जन्म की खुशी मृत्यु के दुख से छोटी होती है। उसका कारण यह है कि जन्म की खुशी पाने के लिए कोई नहीं होता। जो है ही नहीं वह हो जाने की खुशी कैसे महसूस कर सकता है। दूसरी बात की वह अस्तित्व में आने
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पर खुशी और गम जैसे भावों के पूरे अर्थ से परिचित भी नहीं होता इसमें उसको 15 से बीस साल लग जाते हैं। वहीं जब वह मरता है तो उसको पूरा का पूरा पता चल रहा होता है कि वह मर रहा है। इसलिए मृत्यु का दुख बड़ा होता है।
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जो विचार धाराएं आबादी बढ़ाने को उचित किन्तु मानती हैं और बढ़ी हुई आबादी को कम करने के लिए हत्या, धर्मयुद्ध अथवा जिहाद जैसी चीज को प्रोत्साहित करती हैं वो किसी सुलझे हुए परिपक्व दिमाग की उपज नहीं हैं।
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एक सुंदर-सुखद संसार के लिए उत्तम यही है कि जन्म लेने वालों की संख्या कम की जाए ताकि जो जन्म ले चुके हैं उनको भरपूर जीवन का आनंद पाने का अवसर मिल सके।
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हमें धर्म-मजहब के नाम पर अपनी आस्था को ईश्वर का आदेश बताकर थोपने के बजाय प्रकृति के वास्तविक नियमों का पता लगाना चाहिए। और जिस सीमा के आगे प्रकृति के वास्तविक नियमों का पता लगा पाना संभव न हो तो ऐसी आस्था-विश्वास का विकास करना चाहिये जो इस संसार सुंदर और सुखद बनाने में सहायक हो।