थायी अग्रिम विशेष कारणों से अस्थायी अग्रिम कहलायेगा। परन्तु जब तक पहले से दी गयी किसी अग्रिम धनराशि तथा अपेक्षित नयी अग्रिम धनराशि का योग प्रथम अग्रिम की स्वीकृति के समय अभिदाता के तीन मास के वेतन या निधि में जमा धनराशि के आधे (जो भी कम हो) से अधिक न हो तब तक द्वितीय अग्रिम या अनुवर्ती अग्रिमों की स्वीकृति के लिये विशेष कारणों की अपेक्षा नहीं की जायेगी। अत: कोई उद्देश्य या प्रयोजन किसी अग्रिम को सामान्य या विशेष नहीं बनाते हैं अपितु सामान्य परिस्थितियों में उल्लिखित किसी एक अथवा दोनो शर्तों की पूर्ति न होने पर अस्थायी अग्रिम विशेष कारणों से अस्थायी अग्रिम कहलाता है। (नियम 13(4))
जब किसी पूर्ववर्ती अग्रिम की अंतिम किश्त के प्रतिदान की पूर्ति के पूर्व ही विशेष कारणों के अंतर्गत कोई अगला अग्रिम स्वीकृत किया जाये तो पूर्ववर्ती अग्रिम के वसूल न किये गये शेष को इस प्रकार स्वीकृत अग्रिम में जोड़ दिया जायेगा और वसूली की किश्तें संहत धनराशि के निदेश में होंगी।
विशेष कारणों से अस्थायी अग्रिम की वसूली 24 से अधिक किन्तु अधिकतम 36 बराबर मासिक किश्तों में की जा सकती है। वसूली विलम्बतम अभिदाता की सेवानिवृत्ति या अधिवर्षता की तिथि के 6 माह पूर्व तक पूरी हो जाए, इस प्रकार से किस्तों का निर्धारण करना चाहिये। कोई अभिदाता एक माह में एक से अधिक किस्तों का भुगतान कर सकता है। वसूली जिस माह में अग्रिम आहरित किया जाय उसके अनुवर्ती माह के वेतन दिये जाने से प्रारम्भ की जायेगी।
(ङ) साधारणतया अभिदाता को कोई अग्रिम उसकी अधिवर्षता या सेवानिवृत्ति के पूर्ववर्ती अंतिम छ: माह के दौरान स्वीकृत नहीं किया जायेगा। यदि अपरिहार्य हो तो नियम 13 (7) की प्रक्रिया के अनुसार स्वीकृत किया जा सकता है। (नियम 13 (7))
(च) अग्रिम का दोषपूर्ण उपयोग : नियम 15
इस नियमावली में किसी बात के होते हुए भी, यदि स्वीकृति प्राधिकारी को समाधान हो जाय कि नियम-13 के अधीन निधि से अग्रिम के रूप में आहरित धनराशि का उपयोग उस प्रयोजन से, जिसके लिए स्वीकृति अभिलिखित की गयी हो, भिन्न प्रयोजन के लिए किया गया हो तो वह अभिदाता को निधि में प्रश्नगत धनराशि का प्रतिदान तुरन्त करने का निदेश देगा, या चूक करने पर अभिदाता की परिलब्धियों से एक मुश्त कटौती करने/वसूल करने का आदेश देगा और यदि प्रतिदान की जाने वाली कुल धनराशि अभिदाता की परिलब्धियों के आधे से अधिक हो तो वसूली ऐसी मासिक किश्तों में की जायेगी जैसी अवधारित की जाय।
11. निधि से अंतिम प्रत्याहरण (Non Refundable Final Withdrawal) (नियम 16, 17 एवं 18)
(क) स्वीकर्ता प्राधिकारी एवं धनराशि की सीमा -
निधि से अंतिम प्रत्याहरण की स्वीकृति विशेष कारणों से अस्थाई अग्रिम स्वीकृत करने के लिये सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी जा सकती है जिनका उल्लेख इस लेख में पूर्व में किया गया है।
अंतिम प्रत्याहरण की पात्रता हेतु भिन्न-भिन्न उद्देश्यों के सम्बन्ध में अलग-अलग सेवा अवधियां निर्धारित हैं।
अंतिम प्रत्याहरण हेतु धनराशि की सीमा, यदि अन्यथा उपबंधित न हो तो, साधारणतया उसके खाते में उपलब्ध धनराशि के आधे या उसके 6 माह के वेतन जो भी कम हो से अधिक नहीं होगी। विशेष मामलों में अभिदाता के सामान्य भविष्य निधि खाते में जमा धनराशि के तीन चौथाई (3/4) तक धनराशि स्वीकृत की जा सकती है। अन्यथा उपबंधित सीमाएं आगे के प्रस्तरों में वर्णित है।
(ख) सेवा अवधि के अनुसार प्रत्याहरण के प्रयोजनों की श्रेणियाँ :-
अलग-अलग सेवा अवधियों के आधार पर अंतिम प्रत्याहरण के प्रयोजनों को भिन्न-भिन्न श्रेणियों में रखा गया है जो नियम 16 (1) में निम्नवत वर्णित है :-
नियम 16 (1) इसमें विनिर्दिष्ट शर्तों के अधीन रहते हुए अन्तिम प्रत्याहरण जो प्रतिदेय नहीं होगा, नियम 13 के उपनियम (4) के अधीन विशिष्ट कारणों से अग्रिम स्वीकृत करने के लिये सक्षम प्राधिकारी द्वारा किसी भी समय निम्नलिखित प्रकार से स्वीकृत किया जा सकता है ;
(क) अभिदाता द्वारा बीस वर्ष की सेवा (जिसके अंतर्गत निलम्बन की अवधि, यदि उसके पश्चात बहाली हो गई हो, और सेवा की अन्य खण्डित अवधियां यदि कोई हों, भी हैं) पूरी करने या अधिवर्षता पर उसकी सेवा-निवृत्ति के दिनांक के पूर्ववर्ती दस वर्ष के भीतर, जो भी पहले हो, निधि में उसके जमा खाते में विद्यमान धनराशि से निम्नलिखित एक या अधिक प्रयोजनों के लिये अर्थात् -
(ए) निम्नलिखित मामलों में
(एक) हाईस्कूल के बाद शैक्षिक, प्राविधिक, वृत्तिक या व्यावसायिक पाठ्यक्रम के लिए भारत के बाहर शिक्षा, और
(दो) हाईस्कूल के बाद भारत में चिकित्सा, अभियंत्रण या अन्य प्राविधिक या विशेषित पाठ्यक्रम में, अभिदाता य अभिदाता के किसी आश्रित संतान के उच्चतर शिक्षा पर व्यय जिसके अंतर्गत जहां आवश्यक हो, यात्रा व्यय भी है, की पूर्ति के लिये,
(बी) अभिदाता के पुत्रों या पुत्रियों और उस पर वास्तविक रूप से आश्रित किसी अन्य संबंधी के विवाह के सम्बन्ध में व्यय की पूर्ति के लिए,
(सी) अभिदाता, उसके परिवार के सदस्यों या उस पर वास्तविक रूप से आश्रित किसी अन्य व्यक्ति की बीमारी, प्रसवावस्था या विकलांगता के सम्बन्ध में व्यय जिसके अंतर्गत, जहां आवश्यक हो, यात्रा व्यय भी है, की पूर्ति के लिये,
(ख) अभिदाता द्वारा बीस वर्ष की सेवा (जिसके अंतर्गत निलम्बन की अवधि, यदि उसके पश्चात बहाली हुई हो, और सेवा की अन्य खण्डित अवधियां यदि कोई हैं) पूरी करने या अधिवर्षता पर उसकी सेवा-निवृत्ति के दिनांक के पूर्ववर्ती दस वर्ष के भीतर, जो भी पहले हो, और वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड पाँच भाग 1 में दिये गये नियमों के अधीन मोटरकार, मोटर साइकिल या स्कूटर (जिसके अंतर्गत मोपेड भी है) के क्रय के लिये, अग्रिम की पात्रता के लिए प्रवृत्त वेतन के सम्बन्ध में निर्बन्धनों के अधीन रहते हुए, निधि में उसके जमाखाते में विद्यमान धनराशि से निम्नलिखित एक या अधिक प्रयोजनों के लिये, अर्थात् -
(एक) वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड पाँच भाग 1 में दिये गये नियमों के अधीन मोटरकार, मोटर साइकिल या स्कूटर (जिसके अंतर्गत मोपेड भी है) के क्रय या इस प्रयोजन के लिए पहले से लिये गये अग्रिम के प्रतिदान के लिए, (नियम 17 के उपनियम (1) के खण्ड (ख) के अनुसार अधिकतम सीमा रू0 50,000/-) (नियम 16(1) की टिप्पणी 9 के अनुसार यदि वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड पाँच भाग 1 के अधीन उसी प्रयोजन हेतु अग्रिम पूर्व में लिया जा चुका हो तब भी मोटरकार, मोटर साइकिल या स्कूटर (मोपेड सहित) के लिए प्रत्याहरण नियम 17 (1) (ख) की मौद्रिक सीमा के अंतर्गत दिया जा सकता है बशर्ते कि इन दोनो स्त्रोतो से कुल धनराशि प्रस्तावित वाहन की वास्तविक कीमत से अधिक न हो।) (दो) उसकी मोटरकार, मोटर साइकिल या स्कूटर की व्यापक मरम्मत या उसके ओवरहाल के लिए, (नियम 17 के उपनियम (1) के खंड (ग) के अनुसार अधिकतम सीमा 5,000/-)
(ग) अभिदाता द्वारा पन्द्रह वर्ष की सेवा (जिसके अंतर्गत निलम्बन की अवधि, यदि उसके पश्चात बहाली हुई हो, और सेवा की अन्य खण्डित अवधियाँ, यदि कोई हों, भी हैं) पूरी करने के पश्चात या अधिवर्षता पर उसकी सेवानिवृत्ति के दिनांक के पूर्ववर्ती दस वर्ष के भीतर जो भी पहले हो, अर्थात् -
(क) उसके आवास के लिये उपयुक्त गृह बनाने, या उपर्युक्त गृह या तैयार बने फ्लैट के अर्जन के लिए जिसके अंतर्गत स्थल का मूल्य भी है,
(ख) उसके आवास के लिये उपयुक्त गृह बनाने, या उपर्युक्त गृह या तैयार बने फ्लैट के अर्जन के लिए स्पष्ट रूप से लिये गये ऋण के मद्दे बकाया धनराशि का प्रतिदान करने के लिये, (नियम 16(1) की टिप्पणी-7 के अनुसार इस हेतु प्रस्तावित धनराशि और उक्त खण्ड (क) के अधीन पूर्व प्रत्याहृत धनराशि यदि कोई हो, आवेदन पत्र प्रस्तुत करने के दिनांक को विद्यमान अतिशेष के 3/4 से अधिक नहीं होगी।)
नियम 16(1) की टिप्पणी 8 के स्पष्टीकरण-3 के अनुसार गृह निर्माण के प्रयोजन के लिये लिये गये किसी प्रकार के ऋण के, चाहे वह वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड पाँच भाग 1 के अधीन सरकार से, या निम्न या. Iq‡;‡;Jq‡;M.. Iq‡;‡;Jq‡;M Bhs-1.Õjpgÿÿÿÿÿÿÿÿdena-Õbank-matDENA-B~1JPG Iq‡;;Kh‡; \Bhs-2.5jpgÿÿÿÿÿÿÿÿdena-5bank-matDENA-B~2JPG Iq‡;;®h‡; ¾¾Bhs-3.–jpgÿÿÿÿÿÿÿÿdena-–bank-matDENA-B~3JPG *Iq‡;;9i‡;– çkBhs-4.vjpgÿÿÿÿÿÿÿÿdena-vbank-matDENA-B~4JPG FIq‡;;’i‡;› Á(AThumb¤s.dbÿÿÿÿÿÿTHUMBS DB &mIq‡;;ØeŒ;Κåmathsn .exeÿÿÿÿåATHS~1 EXEŠqXŽ;Ž;Çu£8ú¿¡fåmathsn .exeÿÿÿÿåATHS~1 EXE(ZŽ;Ž;Çu£8äÁ¡fåmathsn .exeÿÿÿÿåATHS~1 EXEÄ^Ž;Ž;Çu£8XÁ¡fåmathsn .exeÿÿÿÿåATHS~1 EXEgEg;;Çu£8ŠÁ¡fEO.pdfÿÿÿÿÿÿÿÿÿÿÿÿÿÿper-of-Bank-Pe-Aptitude-Pad-Quantitativ7087363-Solve708736~1PDF T;;q^Œ;QDBestioŽn.pdfÿÿÿÿbank Žquant quBANKQU~1PDF LT;;NcŒ;wçFBort_cnut.pdfÿÿbank nquant shBANKQU~2PDF vT;;„bŒ;‚ÂÛBlved.Npdfÿÿÿÿÿÿÿÿbank Nquant soBANKQU~3PDF ŒT;;¡^Œ;ŽBude-X]LRI.pdfQuant]ityAptitQUANTI~1PDF #U;;ÎeŒ;‘‡Dank-P&O.pdfÿÿÿÿde-Pa&per-of-Btativ&e-AptituSolve&d-QuantiSOLVED~1PDF HU;;ÔeŒ;œDAmathsn .exeÿÿÿÿMATHS~1 EXE ½‡z;;Çu£8LÆ¡fåATHS EXEuw;;Ç ;×ɼ 25;ी भूमि (farm land) या कारोबार परिसर (business premises) या दोनो का अर्जन करने (aquiring) के प्रयोजन के लिये।
निधि में प्रत्याहरण विषयक अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु
1- एक प्रयोजन के लिये केवल एक प्रत्याहरण की अनुमति दी जाएगी किन्तु निम्नलिखित को एक ही प्रयोजन नहीं समझा जायेगा :
(क) विभिन्न संतानों का विवाह
(ख) विभिन्न अवसरों पर बीमारी
(ग) गृह या फ्लैट में ऐसा अग्रेतर परिवर्तन या परिवर्द्धन जो गृह/फ्लैट के क्षेत्र की नगरपालिका, निकाय द्वारा सम्यक रूप से अनुमोदित नक्शे के अनुसार हो
(घ) जीवन बीमा की पालिसियों के प्रीमियम/प्रीमिया के भुगतान
(ङ) विभिन्न वर्षों में संतानों की शिक्षा
(च) यदि अभिदाता को क्रय किये गये स्थल या गृह या फ्लैट के लिए या किसी योजना के अधीन जिसके अंतर्गत विकास प्राधिकरण, आवास विकास परिषद स्थानीय निकाय या गृह निर्माण सहकारी समिति की स्व-वित्त पोषित योजना भी है, निर्मित गृह या फ्लैट का भुगतान किश्तों में किया जाना है तो अंतिम प्रत्याहरण किस्तों में स्वीकृत होगा और प्रत्येक किस्त को अलग प्रयोजन माना जायेगा।
(छ) एक ही गृह को पूरा करने के लिये 16(1) ग के उपखण्ड (क) या (ख) के अधीन द्वितीय या अनुवर्ती प्रत्याहरण की अनुमति 16 (1) की टिप्पणी 5 के अधीन दी जाएगी।
यदि दो या अधिक विवाह साथ-साथ सम्पन्न किये जाने हों तो प्रत्येक विवाह के संबंध में अनुमन्य धनराशि का अवधारण उसी प्रकार किया जायेगा, मानों एक के पश्चात दूसरा प्रत्याहरण पृथक-पृथक स्वीकृत किया गया हो।
2- नियम 16(1) की टिप्पणी-6 में व्यवस्था दी गई है कि नियम 16(1) के खण्ड (ग) में विनिर्दिष्ट प्रयोजनों (भूमि, भवन, फ्लैट आदि से संबंधित) के लिये प्रत्याहरण स्वीकृत करने से पहले स्वीकृति अधिकारी निम्नलिखित का समाधान करेगा -
(एक) धनराशि अभिदाता द्वारा अपेक्षित प्रयोजनों के लिए वास्तव में अपेक्षित है।
(दो) अभिदाता का प्रस्तावित स्थल पर कब्जा है या तुरन्त उस पर गृह निर्माण करने का अधिकार अर्जित करना चाहता है,
(तीन) प्रत्याहृत धनराशि और ऐसी अन्य बचत, यदि कोई हो, जो अभिदाता की हो, प्रस्तावित प्रकार के गृह अर्जन या मोचन के लिए पर्याप्त होगी।
(चार) गृह स्थल, गृह या तैयार बने फ्लैट के क्रय के लिए प्रत्याहरण के मामले में अभिदाता गृह स्थल, गृह या फ्लैट जिसके अंतर्गत स्थल भी है, पर निर्विवाद हक प्राप्त करेगा।
(पाँच) उपर्युक्त (चार) में निर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए अभिदाता ने ऐसे आवश्यक विलेख-पत्र और कागजात स्वीकृति अधिकारी को प्रस्तुत कर दिये हैं जिससे प्रश्नगत सम्पत्ति के संबंध में उसका हक साबित हो।
3- गृह स्थल, फ्लैट आदि विषयक नियम 16(1)(ग) में वर्णित प्रयोजनों हेतु प्रत्याहरण का आवेदन करते समय एवं स्वीकृति के समय नियम 16(1) की टिप्पणी 1, 2, 4, 5, 6, 7 एवं 8, नियम 17(1) एवं उसकी टिप्पणी 1 एवं 2क, नियम 17(2) तथा इसकी टिप्पणी 2 एवं 3 एवं सुसंगत प्राविधानों का सावधानीपूर्वक अध्ययन कर लेना चाहिए जिनके मुख्य बिन्दु इस प्रकार है :
यदि अभिदाता ने वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड पाँच भाग 1 में दिये गये नियमों के अधीन गृह निर्माण अग्रिम का लाभ ले रखा हो या उसे इस संबंध में किसी अन्य सरकारी स्त्रोत से कोई सहायता प्राप्त हो चुकी हो तब भी उसे नियम 16(1) के खण्ड (ग) के उपखण्ड (क), (ग), (घ) और (च) के प्रयोजनों हेतु नियम 17 (1) में विनिर्दिष्ट सीमा तक उपर्युक्त नियमों के अधीन लिये गये किसी ऋण के प्रतिदान के प्रयोजन से अंतिम प्रत्याहरण स्वीकृत किया जा सकता है। (नियम 16 (1) की टिप्पणी 4)
ऐसा गृह, फ्लैट या गृह के लिये स्थल जिसके लिये उपर्युक्तानुसार धनराशि के प्रत्याहरण का प्रस्ताव हो, अभिदाता के ड्यूटी के स्थान पर या सेवानिवृत्ति के पश्चात उसके आवास के अभिप्रेत स्थान पर स्थित होगा। यदि अभिदाता के पास कोई पैतृक गृह है या उसने सरकार से लिये गये ऋण की सहायता से ड्यूटी से भिन्न स्थान पर गृह का निर्माण कर लिया है तो वह अपनी ड्यूटी के स्थान पर किसी गृह स्थल के क्रय के लिये या किसी अन्य गृह के निर्माण के लिये या तैयार बने फ्लैट का अर्जन करने के लिये नियम 16 (1) के खण्ड (ग) के उपखण्ड (क), (ग) और (च) के प्रयोजनों हेतु अंतिम प्रत्याहरण स्वीकृत किया जा सकता है। (नियम 16 (1) की टिप्पणी 5)
नियम 16 (1) के खण्ड (ग) के उपखण्ड (क), (घ) के अधीन प्रत्याहरण की अनुमति उस स्थल में भी दी जाएगी जब गृह स्थल या गृह पत्नी या पति के नाम में हो यदि वह अभिदाता द्वारा भविष्य निधि के नामांकन में प्रथम नामांकिती हो। (नियम 16 (1) की टिप्पणी 8)
जब अभिदाता संयुक्त संपत्ति में ऐसे अंश से भिन्न जो स्वतंत्र आवासीय प्रयोजन के लिये उपयुक्त न हो पहले से किसी गृह स्थल या गृह फ्लैट का स्वामी हो, वहाँ उसे यथास्थिति, गृह स्थल या गृह फ्लैट के क्रय, निर्माण, अर्जन या मोचन के लिये कोई प्रत्याहरण स्वीकृत नहीं किया जायेगा। (नियम 16(1) की टिप्पणी 8 का स्पष्टीकरण-1)
स्थानीय निकायों से पट्टे पर किसी भूखण्ड के अर्जन या ऐसे भूखण्ड पर गृह निर्माण करने के लिये भी प्रत्याहरण की अनुमति दी जा सकेगी। (नियम 16 (1) की टिप्पणी 8 का स्पष्टीकरण-2)
नियम 17 (1) की टिप्पणी 1 के अनुसार गृह निर्माण हेतु प्रत्याहरण की स्वीकृति प्रत्याहरण की सम्पूर्ण धनराशि के लिये जारी की जाएगी और यदि आहरण किस्तों में किया जाना हो तो उसकी संख्या स्वीकृति आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएगी।
4- नियम 17 (3) के अनुसार कोई अभिदाता जिसे, नियम 16 (1) के खण्ड (ग) के उपखण्ड (क), (ख) या (ग) के अधीन निधि में अपने जमा खाते में विद्यमान धनराशि से धन के प्रत्याहरण की अनुज्ञा दी गई हो, राज्यपाल की पूर्व अनुज्ञा के बिना इस प्रकार प्रत्याहृत धनराशि से निर्मित या अर्जित किये गये गृह या क्रय किये गये गृह स्थल के कब्जे से, चाहे विक्रय, गिरवी (राज्यपाल को गिरवी से भिन्न) दान, विनिमय द्वारा या अन्य प्रकार से अलग नहीं होगा (shall not part with the possession of the house built or acquired or house site purchased with the money so withdrawn, whether by way of sale, mortgage (other than mortgage to the Governor), gift, exchange or otherwise, without permission of the Governor) :-
परन्तु ऐसी अनुज्ञा -
(एक) तीन वर्ष से अनधिक किसी अवधि के लिये पट्टे पर दिये गये गृह या गृह स्थल के लिये, या
(दो) आवास परिषद, विकास प्राधिकरण, स्थानीय निकाय, राष्ट्रीयकृत बैंक, जीवन बीमा निगम के या केन्द्रीय या राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन किसी अन्य निगम के जो नये गृह के निर्माण के लिये या किसी वर्तमान गृह में परिवर्द्धन या परिवर्तन करने के लिये ऋण देता हो, पक्ष में उसके गिरवी रखे जाने के लिये आवश्यक नहीं होगी।
5- नियम 17(2) के अनुसार अभिदाता, जिसको नियम 16 के अधीन प्रत्याहरण की अनुमति दी गई हो, स्वीकृति प्राधिकारी का ऐसी युक्तियुक्त अवधि के भीतर, जो उस प्राधिकारी द्वारा विनिर्दिष्ट की जाय, समाधान करेगा कि धन का प्रयोग उस प्रयोजन के लिये कर लिया गया है जिसके लिये उसका प्रत्याहरण किया गया था। नियम 17 के उपनियम (2) की टिप्पणियों में कुछ प्रयोजनों के लिए उपयोग की अवधियाँ निर्धारित की गयी है :- प्रत्याहरण का प्रयोजन उपयोग की अवधि क- विवाह तीन मास के भीतर ख- गृह निर्माण गृह का निर्माण धनराशि के प्रत्याहरण के 6 मास के भीतर प्रारम्भ कर दिया जायेगा। और निर्माण प्रारम्भ होने के एक वर्ष के अन्दर पूरा हो जाना चाहिए। ग- गृह का क्रय या मोचन या इस प्रयोजन के लिये पूर्व लिये गए प्राइवेट ऋण का प्रतिदान प्रत्याहरण के तीन मास के भीतर घ- गृह स्थल का क्रय प्रत्याहरण या प्रथम किस्त के प्रत्याहरण के एक माह के भीतर/उपयोग प्रतीक स्वरूप विक्रेता गृह निर्माण समिति आदि द्वारा दी गयी रसीदें प्रस्तुत करने की अपेक्षा स्वीकर्ता अधिकारी करेगा। ङ- बीमा पालिसी के लिये प्रत्याहरण उस दिनांक तक जिस दिनांक का प्रीमियम का भुगतान किया जाना हो। जीवन बीमा निगम द्वारा दी गई रसीद की प्रमाणित या फोटोस्टेट प्रस्तुत न करने पर इस हेतु अग्रेतर प्रत्याहरण नहीं दिया जायेगा।
यदि अभिदाता स्वीकृति अधिकारी द्वारा विनिर्दिष्ट युक्तियुक्त अवधि में प्रत्याहरण की धनराशि का उपयोग प्रत्याहरण के प्रयोजन पर किये जाने के बारे में, स्वीकर्ता प्राधिकारी का समाधान करने में विफल रहता है तो सम्पूर्ण प्रत्याहृत धनराशि या उसका वह भाग जिसका स्वीकृति के प्रयोजन पर उपयोग नही किया गया है अभिदाता द्वारा निधि में एक मुश्त प्रतिदान की जाएगी और ऐसा न करने पर स्वीकर्ता अधिकारी उसकी परिलब्धियों से एक मुश्त या मासिक किस्तों की ऐसी संख्या में जो अवधारित की जाय वसूल करने के आदेश दिया जायेगा।
(नियम 17(2))
6- साधारणतया किसी अभिदाता की अधिवर्षता पर उसकी सेवानिवृत्ति के पूर्ववर्ती अन्तिम 6 मास के दौरान कोई प्रत्याहरण स्वीकृत नही किया जायेगा। विशेष मामले में यदि अपरिहार्य हो तो स्वीकृति प्राधिकारी लेखाधिकारी को तथा समूह "घ" से भिन्न अभिदाताओं के मामले में आहरण एवं वितरण अधिकारी को भी तुरन्त अधिसूचित किया जाना सुनिश्चित करेंगे और उनसे पावती अविलम्ब प्राप्त करेंगे। वे यह भी सुनिश्चित करेंगे कि प्रत्याहरण की धनराशि नियम 24 के उपनियम (4) या उपनियम (5) के खण्ड (ख) के अंतर्गत अंतिम भुगतान के प्रति सम्यक रूप से समायोजित हो जाय।
7- यदि नियम 13 के अधीन कोई अग्रिम उसी प्रयोजन के लिये और उसी समय स्वीकृत किया जा रहा हो तो नियम 16 के अंतर्गत प्रत्याहरण स्वीकृत नहीं किया जायेगा। (नियम 16(1) की टिप्पणी 11(1))
8- अग्रिम का प्रत्याहरण में परिवर्तन नियम - 18
यदि किसी अभिदाता ने किसी ऐसे प्रयोजन के लिये पहले ही अग्रिम आहरित कर लिया हो जिसके लिये अंतिम प्रत्याहरण भी नियम 16 में अनुमन्य हो और वह लिखित अनुरोध करे तो विशेष कारणों से अग्रिम स्वीकृत करने के लिये सक्षम अधिकारी नियम 16 और 17 में निर्धारित शर्तों के पूरा करने पर अग्रिम के देय अतिशेष को प्रत्याहरण में परिवर्तित कर सकते है। प्रत्याहरण में परिवर्तित किये जाने वाले अग्रिम की धनराशि नियम 17(1) में निर्धारित सीमा से अधिक नही होगी और इस प्रयोजन के लिये परिवर्तन के समय अभिदाता के खाते में विद्यमान अतिशेष तथा अग्रिम की बकाया धनराशि को निधि में उसके जमा खाते में विद्यमान अतिशेष समझा जाएगा। प्रत्येक प्रत्याहरण को एक पृथक प्रत्याहरण समझा जाएगा और यही सिद्धान्त एक से अधिक परिवर्तनों की दशा में भी लागू होगा।
12. अन्तिम भुगतान (नियम संख्या-20, 21, 22 एवं 24)
(क) दशाएँ - जब
अभिदाता सेवानिवृत्त हो जाये।
अभिदाता की मृत्यु हो जाये।
अभिदाता सेवा छोड़ दे।
अभिदाता को सक्षम चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा सेवा के आयोग्य ठहरा दिया जाय।
अभिदाता को सेवा से निकाल दिया जाय।
(ख) अंतिम भुगतान की जा चुकी धनराशि की वापसी (i) किसी अभिदाता के सेवा से पदच्युत जाने (dismissal) के बाद सेवा में पुन: वापस लिये जाने के प्रकरण में यदि सरकार अपेक्षा करे तो अभिदाता अंतिम भुगतान की धनराशि एक मुश्त या किश्तों में वापस करेगा, जो उसके खाते में जमा की जाएगी। (नियम 20 का परन्तुक)
(ii) यदि अवकाश पर रहते हुए किसी अभिदाता को सेवानिवृत्त होने की अनुमति दी गई हो या सक्षम चिकित्साधिकारी द्वारा आगे की सेवा के लिए अयोग्य घोषित किया गया हो और वह सेवा में वापस आ जाये तो अपनी इच्छा पर अन्तिम भुगतान की धनराशि निधि में वापस जमा कर सकता है। (नियम 21(ख))
(ग) जब कोई अभिदाता सेवा छोड़ता है तब निधि में उसके जमा खाते में विद्यमान धनराशि उसको देय हो जायेगी। (नियम 20)
(घ) अभिदाता सेवा छोड़ने के बाद केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार या किसी उपक्रम के अधीन किसी नए पद पर किसी क्रमभंग सहित या रहित नियुक्ति प्राप्त कर लेता है तो उसके अभिदानों की समस्त धनराशि तथा उस पर प्रोदभूत ब्याज को, यदि वह ऐसा चाहे, उसके नए भविष्य निधि लेखा में अंतरित किया जा सकेगा, यदि, यथास्थिति सम्बद्ध सरकार या उपक्रम भी ऐसे अंतरण के लिये सहमत हों। किन्तु यदि अभिदाता ऐसे अंतरण के लिये विकल्प न करे या सम्बद्ध सरकार या उपक्रम उसके लिये सहमत न हो तो उपर्युक्त धनराशि अभिदाता को वापस कर दी जाएगी।
(नियम 20 का द्वितीय परन्तुक)
(ङ) अभिदाता की मृत्यु हो जाने पर अन्तिम भुगतान (नियम 22)
यदि अभिदाता की मृत्यु खाते के अतिशेष के देय हो जाने के पूर्व या देय हो जाने के बाद किन्तु भुगतान होने के पूर्व हो जाय तो भुगतान निम्नानुसार किया जाएगा
(i) यदि नामांकन है तो वह धनराशि जिसका नामांकन किया गया है, नामांकन के अनुसार भुगतान की जायेगी। (ii) यदि सम्पूर्ण धनराशि का या उसके किसी अंश का नामांकन नहीं है तो वह धनराशि जिसके सम्बन्ध में नामांकन उपलब्ध नहीं है, परिवार के सदस्यों के बीच बराबर-बराबर बांट दी जायेगी किन्तु यदि परिवार के सदस्यों की निम्नवत वर्णित श्रेणियों, (1) से (4) के अतिरिक्त परिवार में अन्य कोई सदस्य है तो निम्नलिखित का कोई हिस्सा नहीं लगाया जायेगा -
(1) अभिदाता के वयस्क पुत्र
(2) अभिदाता की वे विवाहित पुत्रियाँ, जिनके पति जीवित हों।
(3) अभिदाता के मृत पुत्र के वयस्क पुत्र।
(4) अभिदाता के मृत पुत्र की वे विवाहित पुत्रियाँ, जिनके पति जीवित हों। परन्तुक यह भी है कि यदि मृत अभिदाता का उससे पूर्व मृत्यु को प्राप्त हो चुका पुत्र अभिदाता की मृत्यु के समय तक जीवित रहा होता और तत्समय अवयस्क रहा होता तो उसकी विधवा या विधवाओं को तथा बच्चे या बच्चों को केवल उस भाग का बराबर-बराबर हिस्सा मिलेगा जो अभिदाता की मृत्यु के समय जीवित रहे होने पर मृतक पुत्र को मिलता।
(iii) परिवार न हो तो अनामांकित धनराशि के सम्बन्ध में सामान्य भविष्य निधि ऐक्ट 1925 की धारा-4 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) और खण्ड (ग) के उपखण्ड (दो) के सुसंगत उपबंधों के अनुसार कार्यवाही की जायेगी।
(च) अंतिम भुगतान की प्रक्रिया (नियम संख्या 24)
अंतिम भुगतान की प्रक्रिया में सामान्य भविष्य निधि (उ0प्र0) (द्वितीय संशोधन) नियमावली-2000 द्वारा संशोधन किये गये हैं। संशोधन के अनुसार, अब आहरण एवं वितरण अधिकारी अंतिम भुगतान हेतु प्रपत्र 425 क (समूह 'घ' के अतिरिक्त अन्य अभिदाताओं हेतु) या 425 ख (समूह 'घ' के अभिदाताओं हेतु) पर आवेदन की प्रतीक्षा किये बिना ही अभिदाता के खाते की वर्तमान तथा 5 पूर्ववर्ती वर्षों की आगणन शीट तैयार करेंगे। समूह घ से भिन्न अभिदाताओं के मामले में 2 प्रतियों में आगणन शीट, जाँचकर्ता अधिकारी (विभागाध्यक्ष से सम्बद्ध लेखा के वरिष्ठतम अधिकारी या ऐसे अधिकारी न हों तो जिले के कोषागार के प्रभारी अधिकारी) को, सामान्य भविष्य निधि पासबुक के साथ प्रेषित करेंगे। विभागाध्यक्ष से सम्बद्ध लेखा के वरिष्ठतम अधिकारी जांच का कार्य अपने अधीनस्थ वित्त एवं लेखा सेवा के अधिकारी को सौंप सकते हैं। जाँचकर्ता अधिकारी जाँच पूरी करके सामान्य भविष्य निधि पासबुक में अवशेष 90 प्रतिशत के भुगतान हेतु अपनी संस्तुति के साथ प्रकरण विशेष कारणों से अग्रिम के स्वीकर्ता अधिकारी को, एक माह के अन्दर प्रेषित कर देंगे। यदि कोई आपत्ति होगी तो वे आहरण एवं वितरण अधिकारी से उसका निराकरण करने को कहेंगे, जिन्हें तत्परता पूर्वक निराकरण कर देना चाहिये। स्वीकर्ता अधिकारी तदोपरान्त निर्धारित प्रपत्र पर 90 प्रतिशत के भुगतान के आदेश पारित करके आहरण एवं वितरण अधिकारी तथा कोषाधिकारी को समय से उपलब्ध करा देंगे ताकि अंतिम भुगतान अधिवर्षता पर सेवानिवृत्ति के मामले में सेवानिवृत्ति की तिथि को तथा अन्य मामलों में देय होने की तिथि के तीन माह के अन्दर मिल जाये। स्वीकर्ता अधिकारी 90 प्रतिशत के भुगतान के आदेश की एक प्रति के साथ आगणन शीट और सामान्य भविष्य निधि पासबुक भी लेखाधिकारी को भेजेंगे ताकि वे अभिदाता के खाते में अवशेष धनराशि (जमा सम्बद्ध बीमा योजना का समायोजन यदि कोई हो तो करते हुये) भुगतान हेतु प्राधिकृत कर सकें। यह अग्रसारण अधिवर्षता पर सेवानिवृत्ति के मामले में सेवानिवृत्ति के तीन माह पूर्व तथा अन्य मामलों में बिना अपरिहार्य विलम्ब के किया जाना चाहिये। लेखा अधिकारी अवशिष्ट धनराशि के भुगतान के आदेश समाधान एवं समायोजनोपरांत देंगे ताकि पाने वाला अधिवर्षता पर सेवानिवृत्ति के मामले में सेवानिवृत्ति के दिनांक को या उसके पश्चात यथासम्भव शीघ्र किन्तु ऐसे दिनांक के 3 माह के भीतर ही और अन्य मामलों में धनराशि देय होने के दिनांक से 3 माह के भीतर भुगतान प्राप्त कर सके।
समूह घ के अभिदाता के मामले में आहरण एवं वितरण अधिकारी प्रपत्र 425 ख में आवेदन की प्रतीक्षा किये बिना, समायोजन यदि कोई हो, के अधीन रहते हुए अभिदाता के सामान्य भविष्य निधि पास बुक में उसके नाम विद्यमान धनराशि का भुगतान अधिवर्षता पर सेवानिवृत्ति के मामले में सेवानिवृत्ति के दिनांक को और अन्य मामलों में धनराशि देय होने के दिनांक से 3 मास के भीतर करेंगे।
(छ) ऐसी धनराशियाँ जिनका भुगतान इस नियमावली के अधीन भुगतान प्राधिकार पत्र जारी करने के पश्चात छ: मास के भीतर नहीं लिया गया हो वर्ष के अंत में निक्षेप खाते में अंतरित कर दी जाएगी और उसके संबंध में निक्षेपों से संबंधित सामान्य नियम लागू होंगे।। निक्षेप का संबंधित लेखाशीर्षक निम्नवत है :-
8443- सिविल जमा 124- सामान्य भविष्य निधि में अदावाकृत जमा
13. ब्याज (नियम 11)
(क) यदि कोई अभिदाता मना न कर दे तो वर्ष की अंतिम तिथि को, उ0प्र0 सरकार द्वारा - भारत सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर ब्याज, अभिदाता के खाते में जमा किया जायेगा। कोई अभिदाता यदि आहरण एवं वितरण अधिकारी को सूचित कर दे कि उसकी इच्छा ब्याज लेने की नहीं है तो उसके खाते में ब्याज जमा नहीं किया जायेगा। किन्तु वह अभिदाता जिसने ब्याज लेने से मना कर दिया था, बाद में पुन: ब्याज लेने की मांग करे तो मांग करने के वर्ष की पहली तिथि से उसके खाते पर ब्याज देना प्रारम्भ कर दिया जायेगा।
(ख) ब्याज की गणना करते समय विगत वर्ष के अंतिम शेष पर वर्तमान वर्ष के अंत तक का तथा विगत वर्ष की अंतिम तिथि के बाद वर्तमान वर्ष में जमा धनराशि पर जमा की तिथि से वर्तमान वर्ष के अंत तक का ब्याज वर्ष के अंत में अभिदाता के भविष्य निधि खाते में जमा किया जाता है। वर्ष के बीच में अवशेष धनराशि देय हो जाने की तिथि तक का ही ब्याज दिया जाएगा। किसी अंडरटेकिंग में प्रतिनियुक्त अभिदाता के वहां पूर्वगामी तिथि से संविलीन होने की दशा में संविलयन आदेश निर्गत होने की तिथि तक का ब्याज दिया जायेगा। वर्तमान वर्ष में आहरित धनराशि के आहरण के माह के प्रथम दिन से ब्याज नहीं दिया जाता है। ब्याज का पूर्णांकन पूर्ण रूपयों में ही किया जाता है।
(ग) ब्याज की गणना हेतु अभिदान या अन्य जमा किस तिथि से जमा माने जायेंगे, इस सम्बन्ध में स्थिति नियम संख्या 11(3) में बताई गई है। परिलब्धियों से काटकर निधि में जमा की गई धनराशि के मामले में परिलब्धियाँ जिस माह से सम्बंधित हैं, उसके अगले माह की पहली तारीख से ब्याज दिया जायेगा भले ही वास्तवित भुगतान ऐसे अगले माह में न होकर उसके पहले या बाद में किया गया हो। मँहगाई भत्ता अवशेष, वेतन समिति/आयोग की संस्तुतियों के अनुसार वेतन अवशेष आदि से कटौती के द्वारा सामान्य भविष्य निधि में जमा के प्रकरणों में जमा माने जाने की तिथि संबंधित शासनादेश में दी रहती है।
14. सामान्य भविष्य निधि अभिलेख व उनका रखरखाव (नियम 6, 27 एवं 28)
(क) प्रत्येक अभिदाता के नाम एक खाता खोलकर उसके वार्षिक लेखे में निम्नलिखित को दर्शाया जाता है :-
प्रारंभिक शेष
उसके अभिदान
समय-समय पर सरकार के निर्देशानुसार जमा की गई अन्य विशेष जमा धनराशियाँ
निधि से लिये गये अग्रिम की वापसी
ब्याज
निधि से निकाले गये अग्रिम एवं अंतिम प्रत्याहरण
अंतिम अवशेष
(ख) आहरण एवं वितरण अधिकारी भविष्य निधि के अभिदातावार लेखे लेजर एवं पास बुक में रखते हैं। लेजर में प्रत्येक अभिदाता के एक वर्ष के लेखे के लिये एक पृष्ठ आवंटित किया जाता है। आहरण एवं वितरण अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि वेतन बिल के साथ जो सामान्य भविष्य निधि शिड्यूल संलग्न किया जाता है उसकी एक कार्यालय प्रति रखी जाय और उस कार्यालय प्रति से प्रत्येक माह की 5 तारीख तक प्रत्येक अधिकारी/कर्मचारी के लेजर तथा पास बुकों में कटौतियों की आहरण एवं वितरण अधिकारी के द्वारा हस्ताक्षरित प्रविष्टियाँ अवश्य की जाएंगी। लेजरों तथा पास बुकों में अस्थाई अग्रिम तथा अंतिम निष्कासनों की आवश्यक प्रविष्टियाँ प्रत्येक दशा में बिल बनाने के साथ-साथ की जाएँ। आहरण एवं वितरण अधिकारी ब्राडशीट का भी रखरखाव करते हैं जिसके वित्तीय वर्षवार पृष्ठों पर अधिष्ठान के सभी अभिदाताओं के प्रारंभिक शेष, वर्ष भर के जमा विवरण (माहवार), ब्याज, अस्थाई अग्रिम, अंतिम निष्कासन तथा अंतिम अवशेष दर्शाए जाते हैं। कर्मचारी के सामान्य भविष्य निधि का वर्ष भर का ब्यौरा ब्राडशीट की एक ही पंक्ति में लिखा जाता है। अगली पंक्ति में अन्य कर्मचारी का एतदविषयक विवरण होता है। ब्राडशीट सीधे लेजरों से पोस्ट की जाती है। और इसकी पोस्टिंग प्रत्येक माह 10 तारीख तक प्रत्येक दशा में कर लेनी चाहिये। ब्राड शीट की काल अवधि (रिटेन्शन पीरियड) 36 वर्ष होगी। शासनादेश संख्या-जी-2-67/दस-2007-318/2006 दिनांक 24 जनवरी 2007 द्वारा निर्धारित व्यवस्था के अनुसार संबंधित विभाग के जनपद स्तर पर तैनात वरिष्ठतम आहरण एवं वितरण अधिकारी विभागाध्यक्ष कार्यालयों से भिन्न कार्यालयों के समूह - "घ" के कर्मचारियों के सामान्य भविष्य निधि खातों के विशेष कारणों से अग्रिम तथा आंशिक अंतिम प्रत्याहरण की स्वीकृति के अधिकार का प्रयोग करते समय कार्यालयाध्यक्षों द्वारा सामान्य भविष्य निधि के खातों के समुचित रख-रखाव की व्यवस्था सुनिश्चित करवायेंगे तथा इस प्रयोजनार्थ समय-समय पर इनसे संबंधित लेखों का निरीक्षण भी करेंगे।
(ग) सामान्य भविष्य निधि नियमावली के प्रथम संशोधन 1997 द्वारा प्रत्येक आहरण वितरण अधिकारी का यह दायित्व नियम संख्या 27 में जोड़ दिया गया है कि वे महालेखाकार कार्यालय की लेखापर्ची/लेजरों की लुप्त प्रविष्टियों को, सामान्य भविष्य निधि पासबुकों की प्रमाणित प्रतियां भेजकर या अपने व्यक्तिगत प्रयासों के माध्यम से ठीक कराएं।
(घ) अभिदाता के लेखों को दर्शाने वाली पास बुक प्रणाली की व्यवस्था नियम संख्या-28 में दी हुई है। शासनादेश संख्या सा-4-ए.जी.57/दस-84-510-84, दिनांक 26 दिसम्बर, 1984 द्वारा तृतीय एवं उससे उच्च श्रेणी के सभी राजकीय सरकारी सेवकों पर समान रूप से लागू की गई। पासबुक के प्रारंभिक पृष्ठों में अभिदाता के तथा उसके सेवा संबंधी और परिवार के विवरण के अतिरिक्त नामांकनों का विवरण भी भरा जाना होता है। इसके आगे प्रत्येक वर्ष के विवरण हेतु आमने सामने के दो-दो पृष्ठों को मिलाकर प्रपत्र छपे होते है जिन पर वर्ष भर के जमा के माहवार पूर्ण विवरण के साथ ही खाते से निकाली गई धनराशि का भी पूर्ण विवरण लिखा जाता है। अंत में वार्षिक लेखा भी बनाया जाता है जिसके बगल के स्थान पर अधिकारी के वार्षिक प्रमाणन तथा अभिदाता द्वारा वर्ष में दो बार निरीक्षणों के प्रमाण स्वरूप हस्ताक्षर के लिये स्थान निर्धारित होता है। आहरण वितरण अधिकारी द्वारा जमा तथा आहरण की प्रत्येक प्रविष्टि को प्रमाणित किया जाना चाहिये। यदि किसी वर्ष कोई आहरण न किया गया हो तब भी आहरण की प्रविष्टियाँ अंकित करने के लिये बायें हाथ सबसे नीचे की तरफ निर्धारित स्थान पर आहरण शून्य लिख कर प्रमाणित किया जाना चाहिये।
(ङ) लेखाधिकारी द्वारा प्रत्येक अभिदाता को सामान्य भविष्य निधि लेखा संख्या आवंटित की जाती है। इसके दो भाग होते हैं। पहला भाग सीरीज बताता है और दूसरा भाग अद्वितीय लेखा संख्या जैसे - जी ए यू 9378। इस लेखा संख्या का उल्लेख अभिदाता के सामान्य भविष्य निधि से संबंधित समस्त अभिलेखों और लेखाओं में तथा अन्य सभी पत्राचार स्वीकृतियों, आदेशों और विवरणियों आदि में अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिये।
(च) तृतीय एवं उच्च श्रेणी के अधिकारियों कर्मचारियों के लिये पासबुक प्रणाली 1-4-1985 से लागू की गई। इस प्रकार के तत्कालीन अभिदाताओं की पासबुक में 1-4-1985 को प्रारंभिग अवशेष का आधार महालेखाकार द्वारा वित्तीय वर्ष 1983-84 के लिये निर्गत लेखा पर्ची का अंतिम अवशेष रखा गया। इस अंतिम अवशेष का आगणन करने के लिये इस अंतिम अवशेष में आहरण एवं वितरण अधिकारी के अभिलेखों के अनुसार जमा की गई धनराशि, प्रोत्साहन बोनस यदि कोई हो, 1984-85 में आगणित ब्याज को जोड़कर जो योगफल आये उसमें से 1984-85 में लिये गये अस्थाई अग्रिम तथा अंतिम निष्कासन को घटाया जाना था।
(छ) स्थानान्तरण होने पर पासबुक को अंतिम वेतन प्रमाणपत्र के साथ विशेष वाहक से (यदि स्थानान्तरण स्थानीय हो) या रजिस्टर्ड ए0डी0 के द्वारा भेजी जानी चाहिये। दोनो ही स्थितियों में पासबुक की रसीद प्राप्त कर लेनी चाहिये।
15. जमा से सम्बद्ध बीमा योजना (नियम 23)
(क) स्वीकर्ता प्राधिकारी एवं धनराशि की सीमा
अभिदाता की मृत्यु की दशा में अंतिम भुगतान स्वीकृत करने वाले प्राधिकारी द्वारा अभिदाता के खाते में विगत तीन वर्षों में जमा धनराशि के औसत के बराबर धनराशि (अधिकतम सीमा - रूपये 30,000) का भुगतान अभिदाता के सामान्य भविष्य निधि खाते की धनराशि का अंतिम भुगतान प्राप्त करने वाले को स्वीकृत कर देंगे, जिसकी स्वीकृति अनुदान संख्या 62-वित्त विभाग (अधिवर्ष भत्ते तथा पेंशनें) के लेखाशीर्षक "2235- सामाजिक सुरक्षा और कल्याण - आयोजनेत्तर, 60-अन्य सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण कार्यक्रम, 104- जमा-सम्बद्ध बीमा योजना-सरकारी भविष्य निधि, 03- जमा सम्बद्ध बीमा योजना, 42- अन्य व्यय" के अंतर्गत दी जायेगी। भुगतान पूर्ण रूपयों में किया जायेगा- 50 पैसे से कम की धनराशि छोड़ दी जायेगी और 50 पैसे से अधिक को अगले रूपये में पूर्णांकित कर दिया जायेगा। ज्ञातव्य है कि भविष्य निधि अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत भविष्य निधि की धनराशियों को प्रदान की गई सुरक्षा जमा से सम्बद्ध बीमा योजना के भुगतान को प्राप्त नहीं है। इस योजना के अंतर्गत कम या अधिक भुगतान का समायोजन सामान्य भविष्य निधि अंतिम भुगतान की 90 प्रतिशत भुगतान के बाद भुगतान के लिए अवशेष धनराशि में से लेखा अधिकारी द्वारा कर लिया जायेगा।
(ख) शर्तें
अभिदाता ने मृत्यु के समय कम से कम 5 वर्ष की सेवा अवश्य पूरी कर ली हो।
इस योजना के अधीन देय अतिरिक्त धनराशि रूपये 30,000 से अधिक नहीं होगी।
मृत्यु के पूर्ववर्ती तीन वर्षों में अभिदाता के खाते में विद्यमान इतिशेष कभी भी निम्नलिखित सीमा से कम न हुआ हो :-
क्रमांक मृत्यु के पूर्ववर्ती तीन वर्ष की अवधि के वृहत्तर भाग से अभिदाता द्वारा धारित पद के वेतनमान का अधिकतम (पंचम वेतन आयोग से पूर्व) खाते में विद्यमान इतिशेष निम्नलिखित सीमा से कम न हुआ हो (1) (2) (3) 1 रूपये 4000 या अधिक हो रूपये 12000 2 रूपये 2900 या उससे अधिक, किन्तु रूपये 4000 से कम हो रूपये 7500 3 रूपये 1151 या उससे अधिक, किन्तु रूपये 2900 से कम हो रूपये 4500 4 रूपये 1151 से कम हो रूपये 3000
(ग) विगत तीन वर्षों में जमा धनराशि के औसत का आगणन
इसके लिए एक आगणन शीट तैयार की जाती है जिसमें विगत 36 महीनों के इतिशेषों का आगणन (एक माह का आगणन एक पंक्ति में) किया जाता है।
किसी माह का इतिशेष = पूर्ववर्ती माह का इतिशेष + माह में कुल जमा - माह में कुल आहरण
वर्षवार ब्याज की धनराशि को मार्च के इतिशेष में सम्मिलित किया जायेगा, किन्तु यदि अंतिम माह मार्च नहीं है तब भी ऐसे माह के इतिशेष में ब्याज की धनराशि सम्मिलित की जायेगी।
औसत = मासिक इतिशेषों का योग/महीनों की संख्या (36)
16. अस्थायी अग्रिम, अंतिम निष्कासन, अंतिम भुगतान या जमा सम्बद्ध बीमा योजना के अंतर्गत अधिक भुगतान के मामलों में अपेक्षित कार्यवाही
(नियम 11 (6) से 11 (8) तक)
अस्थायी अग्रिम, अंतिम निष्कासन, अंतिम भुगतान के अंतर्गत अभिदाता के खाते में उपलब्ध धनराशि से अधिक के भुगतान के मामलों में सर्वप्रथम अभिदाता/प्राप्तकर्ता से अपेक्षा की जायेगी कि वह अधिक भुगतान की गई धनराशि को ब्याज सहित जमा कर दे। यदि वह ऐसा नहीं करे तो परिलब्धियों/अन्य पावनों से अधिक भुगतान की धनराशि की रिकवरी की जायेगी। यदि अभिदाता सेवा में है तो वसूली सामान्यत: एक मुश्त की जायेगी या यदि वसूली की धनराशि उसकी परिलब्धियों के आधे से अधिक हो तो मासिक किस्तों में वसूली के आदेश किये जायेंगे। किस्तों की धनराशि का निर्धारण अभिदाता की सेवानिवृत्ति में शेष अवधि को दृष्टिगत रखते हुए किया जायेगा। यदि अभिदाता सेवा में न हो तो उससे वसूली एकमुश्त की जायेगी। उन सभी मामलों में जहां अधिक भुगतान की धनराशि या उसका कोई अंश अन्य प्रकार से वसूल न हो सके उसके भू-राजस्व के बकाये के रूप में वसूली की कार्यवाही की जायेगी।
अति आहरित/अधिक भुगतान की गई धनराशि को वसूली के बाद विभागीय प्राप्ति के लेखाशीर्षक के अंतर्गत सरकार के खाते में जमा किया जायेगा। वसूल किये जाने वाले ब्याज की दर सामान्य भविष्य निधि पर प्रचलित दर से 2 1/2 प्रतिशत अधिक होगी और इसे सरकार के खाते में मुख्य लेखाशीर्षक 0049 - ब्याज प्राप्तियां के अन्तर्गत जमा किया जायेगा।
यदि नियम 23 के अधीन (जमा सम्बद्ध बीमा योजना) कोई अधिक या गलत भुगतान कर दिया जाय तो अधिक या गलत भुगतान की गई धनराशि को ब्याज की सामान्य दर से 2 1/2 प्रतिशत अधिक दर पर ब्याज सहित मृत अभिदाता की परिलब्धियों या अन्य देयों से वसूल किया जायेगा और यदि ऐसा कोई देय नहीं है या अधिक भुगतान की गयी धनराशि की पूर्ण वसूली उससे नहीं हो पाती हे तो देय धनराशि की वसूली, यदि आवश्यक हो, उस व्यक्ति से जिसने अधिक या गलत भुगतान प्राप्त किया हो, भू-राजस्व के बकाये की भाँति की जायेगी। वसूलियों को उक्तानुसार जमा किया जायेगा।
17. महालेखाकार को प्रेषित की जाने वाली सूचनाएँ :-
सामान्य भविष्य निधि प्रथम संशोधन नियमावली-1997 द्वारा जोड़े गये नियम 28(2) - क के अनुसार आहरण एवं वितरण अधिकारी द्वारा महालेखाकार को निम्नलिखित सूचनाएँ प्रेषित किए जाने की अपेक्षा की गयी -
(क) ऐसे अभिदाताओं का नाम और लेखा संख्या जिनका पूर्व एक वर्ष में नामांकन हुआ हो।
(ख) ऐसे अभिदाताओं की सूची जिन्होंने अन्य कार्यालयों में स्थानान्तरण द्वारा वर्ष के मध्य में कार्यभार ग्रहण किया हो।
(ग) ऐसे अभिदाताओं की सूची जो वर्ष के मध्य में अन्य कार्यालयों को स्थानान्तरित हुए हो।
(घ) ऐसे अभिदाताओं की सूची जो आगामी 18 मास के दौरान सेवानिवृत्त होने वाले हों।
शासनादेश संख्या जी 2-664/दस-2003-308/2002 दिनांक 30-4-2003 द्वारा निर्देशित किया गया है कि प्रत्येक वर्ष 01 जनवरी तथा 01 जुलाई को अगले 24 माह के अंतर्गत सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों की सूची, महालेखाकार फण्ड, महालेखाकार कार्यालय, उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद को भेजी जाये जिससे उनके स्तर पर सामान्य भविष्य निधि के अन्तिम भुगतान की नियमित समीक्षा की जा सके।
शासनादेश संख्या जी 2-1005/दस-2004 दिनांक 2-7-2004 के अनुसार प्रत्येक वर्ष सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों/कर्मचारियों की सूची महालेखाकार, उ0प्र0 को भिजवाया जाना सुनिश्चित करने के साथ ही ऐसे अधिकारियों/कर्मचारियों के सामान्य भविष्य निधि पास बुक की सत्यापित छाया प्रति जिसमें प्रथम पृष्ठ पर सारी प्रविष्टियां (यथा, नाम, जन्म तिथि आदि) अंकित हो, भी महालेखाकार उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद को उपलब्ध कराई जानी है ताकि उनके लेखा को महालेखाकार उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद द्वारा अद्यावधिक किया जा सके।
18. महालेखाकार, उत्तर प्रदेश के लेखों में पुस्तांकित धनराशि का मिलान :
सामान्य भविष्य निधि नियमावली के प्रथम संशोधन 1997 द्वारा प्रत्येक आहरण वितरण अधिकारी का यह दायित्व नियम 27 में जोड़ दिया गया है कि वे महालेखाकार कार्यालय की लेखापर्ची/लेजरों की लुप्त प्रविष्टियों को, सामान्य भविष्य निधि पासबुकों की प्रमाणित प्रतियां भेजकर या अपने व्यक्तिगत प्रयासों के माध्यम से ठीक कराएँ।
एतदविषयक शासनादेश दिनांक 15-3-2005 की व्यवस्था स्पष्ट करते हुए शासनादेश संख्या जी-2-205/दस/2006 दिनांक 23 फरवरी, 2006 जारी किया गया। इसमें बताया गया है कि शासनादेश दिनांक 15-3-2005 से इस आशय के निर्देश निर्गत किये गये थे कि सेवानिवृत्ति के नजदीक पहुंच चुके कर्मचारियों/ अधिकारियों के सामान्य भविष्य निधि खाते के इन्द्राज का मिलान कार्यालय महालेखाकार, उ0प्र0, इलाहाबाद में अनुरक्षित लेखों से भी समय रहते करवा लिया जाय ताकि त्रुटिपूर्ण भुगतान की गुंजाइश न रहे। इस परिप्रेक्ष्य में यह उचित होगा कि उपर्युक्त पत्र दिनांक 15-3-2005 में दिये गये निर्देशों के अनुसार सामान्य भविष्य निधि पास बुक के इन्द्राज का समय रहते कार्यालय महालेखाकार, उ0प्र0, इलाहाबाद के लेखों से मिलान करवा लिया जाय। यदि सेवानिवृत्ति के पूर्व किन्हीं कारणों से ऐसा मिलान करने की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो पाती हो मात्र इस आधार पर स्वीकृति प्राधिकारी द्वारा सेवानिवृत्ति के समय भविष्य निधि के 90 प्रतिशत अतिशेष का भुगतान रोका नहीं जायेगा, परन्तु ऐसे भुगतान की प्रमाणकता के लिये स्वीकृति प्राधिकारी स्वयं उत्तरदायी होंगे।
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परिशिष्ट-एक
सामान्य भविष्य निर्वाह निधि पर समय-समय पर घोषित/लागू ब्याज दरें क्रमांक- वर्ष वार्षिक ब्याज दर 1 - 1957-58 सकल जमा धनराशि पर एक समान 3.75% 2 1958-59 सकल जमा धनराशि पर एक समान 3.75% 3 1959-60 सकल जमा धनराशि पर एक समान 3.75% 4 1960-61 सकल जमा धनराशि पर एक समान 3.75% 5 1961-62 सकल जमा धनराशि पर एक समान 3.75% 6 1962-63 से 1964-65 सकल जमा धनराशि पर एक समान 4.00% 7 1965-66 सकल जमा धनराशि पर एक समान 4.25% 8 1966-67 सकल जमा धनराशि पर एक समान 4.60% 9 1967-68 सकल जमा धनराशि पर एक समान 4.80% 10 1968-69 5.10% 10,000 तक; अधिक पर 4.80% 11 1969-70 5.25% 10,000 तक; अधिक पर 4.80% 12 1970-71 5.50% 10,000 तक अधिक पर 4.80% 13 1971-72 5.70% 10,000 तक; अधिक पर 5.00% 14 1972-73 6.00% 10,000 तक; अधिक पर 5.30% 15 1973-74 सकल जमा धनराशि पर एक समान 6.00% 16 1974-75 (31.7.74 तक 1.8.74 से 31.3.75 तक) 6.50% 15,000 तक; अधिक पर 5.80% 7.50% 25,000 तक ; अधिक पर 7.00% 17 1975-76 7.50% 25,000 तक ; अधिक पर 7.00% 18 1976-77 सकल जमा धनराशि पर एक समान 7.50% 19 1977-78 से 1979-80 8.00% 25,000 तक; अधिक पर 7.50% 20 1980-81 8.50% 25,000 तक; अधिक पर 8.00% 21 1981-82 9.00% 25,000 तक; अधिक पर 8.50% 22 1982-83 9.00% 35,000 तक; अधिक पर 8.50% 23 1983-84 9.50% 40,000 तक; अधिक पर 9.00% 24 1984-85 सकल जमा धनराशि पर एक समान 10.00% 25 1985-86 सकल जमा धनराशि पर एक समान 10.50% 26 1986-87 से 1999-2000 तक सकल जमा धनराशि पर एक समान 12.00% 27 2000-2001 सकल जमा धनराशि पर एक समान 11.00% 28 2001-2002 सकल जमा धनराशि पर एक समान 9.5% 29 2002-2003 सकल जमा धनराशि पर एक समान 9.0% 30 2003-2004 सकल जमा धनराशि पर एक समान 8% 31 2004-2005 सकल जमा धनराशि पर एक समान 8% 32 2005-2006 सकल जमा धनराशि पर एक समान 8% 33 2006-2007 सकल जमा धनराशि पर एक समान 8% 34 2007-2008 सकल जमा धनराशि पर एक समान 8%
देश की प्रति व्यक्ति आय 2017-18 में 8.6 प्रतिशत बढ़कर 1,12,835 रुपये पर पहुंच गई। आधिकारिक आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि की रफ्तार पिछले साल के मुकाबले कुछ धीमी रही। इससे पिछले वित्त वर्ष 2016-17 में प्रति व्यक्ति आय
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उससे पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 10.3 प्रतिशत बढ़कर 1,03,870 रुपये पर पहुंची थी।
लोकलेखा समिति की भूमिका ===================== 15 वर्ष बाद लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन के प्रयासों से केन्द्र व राज्यों के विधानमंडलों की लोकलेखा समितियों के अध्यक्षों का सम्मेलन हुआ। इसकी महत्ता भारत के संसदीय लोकतन्त्र में किसी भी रूप में कम करके नहीं आंकी जा सकती क्योंकि
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इनके विचार-विमर्श से निकले अमृत से ही भारत का लोकतन्त्र सर्वदा युवा रहता है और इस देश के आगे बढऩे की ऊर्जा से सम्पन्न रहता है। लोकलेखा समिति सरकारी खर्च का बारीकी से विश्लेषण करती है और उसे सार्वजनिक लेखे-जोखे के दायरे में खड़ा करती है। महालेखा नियन्त्रक सरकारी खर्चों के न्यायसंगत व तर्कसंगत रूप से खर्च करने के विभिन्न पहलुओं की जांच-पड़ताल करके अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपते हैं और फिर संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के समावेश से बनी लोकलेखा समिति इस पर ब्यौरेवार विचार करके उन कमियों की तरफ सरकार की जवाबदेही तय करती है जिनकी तरफ लेखा महानियन्त्रक ध्यान दिलाते हैं। लेखा महानियन्त्रक एक संवैधानिक संस्था है जो मुख्य रूप से कार्यपालिका के धन खर्च करने की प्रणाली की समीक्षा करती है। वास्तव में यह सरकार द्वारा स्वयं अपने ऊपर ही अंकुश लगाये रखने का ऐसा तन्त्र है जिससे भारत की समूची प्रशासन व्यवस्था सीधे आम लोगों के प्रति संसद के माध्यम से जवाबदेह बनी रहे। इसे और ज्यादा पारदर्शी बनाने का कार्य लोकलेखा समिति करती है। लोकलेखा समिति का कार्यबहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि उसके पास भारत की राजनीतिक संसदीय व्यवस्था सेउत्पन्न प्रशासन प्रणाली के मुख्य अंग कार्यपालिका के बड़े से बड़े अधिकारी को तलब करने के साथ ही विशेष परिस्थितियों में राजनीतिक नेतृत्व की जांच-पड़ताल करने का भी अधिकार होता है मगर प्रधानमन्त्री को बुलाने का उसके पास अधिकार नहीं है क्योंकि प्रधानमन्त्री अपने मन्त्रिमंडल के माध्यम से सामूहिक जिम्मेदारी के तहत सीधे संसद के प्रति जिम्मेदार होते हैं और लोकलेखा समिति सरकार के विभागीय दायरों के कामकाज की समीक्षा करती है परन्तु समिति की प्रमुख जिम्मेदारी नौकरशाही की सीधे जवाबतलबी की होती है क्योंकि सरकारी योजनाओं के लिए आवंटित धन का खर्च सरकार से सीधे नौकरशाही के माध्यम से ही होता है। उस विभाग के राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका यदि समिति को संदिग्ध नजर आती है तो समितिके पास अधिकार है कि वह सम्बद्ध मन्त्री की जवाब तलबी कर ले। ऐसा हमने 2-जी स्पैक्ट्रम घोटाले के मामले में देखा जब पिछली मनमोहन सरकार के कार्यकाल के दौरान लोकलेखा समिति के अध्यक्ष रहते हुए भाजपा के नेता डा. मुरली मनोहर जोशी ने तत्कालीन वित्तमन्त्री पी. चिदम्बरम को तलब करने का प्रयास किया था मगर कांग्रेस के सदस्यों ने उन्हें यह काम नहीं करने दिया लेकिन समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में 2-जी घोटाले के लिए अंतत: श्री चिदम्बरम को ही दोषी पाया। दूसरे समिति की अंतिम रिपोर्ट सर्वसम्मति से तैयार होनी चाहिए। इसका अनुपालन पिछले 15 वर्षों से नहीं हो पा रहा है। अत: सम्मेलन में इस मुद्दे पर भी विचार होना चाहिए। इसके साथ दूसरा सबसे महत्वपूर्ण मामला यह है कि हमारी अर्थव्यवस्था पूर्णत: बाजार मूलक होने की दिशा में बढ़ रही है जबकि लेखा महानियन्त्रक और लोकलेखा समिति का कार्य सरकारी खर्चों की समीक्षा करना ही है। बदले हुए आर्थिक माहौल में लेखा महानियन्त्रक कार्यालय को भी अपनी कार्यप्रणालीमें परिवर्तन लाना आवश्यक होगा क्योंकि सरकार विकास को समावेशी बनाने हेतु जिस तरह समाज के गरीब वर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर धन खर्च कर रही है वह उसके बजट का प्रमुख हिस्सा बनता जा रहा है। ऐसी परियोजनाओं के लेखे-जोखे का वक्त अब करीब आ गया है। इस कार्य में केवल केन्द्रीय लोकलेखा समिति का ही दायित्व नहीं बनता है बल्कि राज्यों की समितियों का भी दायित्व बनता है क्योंकि केन्द्र की किसी भी सामाजिक सुरक्षा की योजना को लागू तो राज्य सरकारें ही करती हैं। हमें यह ध्यान रखना होगा कि अभी तक जो व्यवस्था थी वह पंचवर्षीय योजना और योजना आयोग को केन्द्र में रखकर थी। अब यह व्यवस्था समाप्त हो रही है तो हमें अपनी संस्थाओं की भूमिका में भी परिवर्तन करना होगा। मेरे विचार से सबसे बड़ी चुनौती यही है।