दशहरा और दीपावली का महीना चैत्र
श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के अनुसार-
न तो आश्विन माह में रावण का वध हुआ और
न ही कार्तिक अमावस्या को राम अयोध्या लौटे दे।
अंधभक्त वाल्मीकीय रामायण का बुद्धि पूर्वक अध्ययन नहीं करते।
आश्विन मास में रावण को मार कर लोग ऋषि वाल्मीकि के साथ
...
विश्वास घात करते हैं, जो नहीं किया जाना चाहिए।
वाल्मीकि रामायण में दसरथ पुत्र रामचन्द्र का राज्याभिषेक चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी छठी को होना था,
किन्तु राम का राज्याभिषेक तो दूर उन्ह कैकेई के दुराग्रह के कारण १४ वर्ष के लिए वनवास पर जाना पड़ा।
चैत्र श्रीमानयं मासः पुण्यः पुष्पित काननः,
यौवराज्याय रामस्य सर्वमेवोपकल्यताम् ।।
(अयोध्या काण्ड सर्ग ३ श्लोक 4)
अर्थ -
यह चैत्रमास बड़ा सुन्दर और पवित्र है , इसमें सारे वन -उपवन खिल उठे हैं, अतः इस समय श्रीराम का युवराज पद पर अभिषेक करने के लिए आप लोग सब सामग्री एकत्र कराइए।
श्व एव पुष्यो भविता श्वोभिषेच्यस्तु मे सुतः,
रामो राजीवपत्राक्षो युवराज इति प्रभुः ।।
(अयोध्या काण्ड सर्ग 4, श्लोक २)
अर्थ -
दसरथ ने मंत्रियों के साथ सलाह करके यह निश्चय किया कि कल ही पुष्य नक्षत्र होगा, अतः कल ही मुझे अपने पुत्र राम का युवराज के पद पर अभिषेक कर देना चाहिए।
अघ चन्द्रोम्युपगमत् पुष्यात् पूर्व पुनर्वसुम्,
श्वः पुष्ययोग नियत वक्ष्यन्ते दैव चिन्तकाः।
(अयोध्या काण्ड सर्ग 4 , श्लोक 21 )
अर्थ -
आज चन्द्रमा पुष्य से एक नक्षत्र पहले पुनर्वसु पर विराजमान है, अतः निश्चय ही कल वे पुष्य नक्षत्र पर रहेंगे, ऐसा ज्योतिषी लोगों का कहना है।
"योग्य पाठको! वाल्मीकीय रामायण के अनुसार राम का राज्याभिषेक चैत्र मास में ऐसी तिथि को होना था, जिस दिन पुष्य नक्षत्र पड़ रहा था।
सभी जानते हैं कि राम को अगले दिन राज्याभिषेक के स्थान पर १४ साल के लिए वन को जाना पड़ा।
भरत राम को लौटाने गये ,लेकिन राम लौटने को तैयार नहीं थे, तो भरत ने राम के समक्ष ही भीषण प्रतिज्ञा की -
चतुदर्शे हि सम्पूर्णे वर्षेऽहनि रघुत्तम,
न द्रक्ष्यामि यदि त्वां तु प्रवेच्क्षयामि हुताशनम् ।।
(अयोध्या काण्ड सर्ग ११२ श्लोक २५)
अर्थ -
हे राम! यदि चौदहवां वर्ष पूर्ण होने पर नूतन वर्ष के प्रथम दिन ही मुझे आपका दर्शन नहीं मिलेगा तो मैं जलती हुई ज्वाला आग में प्रवेश कर जाऊंगा।
"भरत की यह प्रतिज्ञा राम हमेशा याद रखते थे। राम तेरह वर्ष तक तो सही सलामत रहे। चौदहवां वर्ष लगते ही उनके सामने परेशानियां आने लगीं। चौदहवें वर्ष में रावण द्वारा सीता का अपहरण किया गया। राम-लक्ष्मण सीता को खोजते - खोजते जब सुग्रीव के यहां पहुंचे उस समय वर्षा प्रारंभ हो चुकी थी।
बाली का वध करने के बाद वे चार महीने सुग्रीव के राज्य में ही रहे।
किष्किंधा काण्ड के सर्ग ३० श्लोक ६४ में राम कहते हैं-
चत्वारो वार्षिका मासा गता वर्षशतोपमाः,
मम शोकाभितप्तस्य तथा सीतायपश्यतः।
अर्थात- मैं सीता को न देखने के कारण शोक से संतप्त हो रहा हूं , अतः ये वर्षा के चार महीने मेरे लिए सौ वर्षो के समान बीते हैं।"
इसी सर्ग के श्लोक 68 में वे कहते हैं -
वर्षा समयकालं तु प्रतिज्ञाय हरीश्वरः,
व्यतीतांश्चतुरो मासान् विरहन् नावबुध्यते।
अर्थात- "सुग्रीव ने यह प्रतिज्ञा की थी कि वर्षा का अंत होते ही सीता की खोज आरंभ कर दी जाएगी किन्तु वह क्रीड़ा विहार में इतना तन्मय हो गया है कि इन बीते हुए चार महीनों का उसे पता ही नही है।"
सुग्रीव अंगद हनुमान को दक्षिण में भेजते हैं। अंगद व हनुमान आश्विन मास के बीतते बीतते दक्षिण की ओर गए थे। एक महीना व्यतीत हो गया लेकिन वे सीता की खोज नहीं कर पाए। अंगद हनुमान कहने लगे -
शासनात् कपिराज्यस्य वयं सर्वे विनिर्गताः,
मासः पूर्णो बिलस्थानां हरयः किं न बुध्यते।
वयमाश्वयुजे मासि कालसंख्याव्यवस्थिताः,
प्रस्थिताः सोऽपि चातीतः किमतः कार्यमुत्तरम् ।
(किष्किन्धा काण्ड सर्ग 53 श्लोक - 8 व 9।
की निश्चित अवधि स्वीकार वह एक मास उस मास निर्धारित हुआ अंगद हनुमान सीता के पास जब पहुंचते हैं, तो सीता सुन्दर काण्ड सर्ग 37 श्लोक 8 में हनुमान से कहती हैं-
वर्तते दशमो मासो द्वौ तु शेषौ प्लवङ्गम्,
रावणेन नृशंसेन समयो यः कृति मम।
अर्थात- वानर! यह दसवां महीना चल रहा है। अब वर्ष पूरा होने में दो मास शेष हैं। निर्दयी रावण ने मेरे जीवन के लिए जो अवधि निश्चित की है, उसमें इतना ही समय बाकी रह गया है।
सीता हनुमान के माध्यम से राम के लिए एक संदेश भेजना चाहती है। सुन्दर काण्ड सर्ग 40 श्लोक 10 में सीता कहती हैं-
धारयिष्यामि मासं तु जीवितः शत्रुसूदन,
मासादूर्ध्वं न जीविष्ये त्वया हीना नृपात्मज।
अर्थात- "राजकुमार! मैं आपकी प्रतीक्षा में किसी तरह एक मास तक जीवित नहीं रह सकूंगी।"
इसके बाद राम रावण पर आक्रमण करते हैं। मेघनाद का वध होता है। मेघनाद के वध से दुखी होकर रावण सीता का वध करना चाहता है। रावण को रोकते हुए सुपाश्र्व कहता है -
कथं नाम दशग्रीव साक्षाद्वैश्रवणानुज,
हन्तुमिच्छसि वैदेहीं क्रोघादधर्ममपास्य चः।
(युद्ध काण्ड सर्ग 92 ,श्लोक 63)
अर्थ -
महाराज रावण ! तुम तो साक्षात कुबेर के भाई हो, फिर क्रोध के कारण धर्म को तिलांजलि देकर (छोड़कर) सीता के वध की इच्छा कैसे करते हो?
वेदविद्यावतस्नातः स्वकर्मनिरस्तथा ।
स्त्रियः कस्सा बवं बीर मन्यसे राक्षसेश्वर ।।
(युद्ध काण्ड सर्ग 92 श्लोक 64)
अर्थ -
वीर राक्षस राज! तुम विधिपूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वेद विद्या का अध्ययन पूरा करके गुरुकुल से स्नातक होकर निकले थे और तब से सदा अपने कर्तव्य के पालन में लगे रहे तो भी आज अपने हाथ से एक स्त्री का वध करना तुम कैसे ठीक समझाते हो ?
अभ्युत्थान त्वमव कृष्णपक्ष चतुर्दशी ।
कृत्वा नियढमावस्यां विजयाय बलैबृत ।।
(युद्ध काण्ड सर्ग 92 श्लोक 66)
अर्थ -
आज कृष्णपक्ष की चतुर्दशी (चौदस) है। अतः आज ही युद्ध की तैयारी कर कल अमावस्या के दिन सेना के साथ विजय के लिए प्रस्थान करो ।
नैब रात्रि न दिवस न मुहुर्त न च क्षणम् ।
रामारावणयो युद्ध विरामधुपगच्छाति ।।
(युद्ध काण्ड सर्ग 107 श्लोक 66)
अर्थ -
राम और रावण का वह युद्ध न रात में बन्द होता था और न दिन में। दो घड़ी अथवा एक क्षण के लिए भी उसका विराम नहीं हुआ और अमावस्या के दिन मातलि द्वारा याद दिलाए जाने पर ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अगस्त्य ऋषि द्वारा प्रदत्त बाण के प्रहार से वध कर दिया।
स शरो रावणं हत्वा रुधिराद्रकृतच्छविः।
कृतवर्मा निभृतवत् स तूणीं पूनराविशत् ॥
(युद्ध काण्ड सर्ग 108 श्लोक 20)
अर्थ -
इस प्रकार रावण का वध करके खून से रंगा हुआ, वह शोभाशाली बाण अपना काम पूरा करने के बाद पुनःविनीत सेवक की भांति रामचन्द्र के तरकश में लौट आया।
विद्वान पाठकगण! जरा सोचिए कि रावण राम की पत्नी सीता का वध करना चाहता है, उस दिन चैत्र मासी चौदस थी लेकिन सुपाश्र्व के समझाने पर अगले दिन चैत्र मास की अमावस्या को रावण राम से लड़ने जाता है और रात दिन के संघर्ष में रावण राम के द्वारा ऋषि अगस्त्य द्वारा प्रदत बाण से मारा जाता है।
राम के ऐसे कहने पर विभीषण ने उत्तर दिया -
एवमुक्तषस्तु काकुत्स्थं प्रत्युवाच विभीषणः,
अह्ना त्वां प्रापयिष्यामि तां पुरीं पार्थिवात्मज।
"राज कुमार! आप इसके लिए चिन्तित न हों। मैं एक ही दिन में आपको उस पुरी (नगर )में पहुंचा दूंगा।" (सर्ग 121, श्लोक 8) ।
पुष्पकं
"मेरे यहां मेरे बड़े
"चैत्र मास की सुन्दरता का दृष्य (नजारा) दिखाते हुए राम चैत्र शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन भारद्वाज मुनि के आश्रम में उतर कर उन्हें प्रणाम करते हैं -
पूर्ण चतुर्दशे वर्षे पंचम्यां लक्ष्मणाग्रजः ।
भरद्वाजाश्रमं प्राप्य ववन्दे नियतो मुनिम् ॥
(युद्ध काण्ड सर्ग 124 श्लोक 1)
अर्थ -
रामचन्द्र ने चौदह वर्ष पूर्ण होने पर पंचमी तिथि को भारद्वाज आश्रम में पहुंचकर मन को वश में रखते हुए मुनि को वंदन (प्रणाम) किया।
"चैत्र शुक्ल पक्ष पंचमी को आश्रम में उतर कर राम ने विचार किया कि आज ही चौदह वर्ष का अंतिम दिन है। भरत के संकल्प को याद करके उन्होंने
सोचा कि यदि आज भरत को मेरे आगमन की सूचना नहीं मिली तो वह आत्मदाह कर लेगा। अतः उन्होंने युद्ध काण्ड सर्ग 125 श्लोक 3 में हनुमान से कहा -
अयोध्यां त्वरितो गत्वा शीघ्रं प्लवगसत्तमं,
जानी कच्चित् कुशली जनो नृपतिमन्दिरे।
"कपिश्रेष्ठ! तुम शीघ्र ही अयोध्या जाकर पता कर लो कि राज भवन में सब लोग सकुशल तो हैं न।" और कहना-
पञ्चमीमद्य रजनीमुष्तिवा वचनानुनेः,
भरद्वाजाभ्यनुज्ञातं द्रक्ष्यस्यत्रैव राघवम्।
"वे (राम) प्रयाग में हैं और भारद्वाज मुनि के कहने से उन्हीं के आश्रम में आज पंचमी की रात बिताकर कल उनकी आज्ञा से वहां से चलेंगे। तुम्हें यहीं राम का दर्शन होगा।" (सर्ग 125, श्लोक 24)।
हनुमान उसी समय उड़े और भरत के पास जा पहुंचे। वाल्मीकि रामायण युद्ध काण्ड सर्ग १२६ श्लोक ५४ में हनुमान भरत से कहते हैं-
तां गंगां पुनरासाद्य वसन्तं मुनिसंनिधौ,
अविघ्नं पुष्ययोगेन श्वो रामं द्रष्टुमहर्सि।
"हे भरत! किष्किंधा से गंगा तट पर आकर वे प्रयाग में भारद्वाज मुनि के समीप ठहरे हुए हैं। कल पुष्य नक्षत्र के योग में आप किसी विघ्न बाधा के राम का दर्शन करेंगे।
विद्वान पाठको! जरा सोचिए कि राम वन को कौन से मास में गये ? उत्तर है -चैत्र मास में ,उनका राज्याभिषेक कौन से नक्षत्र में होना था, उत्तर है- पुष्य नक्षत्र में। उनको चौदह वर्ष कब पूर्ण होंगे? उत्तर है चैत्र मास में ही ,रावण की मृत्यु कौन से महीने में हुई? उत्तर है चैत्र की अमावस्या को। रावण वध के बाद प्रयाग में राम कौन सी तिथि को आये? उत्तर है -चैत्र शुक्ल पक्ष पंचमी को। राम भरत से कौन सी तिथि तथा कौन से नक्षत्र में मिले? उत्तर है-चैत्र शुक्ल पक्ष की छठ और पुष्य नक्षत्र में। अतः रावण का वध चैत्र मास की अमावस्या का होना चाहिए, न कि आश्विन शुक्ल पक्ष दसवीं को, तो फिर हिन्दू लोग विजयादशमी और दीपावली का संबंध राम से क्यों मानते हैं?
*हिन्दुओं को जो रामायण/ राम में आस्था रखते हों,उन्हें राम की रावण पर विजय के बाद अयोध्या आगमन पर प्रकाश उत्सव पर्व चैत के महीने में मनाना चाहिए। दशहरा चैत्र की अमावस्या को व उन्हें दीवाली चैत्र शुक्ल की छठ को राम - रावण कथानक के मद्देनजर मनाना चाहिए।*